महाकुंभ में नागा साधु हमेशा लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। नागा साधुओं की अजीब दुनिया ज्यादातर लोगों के लिए चर्चा का विषय होती है क्योंकि सांसारिक मोह-माया त्याग चुके नागा साधु एक अलग तरह का जीवन जीते हैं। नागा साधु 17 श्रृंगार करके शिव भक्ति में लीन रहते हैं। नागा साधुओं के बारे में आज भी लोगों को थोड़ी बहुत जानकारी है, लेकिन क्या आप महिला नागा साधुओं के बारे में जानते हैं? आइए, जानते हैं महिला नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में...
कौन बनाता है महिला नागा साधु
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Women Naga Sadhu बनने के बाद सभी साधु-साध्वियां उन्हें माता कहकर बुलाते हैं। माई बाड़ा, जिसे अब दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा कहा जाता है, में महिला नागा साधु हैं। नागा साधु-संतों के बीच एक उपाधि है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासी संप्रदाय हैं। इन तीन संप्रदायों के अखाड़े नागा साधु बनाते हैं।
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पूजा-पाठ ही जीवन का मुख्य आधार
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इनका जीवन पुरुष नागा साधुओं से अलग होता है। महिला नागा साधु सांसारिक जीवन छोड़कर आध्यात्मिक जीवन अपनाती हैं। वे अपने गृहस्थ जीवन का त्याग कर देती हैं। उनका दिन पूजा-पाठ से शुरू होता है और पूजा-पाठ से ही खत्म होता है। महिला नागा साधुओं को शिव-पार्वती के अलावा देवी काली की भी भक्त माना जाता है। पूजा-पाठ ही उनके जीवन का मुख्य आधार होता है। उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया

महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का रास्ता बेहद कठिन है। इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है। गुरु को अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है। महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए पिंडदान और मुंडन करवाना भी अनिवार्य है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया में महिलाओं को कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
माता कहकर करते हैं संबोधित
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महिला नागा साधु बनने के बाद सभी साधु-साध्वियां उन्हें आदरपूर्वक 'माता' कहकर पुकारते हैं। पुरुष नागा साधु दो तरह के होते हैं, एक जो वस्त्र धारण करते हैं और दूसरे जो दिगंबर होते हैं। यह उनकी मर्जी होती है कि वे अपने शरीर पर कुछ वस्त्र धारण करना चाहते हैं या पूरी तरह नग्न रहना चाहते हैं, लेकिन महिला नागा साधुओं के लिए नियम है कि उन्हें भगवा वस्त्र धारण करना होता है। वे दिगंबर नहीं हो सकतीं। कुंभ के दौरान महिला नागा साधुओं के लिए एक माई बाड़ा बनाया जाता है, जिसमें सभी महिला नागा साधु माताएं रहती हैं।
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निर्वस्त्र नहीं रहतीं महिला नागा साधु
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जिस तरह पुरुष नागा साधु नग्न रहते हैं, उसी तरह महिला नागा साधुओं के लिए भी नग्न रहने का कोई नियम नहीं है। महिला नागा साधु दिगंबर (बिना कपड़ों के) नहीं रहती हैं, बल्कि वे भगवा वस्त्र पहनती हैं। यह कपड़ा सिला हुआ नहीं होता है। यह रंग उनकी धार्मिक आस्था का प्रतीक है। महिला नागा साधु लंबा भगवा रंग का कपड़ा इस तरह पहनती हैं कि उनका पूरा शरीर ढका रहे।
बिना पका भोजन करती हैं महिला साधु
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नागा साधुओं की दिनचर्या आध्यात्मिक साधना से भरी होती है। वे सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं और भगवान शिव का नाम जपते हैं। दोपहर के भोजन के बाद वे फिर से भगवान शिव का नाम जपते हैं। शाम को वे भगवान दत्तात्रेय की पूजा करते हैं। उनका भोजन सादा होता है, जिसमें जड़ें, फल, जड़ी-बूटियाँ और कई तरह की पत्तियाँ शामिल होती हैं। महिला नागा साधु केवल प्राकृतिक और बिना पका हुआ भोजन ही खाती हैं।
पीरियड के दौरान गंगा स्नान का नियम
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कुंभ मेले में महिला नागा साधु भी हिस्सा लेती हैं। वे किसी भी परिस्थिति में दिगंबर नहीं रह सकती हैं। महिला नागा साध्वी भगवा रंग के बिना सिले हुए कपड़े पहनती हैं। इस पोशाक की वजह से वे पीरियड्स के दौरान भी प्रवाह वाली जगह पर एक छोटा कपड़ा रख सकती हैं। साथ ही, पीरियड्स के दौरान वे गंगा में स्नान नहीं करती हैं, बस गंगा जल छिड़कती हैं।