BHOPAL. नगरीय निकाय के हाल ही में आए नतीजों पर बीजेपी अपनी पीठ थपथपा रही है। जबकि हकीकत ये है कि बीजेपी से कम मेहनत और कम ताकत झोंक कर भी कांग्रेस ज्यादा बेहतर नतीजे हासिल करने में कामयाब रही है। पांच जिलों के 19 निकायों में जीत के लिए बीजेपी ने सत्ता और संगठन दोनों की पूरी ताकत झोंक दी थी, जबकि कांग्रेस के चंद ही बड़े नेताओं ने प्रचार की कमान संभाली और कई जगह जीत हासिल की। जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ भी शामिल है।
निकाय चुनाव में पूरी ताकत लगाने पर भी बीजेपी वो जीत हासिल नहीं कर सकी
19 नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों में 11 पर बीजेपी और 8 पर कांग्रेस ने बाजी मारी है। देखने में कांग्रेस का आंकड़ा छोटा नजर आता है। जिसे देखकर सीएम शिवराज सिंह चौहान इसे विकास की जीत बताते हैं और वीडी शर्मा सरकार की योजनाओं और मेहनत की जीत बताते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी भी जब अपने गिरेबान में झांककर देखेगी तो उसे ये अहसास हो जाएगा कि पूरी ताकत लगाने के बावजूद वो पूरी जीत हासिल नहीं कर सकी है। इन चुनावों में बीजेपी के पास सत्ता और संगठन का बल तो था ही, ये चुनाव हाल ही में लागू हुए पेसा एक्ट का भी लिटमस टेस्ट था। पर बीजेपी का वो दांव भी फेल ही नजर आ रहा है, जबकि कांग्रेस चंद नेताओं के प्रचार और मेहनत से ही इतनी सीटें जीतने में कामयाब रही। जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज नेता का गढ़ भी शामिल है जहां बीजेपी का तकरीबन सूपड़ा ही साफ है।
बीजेपी की जमीनी पकड़ कमजोर हो रही है
चुनाव से चंद माह पहले आए नगरीय निकाय चुनाव के ये नतीजे सिर्फ चुनाव परिणाम ही नहीं प्रदेश की जमीनी हकीकत भी है जो बीजेपी को आइना दिखाने के लिए काफी है। बीजेपी ये अंदाजा लगा सकती है कि उसकी जमीनी पकड़ कितनी कमजोर हो रही है इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। कांग्रेस भले ही आठ सीटें जीत सकी हो लेकिन ये जीत भी बीजेपी की तैयारी और प्लानिंग पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
कांग्रेस कम खर्च में ज्यादा सीट जीतने में कामयाब रही
बीजेपी के जबरदस्त चुनाव प्रचार, मंत्री से लेकर कई बड़े नेताओं की सभाओं के बावजूद कांग्रेस अधिकांश स्थानों पर अपना परचम लहराने में कामयाब रही है।
- दिग्विजय सिंह के गृह क्षेत्र गुना जिले की राघौगढ़ विजयपुर नगर पालिका में कांग्रेस ने कब्जा कायम रखा है। यहां 24 में से 16 वार्ड पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। यहां याद दिलाना जरूरी है कि गुना केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी गढ़ है।
ये आंकड़े जाहिर करने के लिए काफी हैं कि जितना चुनावी असला बीजेपी ने खर्च किया सीटों का मुनाफा उससे कम ही है, जबकि कांग्रेस कम खर्च में ज्यादा सीट जीतने में कामयाब रही।
जनजातीय गौरव दिवस-पेसा एक्ट भी प्रभावी नहीं रहे
बीजेपी की मेहनत और कांग्रेस की कोशिशों के लिहाज से देखा जाए तो कांग्रेस हर सीट पर बीजेपी को कांटे की टक्कर देने में कामयाब रही है। वो भी तब जब आदिवासी वोटर्स को लुभाने के लिए बीजेपी ने तमाम दांवपेंच चले हैं। जनजातीय गौरव दिवस मनाने वाली बीजेपी ने इस बार पेसा एक्ट भी लागू कर दिया, लेकिन ये तीर भी निशाने पर लगा हो फिलहाल ऐसा नजर नहीं आता। बीजेपी ने अगर इन नतीजों से सीख नहीं ली तो क्या नतीजे 2018 से भी ज्यादा बुरे हो सकते हैं।
बीजेपी की योजनाओं का ज्यादा असर देखने को नहीं मिला
नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे जब जब आते हैं बीजेपी के लिए बुरी खबर ही लेकर आते हैं। पिछले साल आए 11 नगर निगमों के परिणाम ही ये चेताने के लिए काफी थे कि अब जमीनी पकड़ ढीली होती जा रही है। 11 की 11 निगमों पर काबिज बीजेपी ने इस बार सिर्फ 7 सीटों पर जीत हासिल की। बाकी कांग्रेस के हिस्से में गई और एक आप के खाते में चली गई। हालांकि, इन नतीजों से सबक लेकर बीजेपी संगठन ने ये जताने की खूब कोशिश की कि अब बूथ लेवल पर मजबूती का काम शुरू हो चुका है। माइक्रो लेवल की प्लानिंग के तहत आयुष्मान कार्ड बनाने में तेजी लाना, पेसा एक्ट का लाभ देना, वन अधिकारों को मजबूत करने जैसे कई काम भी किए गए, लेकिन उसका असर जितना सोचा था क्या वाकई उतना देखने को मिला है।
बीजेपी डैमेज कंट्रोल में खास कामयाब नहीं रही
कांग्रेस ने हर सीट पर बीजेपी को कड़ा मुकाबला दिया है। खासतौर से राघोगढ़ विजयपुर की नगरपालिका में, इसमें कोई संदेह नहीं कि यहां दिग्विजय सिंह की पकड़ मजबूत है। नगर निगमों के नतीजों के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी, असंतोष और नेताओं की आपसी कलह को भांप चुकी थी। तकरीबन छह माह बाद आए ये नतीजे फिर ये साबित कर रहे हैं कि बीजेपी डैमेज कंट्रोल में खास कामयाब नहीं रही है।
हर गुजरता हुआ दिन राजनैतिक दलों को चुनाव के और करीब ले जा रहा है। बीजेपी की माइक्रो लेवल की प्लानिंग में कहां क्या कमी छूट रही है अब इसका और तेजी से आंकलन करना जरूरी है।
निकाय चुनाव के नतीजे बीजेपी में आपसी कलह को जाहिर कर रहे हैं
बीजेपी में अंदरूनी कलह, नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक कितनी नाराजगी है ये पहले ही किसी से छिपा नहीं है। इसका नतीजा ये है कि कम मेहनत के बावजूद कांग्रेस बीजेपी से ज्यादा बेहतर नतीजे हासिल कर रही है। वैसे भी सियासी हालात देखकर ऐसा लगता है कि दोनों दल पहलू बदल रहे हैं। बड़े नेताओं की कलह और फूट के लिए बदनाम कांग्रेस एक छत के नीचे बंधी नजर आती है। बीजेपी का डिसीप्लीन कलह को सतह पर आने से रोकने की कोशिश में है, लेकिन हर अंचल में आपसी कलह कितनी है ये ऐसे नतीजों में जाहिर हो ही रहा है। अपने अपने क्षेत्र की ये लड़ाई और नेताओं का मनमुटाव उन योजनाओं और फैसलों पर पानी फेर रहा है जिन्हें बीजेपी के दिग्गज नेता जोरशोर से लागू करने पर जोर दे रहे हैं। तस्वीर का रूख यही रहा तो सत्ता का चेहरा बदलने में भी देर नहीं लगेगी।