रामायण और महाभारत से जुड़ी है पितृ पक्ष की पौराणिक कथा, जानें माता सीता का श्राप और श्राद्ध का महत्व

पितृ पक्ष की शुरुआत महाभारत के दानवीर कर्ण और रामायण की माता सीता की कहानियों से जुड़ी है। यह बताती हैं कि पितरों को श्रद्धापूर्वक अन्न-जल अर्पित करने से उनकी आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।

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Kaushiki
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pitru paksh पितृ पक्षहिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत गहरा महत्व है। यह 16 दिनों की एक ऐसी अवधि है जब हम अपने उन पूर्वजों को याद करते हैं जो इस दुनिया से जा चुके हैं।

ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों में हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप से धरती पर आते हैं और अपने परिवार को देखते हैं। इस दौरान उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर वापस लौट जाते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई? इसके पीछे एक बहुत ही महत्वपूर्ण पौराणिक कथाएं जुड़ी है, जो महाभारत काल और माता सीता से संबंधित है।

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महाभारत काल से जुड़ी है पितृ पक्ष की शुरुआत

महाभारत में एक महान योद्धा थे, कर्ण। वे दानवीर के रूप में जाने जाते थे और उन्होंने अपने जीवनकाल में सोने, चांदी और अन्य मूल्यवान वस्तुओं का दान किया।

जब उनकी मृत्यु हुई तो उनकी आत्मा स्वर्ग लोक पहुंची। वहां उन्हें भोजन के रूप में सोना और आभूषण दिए गए। यह देखकर कर्ण बहुत हैरान हुए और उन्होंने यमराज से इसका कारण पूछा।

यमराज ने कर्ण को बताया कि उन्होंने जीवनभर केवल सोने और आभूषणों का दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी अन्न या जल का दान नहीं किया। कर्ण ने कहा कि उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए वे ऐसा नहीं कर पाए।

यमराज ने कर्ण की मजबूरी को समझा और उन्हें 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी। कर्ण ने इन 16 दिनों में अपने पूर्वजों के लिए अन्न और जल का दान और श्राद्ध किया।

इन 16 दिनों को ही पितृ पक्ष कहा जाता है। पितृ पक्ष की यह परंपरा तभी से चली आ रही है, ताकि हर कोई अपने पूर्वजों को अन्न और जल अर्पित कर सके, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले।

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सीता जी का राजा दशरथ को पिंडदान

यह पौराणिक कथा रामायण काल (रामायण सीता) से जुड़ी है। जब भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता वनवास के दौरान गया में श्राद्ध करने पहुंचे, तो राम और लक्ष्मण सामग्री लाने चले गए।

उसी दौरान सीता जी ने देखा कि उनके ससुर राजा दशरथ की आत्मा पिंडदान की अपेक्षा से वहां खड़ी हैं। उनके पास कोई सामग्री नहीं थी, इसलिए सीता जी ने फल्गु नदी के किनारे पांच चीजों- फल्गु नदी, गौ माता, तुलसी, अग्नि और अक्षयवट (वट वृक्ष) को साक्षी मानकर राजा दशरथ का पिंडदान किया।

जब श्रीराम और लक्ष्मण वापस लौटे, तो उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि बिना सामग्री और पुत्र के पिंडदान कैसे हो सकता है। सीता जी ने कहा कि उन्होंने पिंडदान कर दिया है लेकिन फाल्गु नदी, गाय और तुलसी ने झूठ बोला क्योंकि उन्हें डर था कि भगवान राम उनके अपमान से क्रोधित हो जाएंगे।

केवल वट वृक्ष ने सत्य कहा। इससे क्रोधित होकर, सीता जी ने झूठ बोलने वालों को श्राप दिया, जबकि वट वृक्ष को अमरता का वरदान दिया। 

  • फल्गु नदी को श्राप: सीता जी ने फल्गु नदी को श्राप दिया कि वह केवल नाम की नदी रहेगी, लेकिन उसका पानी हमेशा भूमिगत रहेगा और ऊपर से सूखी रहेगी।

  • गाय को श्राप: गाय ने झूठ बोला था कि उसने पिंडदान नहीं देखा। सीता जी ने उसे श्राप दिया कि गाय को हर घर में पूजा जाएगा, लेकिन लोगों को उसका अपमान भी सहना पड़ेगा और उसे झूठा खाना भी मिलेगा।

  • तुलसी: सीता जी ने तुलसी को श्राप दिया था कि वह हमेशा पानी के लिए तरसेगी।

  • ब्राह्मण को श्राप: सीता जी ने ब्राह्मण को श्राप दिया कि वह कितना भी दान ले लेगा, उसकी दरिद्रता कभी दूर नहीं होगी।

  • केतकी के फूल को श्राप: केतकी के फूल ने भी झूठ बोला था। सीता जी ने उसे श्राप दिया कि उसे कभी भी भगवान की पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

इस तरह, पितृ पक्ष (पितृ पक्ष का राम से हैं संबंध) की परंपरा हमें हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का महत्व सिखाती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि हमारे जीवन में पितरों का आशीर्वाद कितना महत्वपूर्ण है।

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पितृ पक्ष का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

पितृ पक्ष का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। पुराणों में कहा गया है कि इन 16 दिनों में पितृलोक से पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा दिए गए तर्पण और श्राद्ध को ग्रहण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं।

  • पितृ ऋण से मुक्ति: हिंदू धर्म के अनुसार, हम पर तीन तरह के ऋण होते हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

  • पूर्वजों को मोक्ष: श्राद्ध कर्म से पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, जिससे वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।

  • पितृ दोष से छुटकारा: जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है, उन्हें इस दौरान श्राद्ध और तर्पण करने से बहुत लाभ मिलता है।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।

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