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सर्व पितृ अमावस्या 2025: सनातन धर्म में सर्व पितृ अमावस्या का खास महत्व है। यह दिन पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है।
यह 15 दिवसीय अवधि पूरी तरह से हमारे पूर्वजों को समर्पित होती है। इस दौरान, वंशज अपने पितरों को स्मरण करते हुए उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि सर्व पितृ अमावस्या के दिन विधि-विधान से किए गए कर्मों से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर अपने लोक लौट जाते हैं।
बन रहे मंगलकारी संयोग
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक इस वर्ष, सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या 2025 पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। ज्योतिषियों के मुताबिक, इन शुभ योगों में पितरों (पितृपक्ष के जरूरी नियम) का श्राद्ध और तर्पण करने से तीन पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है और व्यक्ति पर उनके आशीर्वाद की वर्षा होती है।
इस दिन दान-दक्षिणा का विशेष महत्व है, जिससे पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इस अमावस्या के अगले दिन से ही शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो जाता है।
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शुभ मुहूर्त और योग
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, सर्व पितृ अमावस्या 2025 पर बन रहे शुभ मुहूर्त और योग इसे और भी विशेष बनाते हैं।
शुभ मुहूर्त
- अमावस्या तिथि की शुरुआत: 21 सितंबर 2025 को देर रात 12 बजकर 16 मिनट पर।
- अमावस्या तिथि का समापन: 22 सितंबर 2025 को देर रात 1 बजकर 23 मिनट पर।
तर्पण के लिए शुभ समय
कुतुप मुहूर्त (Kutup Muhurat): दिन में 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक। यह समय श्राद्ध कर्म के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।
रौहिण मुहूर्त (Rauhin Muhurat): दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से दोपहर 01 बजकर 27 मिनट तक।
अपराह्न काल (Aprahan Kal): दोपहर 01 बजकर 27 मिनट से 03 बजकर 53 मिनट तक। इस समय में तर्पण और पिंडदान करने से पितरों को शांति मिलती है।
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इस दिन बनने वाले मंगलकारी योग
ज्योतिषों के मुताबिक, (Pitru Paksha) सर्व पितृ अमावस्या 2025 पर कई शुभ योगों का निर्माण हो रहा है:
शुभ और शुक्ल योग: इस दिन शुभ योग संध्याकाल 7 बजकर 52 मिनट तक रहेगा, जिसके बाद शुक्ल योग का संयोग बनेगा। इन योगों में किए गए श्राद्ध कर्म से पितरों की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
सर्वार्थ सिद्धि योग: यह योग सुबह 9 बजकर 32 मिनट से शुरू हो रहा है और रात भर रहेगा। इस योग में किए गए श्राद्ध और तर्पण से सभी शुभ कार्यों में सिद्धि मिलती है।
शिववास योग: इस दिन शिववास योग भी बन रहा है, जब भगवान शिव देवी पार्वती के साथ कैलाश पर विराजमान रहेंगे। इस योग में पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
पितृ दोष और उसके संकेत
ज्योतिषों के मुताबिक, पितृ दोष तब लगता है जब पूर्वजों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है। इसके कुछ सामान्य संकेत इस प्रकार हैं:
पारिवारिक कलह: परिवार में बेवजह लड़ाई-झगड़े और अशांति रहना।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: बार-बार बीमारी और स्वास्थ्य का खराब रहना।
काम में बाधाएं: किसी भी काम में लगातार रुकावटें आना या सफलता न मिलना।
संतान संबंधी समस्याएं: संतान का न होना या उनकी उन्नति में बाधाएं आना।
इन संकेतों को अनदेखा नहीं करना चाहिए और पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध और तर्पण जैसे कर्म अवश्य करने चाहिए।
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पितृ दोष से मुक्ति के उपाय
ज्योतिषों के मुताबिक, सर्व पितृ अमावस्या के दिन किए गए कुछ खास कार्य अत्यंत शुभ और लाभकारी माने जाते हैं।
पवित्र स्नान और तर्पण:
- सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें।
- यदि यह संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है।
- इसके बाद, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करें।
ब्राह्मणों को भोजन:
- श्राद्ध कर्म के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें अपनी क्षमतानुसार दान-दक्षिणा देना बेहद पुण्यकारी होता है।
पशु-पक्षियों को भोजन:
- इस दिन गाय, कौवे, कुत्ते, और चींटियों को भोजन जरूर खिलाएं।
- कौवे (पितृ पक्ष में कौवे को क्यों कराए भोजन) को पितरों का रूप माना जाता है, इसलिए उनके लिए भोजन निकालना विशेष महत्व रखता है।
पीपल की पूजा:
- पीपल के पेड़ को पितरों का निवास स्थान माना जाता है।
- इस दिन (पितृपक्ष में पिंडदान) पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा करें और पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं, जिसमें काले तिल डाले गए हों।
- आप मंदिर के बाहर पीपल का एक पौधा भी लगा सकते हैं, जिससे पितृ दोष कम होता है।
दान-पुण्य:
- इस दिन अनाज, वस्त्र, और अन्य जरूरत की चीजों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है।
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