महाकुंभ 2025: जानिए सबसे बड़े अखाड़े के महत्व और आकर्षण के बारे में

महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू हो चुका है और 26 फरवरी तक चलेगा। इसमें अखाड़ों का खास महत्व होता है। चलिए जानते हैं महाकुंभ में सबसे बड़ा अखाड़े और उसकी खासियत के बारे में

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महाकुंभ मेला, 13 जनवरी से शुरू हो चुका है और इसका समापन 26 फरवरी को होगा। ये भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इस मेले में देश और दुनिया भर से लाखों भक्त आते हैं। इस मेले में अखाड़ों का विशेष महत्व होता है, जहां साधु-संतों का प्रवेश और सार्वजनिक आयोजन मुख्य आकर्षण होते हैं।

हर अखाड़ा अपनी विशेषता और महत्व से पहचाना जाता है। तो ऐसे में आइए जानते हैं महाकुंभ में सबसे बड़ा अखाड़ा कौन सा है और उसकी खासियत क्या है...

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अखाड़ा क्या है

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अखाड़ा शब्द सुनते ही मन में कुश्ती का ख्याल आता है, लेकिन साधु-संतों के संदर्भ में अखाड़ा एक प्रकार का धर्मिक केंद्र होता है। ये एक तरह से मठ जैसा होता है, जहां साधु शस्त्र विद्या (युद्ध कला) में निपुण होते हैं और धर्म की शिक्षा देते हैं। ये अखाड़े शास्त्रों और पूजा विधियों में माहिर होते हैं और समाज में धार्मिक कार्यों को फैलाते हैं।

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अखाड़े की शुरुआत कैसे हुई

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अखाड़ों की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। कहा जाता है कि, उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए शस्त्र विद्या में निपुण साधुओं का संगठन तैयार किया। शंकराचार्य ने ये कदम समाज में धार्मिक और शिक्षा के प्रसार के लिए उठाया। आज भी हर अखाड़ा शंकराचार्य के उद्देश्यों का पालन करता है।

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अखाड़े की संख्या और श्रेणियां

महाकुंभ में कुल 13 अखाड़े होते हैं। इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जाता है:

  • शैव अखाड़े: ये अखाड़े भगवान शिव के भक्त होते हैं और उनका पूजन करते हैं। इनके अनुयायी शास्त्रों और शस्त्र विद्या में पारंगत होते हैं।
  • वैष्णव अखाड़े: ये अखाड़े भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं। इनका विश्वास भगवान विष्णु के चरणों में होता है।
  • उदासीन अखाड़े: इन अखाड़ों के अनुयायी 'ॐ' की पूजा करते हैं, जो हिंदू धर्म में एक पवित्र ध्वनि मानी जाती है।

महाकुंभ में सबसे बड़ा अखाड़ा कौन सा है?

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महाकुंभ में सबसे बड़ा और प्रमुख अखाड़ा श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा है, जो शैव संप्रदाय का हिस्सा है। इस अखाड़े के इष्ट देव भगवान शिव और रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इस अखाड़े की स्थापना 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में हुई थी।

ये अखाड़ा खासतौर पर नागा साधुओं के लिए प्रसिद्ध है, जिनकी संख्या लाखों में होती है। यहां के साधु अपनी विशेष साधना और जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं।

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जूना अखाड़ा की विशेषता 

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जूना अखाड़ा की पेशवाई (मंडली का प्रवेश) बहुत भव्य और आकर्षक होती है। पेशवाई के दौरान इस अखाड़े के साधु-महात्मा हाथी, रथ और अन्य शाही सामान के साथ दिखते हैं। इस अखाड़े की पेशवाई महाराजाओं की शान-ओ-शौकत जैसी होती है, जिसमें कई प्रकार की शाही चीजें और वाहन शामिल होते हैं।

इस अखाड़े का आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज हैं और अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरी हैं। जूना अखाड़ा में नागा साधुओं की सबसे ज्यादा संख्या पाई जाती है। ये साधु बिना कपड़ों के रहते हैं और अपने शरीर को भगवान शिव की तरह तिलक से सजाते हैं। इनकी उपस्थिति महाकुंभ में एक विशेष आकर्षण होती है।

अखाड़े का महत्व

महाकुंभ में अखाड़े का बहुत बड़ा महत्व होता है। ये अखाड़े सिर्फ साधु-संतों के समूह नहीं होते, बल्कि वे समाज में धार्मिक शिक्षा, साधना और संस्कारों का प्रचार भी करते हैं। इनकी पेशवाई, उनका वैभव और उनके अनुयायी बहुत सारी श्रद्धाओं को आकर्षित करते हैं। महाकुंभ में हर अखाड़े का प्रवेश धार्मिक अनुष्ठान से भरा होता है और ये श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुभव बन जाता है।

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