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माघी पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से नदी स्नान, तीर्थ यात्रा, हवन-पूजन, दान-पुण्य और सत्यनारायण व्रत करने का महत्व बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने और व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह परंपरा स्कंद पुराण में भी उल्लिखित है। इस दिन किए गए सभी धार्मिक कार्य और पूजन अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं।
सत्यनारायण भगवान की कथा में 5 अध्याय है, जो हमें सत्य के मार्ग पर चलने और ईश्वर में आस्था बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं। इस दिन विशेष रूप से तीर्थ स्नान और दान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, पूर्णिमा के दिन किए गए धर्म-कर्म का हजारों गुना फल प्राप्त होता है। माना जाता है कि, इस पवित्र तिथि पर सत्यनारायण व्रत करने से जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। इस बार माघी पूर्णिमा 12 फरवरी बुधवार को मनाई जा रही है।
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पूर्णिमा का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
माघी पूर्णिमा सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र तिथि मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण स्वरूप में होता है, जो सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, पूर्णिमा के दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य कई गुना फलदायी होता है। यही कारण है कि इस दिन विशेष रूप से तीर्थ स्नान, दान-पुण्य और सत्यनारायण व्रत किया जाता है। यह दिन देवी-देवताओं की उपासना और आध्यात्मिक साधना के लिए विशेष महत्व रखता है।
सत्यनारायण भगवान की कथा
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान सत्यनारायण की कथा में पांच अध्याय है, जिसे सुनने और पढ़ने से सभी दुखों का नाश होता है। इस कथा की विशेषता यह है कि इसे किसी भी शुभ कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नवजात शिशु के जन्म, सफलता की प्राप्ति आदि अवसरों पर किया जाता है।
यह कथा हमें सिखाती है कि सत्य के मार्ग पर चलना और भगवान में आस्था रखना जीवन के सभी कष्टों का निवारण कर सकता है। जो लोग अधर्म और झूठ के मार्ग पर चलते हैं, वे हमेशा परेशानियों का सामना करते हैं। इस कथा का मूल संदेश यही है कि हमेशा धर्म के रास्ते पर चलें, ईश्वर में विश्वास रखें और सत्य का पालन करें।
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सत्यनारायण कथा की पूजा विधि
पूजा के लिए भगवान सत्यनारायण की प्रतिमा या चित्र, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और मिश्री), फल-फूल, तुलसी पत्ते, भोग (हलवा और चूरमा), नारियल, केले और आम के पत्ते, कुमकुम, गुलाल, अबीर, धूप-दीप और पूजन सामग्री की जरूरत होती है।
पूजा विधि में स्नान के बाद भगवान सत्यनारायण की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराया जाता है। इसके बाद फल-फूल, श्रृंगार, धूप-दीप और प्रसाद अर्पित किया जाता है। फिर सत्यनारायण कथा का पाठ किया जाता है और अंत में प्रसाद सभी सदस्यों में वितरित किया जाता है।
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सत्यनारायण कथा के पांच अध्यायों की संक्षिप्त जानकारी
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान सत्यनारायण की कथा पांच अध्यायों में बटी हुई है,
पहला अध्याय - नारद मुनि ने भगवान विष्णु से सत्यनारायण व्रत के बारे में पूछा। विष्णु भगवान ने बताया कि यह व्रत सभी संकटों को दूर करने वाला है।
दूसरा अध्याय - काशी के एक गरीब ब्राह्मण ने सत्यनारायण व्रत किया, जिससे उसकी दरिद्रता समाप्त हो गई।
तीसरा अध्याय - एक व्यापारी ने यह व्रत किया और धन-संपत्ति प्राप्त की, लेकिन जब उसने व्रत से जुड़े नियम तोड़े, तो उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
चौथा अध्याय - एक राजा ने सत्यनारायण भगवान की उपेक्षा की, जिससे उसका राजपाट छिन गया। जब उसने पुनः व्रत किया, तो उसकी खुशहाली लौट आई।
पांचवां अध्याय - एक निषाद पुत्र ने व्रत करके अपने भाग्य को बदला और उसका जीवन सुख-समृद्धि से भर गया।
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माघी पूर्णिमा पर दान-पुण्य का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन किए गए दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। इस दिन अन्नदान, वस्त्रदान, गौदान और अन्य प्रकार के दान से कई गुना फल प्राप्त होता है। माना जाता है कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से जीवन के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार माघी पूर्णिमा 12 फरवरी को पड़ रही है, जो सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग से चली आ रही धार्मिक परंपराओं को जीवंत करती है। इस दिन किया गया सत्यनारायण व्रत और कथा मनोवांछित फल देने वाली मानी जाती है।
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