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चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है, जो अंधकार को दूर करने वाली और सभी शत्रुओं का नाश करने वाली हैं। कहा जाता है कि, मां कालरात्रि की पूजा से जीवन में सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और भक्तों को शांति और सुख की प्राप्ति होती है...
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मां कालरात्रि की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नामक राक्षसों ने एक बार तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। इन राक्षसों की चीख-पुकार से क्रोधित होकर देवता भगवान शिव के पास गए और अपनी समस्या का समाधान मांगा। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से इन राक्षसों को मारने के लिए कहा। तब माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया, लेकिन जब रक्तबीज को मारने का समय आया तो उनके शरीर से निकले रक्त से सैकड़ों-हजारों रक्तबीज राक्षस पैदा हो जाते थे।
रक्तबीज को वरदान था कि यदि उसके खून की एक बूंद भी जमीन पर गिरेगी तो उसके जैसा दूसरा राक्षस पैदा हो जाएगा। ऐसी स्थिति में, दुर्गा ने अपनी पूरी शक्ति से देवी कालरात्रि का निर्माण किया। इसके बाद मां दुर्गा ने राक्षस रक्तबीज का वध किया और जमीन पर गिरने से पहले उसके शरीर से निकले रक्त को मां कालरात्रि ने अपने मुंह में भर लिया। इस तरह से मां ने रक्तबीज का भी वध कर दिया।
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मां की पूजा विधि
माता का गंगाजल से अभिषेक करें। मैया को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी, सिंदूर, पीले और लाल पुष्प अर्पित करें। सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक कर फल, फूल और तिलक लगाएं। प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं। घर के मंदिर में धूपबत्ती और घी का दीपक जलाएं। दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। फिर पान के पत्ते पर कपूर और लौंग रख माता की आरती करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
मां कालरात्रि का भोग
मां कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है। ऐसे में पूजा के समय मां कालरात्रि को गुड़, गुड़ की खीर या गुड़ से बनी चीज का भोग लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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मां का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
मां कालरात्रि आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली मां जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि मां तेरी जय॥
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