ममता कुलकर्णी ने महाकुंभ में लिया संन्यास, बनेंगी महामंडलेश्वर

बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी 25 साल बाद भारत लौटीं और महाकुंभ में संन्यास ले लिया। अब वह नए नाम से जानी जाएंगी और महामंडलेश्वर की उपाधि लेंगी।

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Ravi Singh
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MahaKumbh Mamta Kulkarni

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बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी अब संन्यासी बन गई हैं। अब वह अभिनेत्री नहीं रहेंगी, बल्कि महामंडलेश्वर कहलाएंगी। महाकुंभ के लिए 25 साल बाद भारत लौटीं ममता 144 साल बाद प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में भगवा गेटअप में नजर आईं। माथे पर चंदन, गले में रुद्राक्ष की माला और कंधे पर झोला लिए वह किन्नर अखाड़े पहुंचीं। वहां उन्होंने आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मुलाकात की। और अब कहा जा रहा है कि उनका पट्टाभिषेक होगा।

25 साल बाद भारत आईं

ममता कुणालकर्णी ने दिसंबर 2024 में एक वीडियो शेयर कर बताया था कि वे 25 साल बाद भारत लौटी हैं। वे मुंबई में हैं। 2013 में वे कुंभ मेले में शामिल हुई थीं और ठीक 12 साल बाद 2025 में होने वाले महाकुंभ के लिए वे वापस लौटी हैं। 'क्रांतिवीर', 'करण अर्जुन', 'सबसे बड़ा खिलाड़ी', 'आंदोलन' और 'बाजी' जैसी फिल्मों में नजर आईं एक्ट्रेस अब संन्यासी बन गई हैं।

नाम बदला जाएगा ममता कुलकर्णी का 

किन्नर अखाड़े के अंदर की तमाम तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई थीं. जहां वो महाकुंभ और धर्म-अध्यात्म के मुद्दों पर घंटों बात करती नजर आईं। उन्होंने संगम में डुबकी भी लगाई. उन्होंने कहा कि यहां आना उनका सौभाग्य है। वो धन्य हो गई हैं। महामंडलेश्वर बनने के बाद ममता कुलकर्णी का नाम भी बदल जाएगा। वो ममता नंद गिरी के नाम से जानी जाएंगी। एक्ट्रेस का कहना है कि उनका जन्म भगवान के लिए हुआ है। वो अब दोबारा एक्टिंग फील्ड में नजर नहीं आएंगी।

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पट्टाभिषेक होगा ममता कुलकर्णी का

प्रयागराज पहुंचकर आचार्य महामंडलेश्वर से मुलाकात के बाद बताया गया कि वह उनके मार्गदर्शन में महामंडलेश्वर बनेंगी और इसके लिए किन्नर अखाड़े ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। शाम तक यह प्रक्रिया भी पूरी हो जाएगी। वह संगम के संतों के साथ स्नान करेंगी और पिंडदान करने के बाद महामंडलेश्वर की उपाधि धारण करेंगी

महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया

महामंडलेश्वर बनने के लिए कठिन तपस्या और समय लगता है, सबसे पहले आप किसी गुरु से जुड़कर आध्यात्म सीखते हैं, उस दौरान आपका आचरण, पारिवारिक मोह त्यागना, साधना सब कुछ गुरु की देखरेख में होता है। जब गुरु को लगता है कि आप इसके योग्य हो गए हैं तो आपको दरबान से लेकर खाने की दुकान, रसोई आदि जैसे कामों में लगा दिया जाता है। धीरे-धीरे सालों बाद जब आप ये सब त्याग कर पूरी तरह आध्यात्म में रम जाते हैं और गुरु को लगता है कि अब आप इसके लिए तैयार हैं तो गुरु जिस अखाड़े से जुड़े होते हैं, उन अखाड़ों में आपकी योग्यता के अनुसार आपको महामंडलेश्वर की दीक्षा दी जाती है।

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होती है आपराधिक बैकग्राउंड की जांच

आवेदन करने के बाद अखाड़ा परिषद के लोग सबसे पहले आपके गुरु पर भरोसा करते हैं, गुरु द्वारा लाए गए शिष्यों से उनका बैकग्राउंड मांगा जाता है, इसके बाद अगर किसी पर कोई शक होता है तो अखाड़ा परिषद खुद ही आवेदक के घर, परिवार, गांव, तहसील, थाने की क्रॉस चेकिंग करती है, आपराधिक बैकग्राउंड की जांच करवाती है। अगर कोई किसी भी जानकारी में योग्य नहीं पाया जाता है तो उसे दीक्षा नहीं दी जाती और उसे अस्वीकार कर दिया जाता है।

ये है प्रक्रिया 

  • सबसे पहले अखाड़े को आवेदन देना होता है। फिर संन्यास की दीक्षा देकर संत बनते हैं। संन्यास काल के दौरान जमा धन जनहित के लिए देना होगा।
  • इसके बाद नदी किनारे मुंडन फिर स्नान कराते हैं। परिवार और खुद का तर्पण कराते हैं। पत्नी, बच्चों समेत परिवार का पिंड दान कर संन्यास परंपरा के मुताबिक, विजय हवन संस्कार होता है।
  • फिर दीक्षा दी जाती है। गुरु बनाकर चोटी काटा जाता हैं।
  • इसके बाद अखाड़े में दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से पट्‌टाभिषेक होता है और अखाड़े की ओर से चादर भेंट की जाती है।
  • जिस अखाड़े का महामंडलेश्वर बना है, उसमें उसका प्रवेश होता है। फिर साधु-संत, आम लोग और अखाड़े के पदाधिकारियों को भोजन करवाकर दक्षिणा देनी होती है।
  • खुद का आश्रम, संस्कृत विद्यालय, ब्राह्मणों को नि:शुल्क वेद की शिक्षा देना होती है।
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