जया एकादशी : इंद्र के श्राप से मृत्युलोक पहुंची नृत्यांगना, जानें कैसे मिली मुक्ति

जया एकादशी का व्रत न केवल धार्मिक है, बल्कि यह जीवन में शांति और सुख लाने का साधन है। जानें कैसे इस व्रत ने इंद्र के श्राप से पिशाच योनि में पहुंचे गंधर्व और नृत्यांगना को मुक्ति दिलाई...

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Kaushiki
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Jaya-Ekadashi : हर महीने की एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है, जो भक्तों के लिए पुण्य प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग खोलता है। ऐसे में खासकर माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी (जिसे जया एकादशी कहा जाता है), व्रत बहुत ही शुभ और पुण्य देने वाला माना गया है। ऐसा माना गया है, इस दिन व्रत करने से भक्तों को जीवन और मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है और वे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करते हैं।

माना जाता है कि, इस दिन श्रद्धा से व्रत रखने से न केवल भूत-प्रेत और पिशाच जैसी योनियों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन और मरण के बंधन से भी छुटकारा मिलता है। तो चलिए, आज हम विस्तार से जानेंगे जया एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा और इसके महत्व के बारे में...

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जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

एक समय की बात है जब देवों के राजा इन्द्र की सभा में उत्सव हो रहा था। सभा में गंधर्वों के गीत चल रहे थे, और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। मल्यवान, जो एक सुरीला गायक था और पुष्यवती, जो एक अत्यंत सुंदर नृत्यांगना थी, एक-दूसरे को देखकर अपनी लय और ताल से भटक गए। इस कारण इन्द्र देव नाराज हो गए और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएंगे और मृत्युलोक में पिशाचों की तरह जीवन बिताएंगे।

श्राप का प्रभाव

इन्द्र के श्राप के कारण मल्यवान और पुष्यवती प्रेत योनि में चले गए। यह जीवन बहुत कष्टकारी था क्योंकि प्रेत योनि में रहकर दोनों को असहनीय दुख और तकलीफों का सामना करना पड़ा। उनकी यह स्थिति उनके पापों का परिणाम थी, लेकिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद के बिना कोई भी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता था।

एकादशी के व्रत का प्रभाव

फिर एक दिन माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन आया। मल्यवान और पुष्यवती ने एकादशी का व्रत रखा। दिनभर उन्होंने फलाहार किया और रात में भगवान विष्णु से अपनी गलतियों के लिए क्षमा की प्रार्थना की। दोनों ने पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ एकादशी का उपवास किया। वे यह विश्वास करते थे कि भगवान विष्णु उनकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करेंगे।

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ऐसे मिली मुक्ती

जब मल्यवान और पुष्यवती जागे, तो उन्होंने देखा कि वे प्रेत योनि से मुक्त हो चुके हैं। उनका दुःख समाप्त हो चुका था और वे फिर से स्वर्गलोक में पहुंच गए। यह चमत्कारी घटना उनके पवित्र मन, विश्वास और भगवान विष्णु के प्रति उनकी श्रद्धा का फल था। उनके एकादशी के व्रत और भगवान के आशीर्वाद ने उन्हें मोक्ष दिलवाया।

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व्रत का महत्व

ऐसा माना जाता है कि, ये व्रत उन सभी के लिए विशेष लाभकारी माना जाता है जो जीवन में किसी कारण से कष्ट या संकटों का सामना कर रहे हैं। यह व्रत पुण्य, सुख, समृद्धि, और आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। इस दिन उपवास करने से प्रेत योनि और अन्य बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है। भक्तों का विश्वास है कि, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से जीवन की हर कठिनाई और संकट से मुक्ति मिलती है।

इसके साथ ही, यह व्रत किसी भी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों को दूर करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से ध्यान, साधना और भक्ति की जाती है, जिससे व्यक्ति को आत्मिक उन्नति और शांति की प्राप्ति होती है। श्रद्धापूर्वक व्रत रखने से भक्तों को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन में सभी प्रकार के दुखों और बाधाओं को दूर कर देती है।

FAQ

2025 में Jaya Ekadashi व्रत किस दिन है?
इस बार Jaya Ekadashi 8 फरवरी को है।
Jaya Ekadashi के दिन क्या करना चाहिए?
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करें और उपवासी रहते हुए दिनभर भक्ति में लीन रहें।
Jaya Ekadashi व्रत का महत्व क्या है?
यह व्रत पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम है, और इससे पिशाच योनियों से मुक्ति मिलती है।
क्या एकादशी का उपवास सभी के लिए जरूरी है?
यह व्रत विशेष रूप से भक्तों के लिए है, जो भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं।

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