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Ashwin Month: पितृ पक्ष हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण 16-दिवसीय अवधि है जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलती है। इस दौरान, लोग अपने पूर्वजों जिन्हें पितर कहा जाता है उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
यह अवधि श्राद्ध और तर्पण जैसे अनुष्ठानों के लिए समर्पित है, जिनका उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति सुनिश्चित करना है। इन अनुष्ठानों में कौवे का एक विशेष स्थान है और यह माना जाता है कि कौवे को भोजन कराए बिना श्राद्ध की प्रक्रिया अधूरी रह जाती है।
हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष में कई विशिष्ट अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से एक है पंचबलि। इसमें पांच अलग-अलग जीवों के लिए भोजन का अंश निकाला जाता है: गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चींटियां।
इन सभी में कौवे को दिया जाने वाला भोजन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन ऐसा क्यों? आइए, कौवे और पितरों के बीच के संबंध को विस्तार से समझते हैं।
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कौवे को पितरों का दूत क्यों माना जाता है
ज्योतिषीय और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, हिंदू धर्म में कौवे को श्राद्धभक्षी कहा गया है। इसका अर्थ है कि यह श्राद्ध के भोजन को ग्रहण करने वाला पक्षी है। सनातन परंपरा में कौवे को पितृदूत यानी पितरों का संदेशवाहक माना गया है।
यह मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पितर कौवे का रूप धारण कर धरती पर आते हैं और श्राद्ध में दिए गए भोजन को ग्रहण करते हैं। जब कौआ श्राद्ध का भोजन खा लेता है तो यह माना जाता है कि पितर तृप्त हो गए हैं और उनका आशीर्वाद हमें प्राप्त होता है।
इसी कारण से श्राद्ध में कौवे का भोजन अत्यंत आवश्यक माना जाता है। ऐसी मान्यता थी की प्राचीन काल में श्राद्ध का भोजन करने के बाद, बचे हुए भोजन को ऐसी जगह पर रखा जाता था जहां कौवे और कुत्ते जैसे जानवर उसे खा सकें।
इस क्रिया को कागबलि कहा जाता है। कागबलि के बिना श्राद्ध को अधूरा माना जाता है क्योंकि यह सीधे तौर पर हमारे पूर्वजों तक भोजन पहुंचाने का एक माध्यम है।
पितृ पक्ष में कौवे को क्यों कराए भोजन
यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया था। एक बार भगवान राम और माता सीता अपनी कुटिया में बैठे हुए थे।
उसी समय, देवराज इंद्र के पुत्र जयंत के मन में अहंकार आ गया। वह प्रभु श्रीराम के बल और सामर्थ्य की परीक्षा लेना चाहता था। अपनी इसी मूर्खता के कारण उसने एक कौवे का रूप धारण किया और भगवान राम के पास आया।
कौवा बना जयंत माता सीता के पास गया और उनके पैर में चोंच मारकर भागा। माता सीता के पैर से रक्त बहने लगा, जिससे उन्हें बहुत पीड़ा हुई।
यह देखकर भगवान राम को जयंत के इस दुस्साहस पर क्रोध आया। उन्होंने बिना देर किए एक तिनके को ही ब्रह्मास्त्र में बदल दिया और उसे कौवे के पीछे छोड़ दिया।
ब्रह्मास्त्र तिनके के रूप में जयंत के पीछे लग गया। जयंत उस बाण से बचने के लिए तीनों लोकों में भागा। वह सबसे पहले अपने पिता इंद्र के पास गया, लेकिन इंद्र ने उसे श्रीराम के विरोधी के रूप में देखकर शरण देने से मना कर दिया।
इसके बाद वह ऋषि-मुनियों और अन्य देवताओं के पास भी गया, लेकिन किसी ने भी उसे ब्रह्मास्त्र से बचाने का साहस नहीं किया। अंत में, देवर्षि नारद ने उसे समझाया कि भगवान राम ही एकमात्र ऐसे हैं, जो उसे इस संकट से बचा सकते हैं।
जयंत तुरंत भगवान राम की शरण में गया और अपने किए के लिए उनसे क्षमा मांगी। जब जयंत ने प्रभु राम के चरणों में अपना सिर झुकाया, तो राम ने उससे पूछा, "तुम्हें इस बाण से मुक्ति कैसे दी जाए? यह तो ब्रह्मास्त्र है और इसका कोई निवारण नहीं है।" तब जयंत ने उनसे एक आंख की बलि देने की बात कही। जयंत की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान राम ने ब्रह्मास्त्र से उसकी एक आंख नष्ट कर दी।
इस घटना के बाद, जब जयंत ने भगवान राम की स्तुति की, तो श्रीराम ने उसे यह वरदान दिया कि "आज से तुम्हें श्राद्ध और तर्पण का प्रतीक माना जाएगा। जो भी व्यक्ति पितृपक्ष में तुम्हें भोजन कराएगा, उसे यह माना जाएगा कि उसने सीधे अपने पितरों को भोजन कराया है। तुम्हें दिया गया भोजन तुम्हारे माध्यम से पितरों तक पहुंचेगा।"
इसी वरदान (पितृ पक्ष का राम से हैं संबंध) के कारण, कौवा पितरों का प्रतिनिधि बन गया। तब से यह मान्यता चली आ रही है कि पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराना अत्यंत शुभ और फलदायी होता है।
कौवे के महत्व को कई पौराणिक कथाओं से भी जोड़ा गया है। यह भी कहा जाता है कि कौवे ने ही अमृत की कुछ बूंदें पी ली थीं, जिसके कारण वह अमर हो गया।
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शकुन शास्त्र और कौवे के संकेत
शकुन शास्त्र ज्योतिष का एक प्राचीन भारतीय भाग है, जो हमारे आसपास होने वाली घटनाओं, जैसे पक्षियों, जानवरों, और प्रकृति की गतिविधियों के आधार पर भविष्य की शुभ-अशुभ घटनाओं का अनुमान लगाता है।
ये शुभ और अशुभ संकेतों का अध्ययन है में भी कौवे का विशेष उल्लेख है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, पितृ पक्ष के दौरान कौवे के व्यवहार को पितरों से जुड़े कुछ संकेतों के रूप में देखा जाता है:
घर पर कौवे का बार-बार आना: यदि कौआ बार-बार आपके घर आता है और आवाज निकालता है, तो इसे पितरों का संकेत माना जाता है।
सुबह-सुबह कौवे का बोलना: घर की मुंडेर या बालकनी पर सुबह-सुबह कौवे का बोलना किसी अतिथि के आगमन का संकेत देता है।
उत्तर दिशा में कौवे का बोलना: यदि कौआ घर की उत्तर दिशा में बार-बार बोलता है, तो यह शीघ्र ही धन की प्राप्ति का संकेत माना जाता है।
ढेर सारे कौवों का इकट्ठा होना: यदि अचानक आपके आसपास बहुत सारे कौवे जमा हो जाते हैं, तो यह आपके जीवन में बड़े बदलावों का संकेत हो सकता है।
चोंच में भोजन लिए कौआ: यदि आपको रास्ते में कोई कौआ अपनी चोंच में रोटी, मांस का टुकड़ा या कपड़ा दबाए हुए दिखे, तो यह आपकी किसी लंबे समय से लंबित कामना के पूरा होने का संकेत माना जाता है।
इन संकेतों के माध्यम से, लोग अपने पितरों से जुड़ने का प्रयास करते हैं और उनके आशीर्वाद को महसूस करते हैं।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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