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Latest Religious News: हम जब भी शिवालय जाते हैं, तो भक्तों की लंबी कतारें देखते हैं। हर हाथ में एक लोटा जल होता है, जो भोलेनाथ को समर्पित होता है। आज के दौर में ये कहना सच है कि एक लोटा जल समस्याओं का हल है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, समुद्र मंथन में विषपान से शिवजी के शरीर में उत्पन्न हुई जलन को शांत करने के लिए देवताओं ने जलाभिषेक शुरू किया था। भारतीय संस्कृति में ये परंपरा सदियों पुरानी और बहुत व्यापक मानी जाती है।
आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि शिवलिंग से निकलने वाली तीव्र ऊर्जा को जल की शीतलता संतुलित करती है। लोग इसे केवल एक धार्मिक रस्म समझकर पूरा करते हैं। लेकिन इसके पीछे बहुत ही ठोस वैज्ञानिक और पौराणिक आधार मौजूद हैं। आइए जानें शिवलिंग पर क्यों चढ़ाया जाता है जल...
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क्यों शुरू हुआ महादेव का जलाभिषेक
समुद्र मंथन के समय अमृत से पहले 'हलाहल' नामक विष निकला था। ये विष इतना भयंकर था कि पूरी सृष्टि का विनाश कर सकता था। सृष्टि को बचाने के लिए गवान शिव ने उस विष को स्वयं पी लिया। उन्होंने विष को अपने गले में ही रोक लिया था।
विष के प्रभाव से शिवजी का कंठ नीला हो गया और शरीर जलने लगा। महादेव (भगवान शिव का पूजन) को इसी कारण से 'नीलकंठ' नाम से पुकारा जाता है। विष की उस जलन को शांत करने के लिए देवताओं ने जल अर्पित किया। तभी से भक्त अपने आराध्य को शीतलता प्रदान करने के लिए जल चढ़ाते हैं।
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वैज्ञानिक कारण: शिवलिंग और ऊर्जा का संतुलन
आमतौर पर शिवलिंग बेसाल्ट या ग्रेनाइट जैसे विशेष पत्थरों से बने होते हैं। भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक, ये पत्थर प्राकृतिक ऊर्जा और रेडिएशन को सोखते हैं। जल एक प्राकृतिक शीतलक है जो तापमान को नियंत्रित रखता है।
शिवलिंग पर निरंतर जल चढ़ाने से वहां का वातावरण संतुलित रहता है। ये क्रिया शिवलिंग से निकलने वाली तीव्र ऊर्जा को शांत करती है। इसी वजह से मंदिर परिसर में हमें असीम शांति का अनुभव होता है। यह उस स्थान के सूक्ष्म वातावरण को शुद्ध करने का एक तरीका है।
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मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति
जब हम एकाग्र होकर शिवलिंग पर धीरे-धीरे जल चढ़ाते हैं, तो वे ध्यान है। गिरते हुए जल की ध्वनि और स्पर्श मन को वर्तमान में लाता है। ये प्रक्रिया मस्तिष्क में अल्फा तरंगें पैदा करती है जिससे तनाव कम होता है।
एकाग्रता बढ़ने से व्यक्ति की मानसिक शक्ति और संकल्प मजबूत होते हैं। यह क्रिया मन की नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा भरती है। शिव पर जल अर्पण करना वास्तव में खुद को शांत करने की मेथड है।
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शुद्धता और समर्पण का प्रतीक है जलाभिषेक
हिंदू धर्म में जल को सृष्टि का आधार और सबसे शुद्ध तत्व माना जाता है। जल चढ़ाना हमारे अहंकार को शिव के चरणों में त्यागने का प्रतीक है। भक्त अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शीतल जल का सहारा लेते हैं।
सावन के महीने में इस परंपरा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। प्रकृति और पुरुष के मिलन को जल के माध्यम से दर्शाया जाता है। यह सरल सा कार्य हमें अनुशासन और धैर्य की शिक्षा देता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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