क्या है कामाख्या मंदिर की अधूरी सीढ़ियों का राज, जानिए इसके पीछे की दिलचस्प कहानी

कामाख्या मंदिर में देवी के मासिक धर्म से जुड़ी रहस्यमयी मान्यताएं और तांत्रिक पूजा होती है, जहां भक्त खून से लिपटी हुई रूई को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। यह पवित्र स्थल भक्तों की आस्था और विश्वास का केंद्र बन चुका है।

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Kaushiki
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कामाख्या मंदिर
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चैत्र नवरात्रि के दौरान भक्तों का उत्साह चरम पर है और वे देवी के मंदिरों में जाकर अपनी श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में असम के निलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर भी इन प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है, जहां भक्त मां कामाख्या की पूजा में लीन हैं। यह मंदिर देवी कामाख्या की पूजा का मुख्य केंद्र है और उनके इस रूप को विशेष मान्यता प्राप्त है।

कामाख्या देवी के मंदिर में भक्तों द्वारा कई रहस्यमयी मान्यताओं के साथ पूजा की जाती है, जिनमें एक प्रसाद के रूप में खून से लिपटी हुई रूई देना भी शामिल है, जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं। इस पवित्र मौके पर, मांके दर्शन और पूजा से भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की उम्मीद रखते हैं।

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देवी की मासिक धर्म की मान्यता 

कामाख्या देवी को 'बहते रक्त की देवी' भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मान्यता है कि यहां देवी को हर साल जून के महीने में मासिक धर्म होता है और यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस समय देवी के योनि से रक्त निकलता है और इसका प्रभाव ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को लाल कर देता है। इस दौरान मंदिर को तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाता है। हालांकि, पास में अम्बूवाची पर्व का आयोजन होता है जिसे मेले के रूप में मनाया जाता है।

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अम्बूवाची पर्व

मान्यता के मुताबिक यह पर्व देवी के मासिक धर्म के समय मनाया जाता है और भक्तों की भारी भीड़ इस समय मंदिर में आती है। यहां भक्त मासिक धर्म के खून से लिपटी रूई को प्रसाद के रूप में लेते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और इसे मूल रूप से तांत्रिक पूजा का हिस्सा माना जाता है। इस दौरान सैकड़ों साधू-संत और तांत्रिक यहां आकर अपनी साधना करते हैं।

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मंदिर की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब माता सती अपने पिता राजा दक्ष द्वारा किए गए यज्ञ में अपमानित हुईं, तो उन्होंने आत्मदाह कर लिया। इसके बाद भगवान शंकर उनके शोक में तांडव करने लगे। इस शोक को समाप्त करने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ बने। कामाख्या मंदिर भी उसी स्थान पर है, जहां माता सती का योनि गिरा था।

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मंदिर के अधूरी सीढ़ियां

मान्यता के मुताबिक, कामाख्या मंदिर के पास स्थित सीढ़ियां अधूरी मानी जाती हैं। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि नराका नामक दानव ने माता से विवाह का प्रस्ताव रखा। जब उसने यह शर्त रखी कि वह निलांचल पर्वत पर सीढ़ियां बनाएगा, तो माता उससे विवाह करेंगी। लेकिन वह दानव कभी इन सीढ़ियों को पूरा नहीं बना सका और इसलिए सीढ़ियां अधूरी रह गईं।

मंदिर का प्रसाद

मान्यता के मुताबिक, कामाख्या मंदिर में प्रसाद के रूप में खून से लिपटी हुई रूई दी जाती है, जो मासिक धर्म के दौरान माता के रक्त से जुड़ी होती है। यह एक विशेष प्रकार का प्रसाद माना जाता है और भक्त इसे प्राप्त करने के लिए लंबी लाइन में खड़े रहते हैं।

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