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भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के बाद आरती करना एक बेहद जरूरी और अभिन्न हिस्सा माना जाता है। यह सिर्फ एक कर्मकांड नहीं बल्कि श्रद्धा, प्रेम और आभार का प्रतीक है।
ऐसे में अक्सर लोग यह सवाल पूछते हैं कि जब पूजा पूरी हो गई तो फिर आरती क्यों की जाती है? इसके पीछे गहरा धार्मिक, आध्यात्मिक और यहां तक कि वैज्ञानिक कारण भी छिपा है।
आरती शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द 'आरात्रिक' से हुई है, जिसका अर्थ है 'अंधकार का नाश करने वाली क्रिया'। यह अंधकार सिर्फ बाहरी नहीं, बल्कि हमारे मन के अज्ञान, अहंकार और नकारात्मकता का भी प्रतीक है।
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आरती का आध्यात्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, आरती के दौरान जब दीपक की लौ जलती है तो वह भक्त के हृदय में बसे अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान और भक्ति का प्रकाश फैलाती है।
इसे पूजा का अंतिम चरण और भगवान का स्वागत करने का एक तरीका माना जाता है। मान्यता है कि अगर पूजा में कोई कमी रह गई हो या मंत्रों का उच्चारण सही न हुआ हो, तो आरती उसे पूरा करती है और पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।
यह एक ऐसा क्षण होता है जब भक्त पूरी तरह से भगवान को समर्पित हो जाता है, उनके दिव्य स्वरूप की स्तुति करता है और अपनी पूजा को अंतिम रूप देता है।
आरती का महत्व सिर्फ एक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई गहरे आध्यात्मिक और धार्मिक कारण छिपे हैं। यह हमें परमात्मा से जोड़ने का एक सरल और शक्तिशाली माध्यम प्रदान करता है।
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आरती के धार्मिक कारण
पूजा को पूर्णता देना: हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि बिना आरती के कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। यह एक प्रकार की क्षमा प्रार्थना है, जिसमें भक्त अनजाने में हुई गलतियों और त्रुटियों के लिए भगवान से क्षमा मांगता है। यह पूजा को पूर्णता प्रदान करती है और यह दर्शाती है कि भक्त ने अपनी ओर से हर संभव प्रयास किया है।
भगवान का स्वागत और विदाई: आरती को भगवान के स्वागत और विदाई का प्रतीक भी माना जाता है। जब दीपक की लौ घुमाई जाती है, तो यह माना जाता है कि भक्त अपने आराध्य का स्वागत कर रहा है। वहीं, जब आरती समाप्त होती है, तो यह भगवान को विदा करने का एक तरीका है, यह मानते हुए कि वे प्रसन्न होकर हमारे घर से जा रहे हैं।
पवित्रता और शुद्धि: आरती में कपूर, घी और धूप का उपयोग किया जाता है, जो वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाते हैं। इनकी सुगंध से पूरा वातावरण दिव्य हो जाता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
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आरती के पीछे वैज्ञानिक कारण
जहां धार्मिक महत्व इसे एक आध्यात्मिक क्रिया बनाता है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसके कई लाभ हैं।
वातावरण की शुद्धि: आरती में जलने वाले कपूर, घी और अन्य सुगंधित पदार्थ जैसे लौंग, इलायची और गुग्गुल से एक विशेष प्रकार का धुआं निकलता है। ये पदार्थ वायु में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और कीटाणुओं को नष्ट करते हैं। इससे वातावरण शुद्ध होता है और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
मानसिक एकाग्रता: आरती के दौरान बजने वाले घंटी, शंख और अन्य वाद्य यंत्रों की ध्वनि एक सकारात्मक कंपन पैदा करती है। यह कंपन मस्तिष्क की तरंगों को शांत करता है, जिससे मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। साथ ही, यह ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर मन को शांति प्रदान करती है।
सकारात्मक ऊर्जा का संचार: आरती के दौरान दीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा और उसके चारों ओर के कंपन से एक सकारात्मक ऊर्जा का क्षेत्र बनता है। यह ऊर्जा शरीर और मन को पुनर्जीवित करती है।
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आरती करने के नियम और विधि
आरती (दिव्य आरती) का पूरा फल पाने के लिए इसे सही विधि और नियमों के साथ करना बहुत जरूरी है। आरती करने का सही तरीका
स्थान और शुद्धता: आरती करने से पहले, सुनिश्चित करें कि आपका स्थान और मन दोनों शुद्ध हों।
दीपक तैयार करें: एक थाली में घी का दीपक, कपूर, फूल, धूप और अन्य सुगंधित वस्तुएं रखें।
दीपक घुमाना: सबसे पहले दीपक को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, और मुख पर एक बार घुमाएं। फिर पूरे शरीर पर सात बार घुमाएं।
घंटी और शंख: आरती करते समय एक हाथ से घंटी या शंख बजाएं।
क्षमा प्रार्थना: आरती समाप्त होने के बाद, हाथ जोड़कर भगवान से अपनी गलतियों और कमियों के लिए क्षमा मांगें।
आरती और पुराणों में उसका स्थान
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और भागवत पुराण जैसे कई प्राचीन हिंदू ग्रंथों में आरती के महत्व का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में आरती को ईश्वर की सेवा का एक श्रेष्ठ रूप बताया गया है।
पद्म पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति धूप, कपूर और घी के दीपक से अपने आराध्य की आरती करता है, उसे सभी प्रकार के भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो हमारे पूर्वजों द्वारा सदियों से चला आ रहा है और इसका महत्व आज भी उतना ही है।
यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो हमें सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी सशक्त बनाता है। यह हमें सिखाता है कि जिस प्रकार दीपक की लौ अंधकार को दूर करती है, उसी प्रकार हमें अपने जीवन में ज्ञान और सकारात्मकता का प्रकाश फैलाना चाहिए।
ज्योति को स्पर्श करें: आरती समाप्त होने के बाद, सभी भक्तों को दीपक की लौ पर हाथ फेरकर अपने सिर पर लगाना चाहिए। माना जाता है कि इससे भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
प्रसाद वितरण: आरती के बाद प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
मंदिर की परिक्रमा: यदि संभव हो, तो आरती के बाद मंदिर या पूजा स्थान की परिक्रमा करें। गंगा आरती
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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