राघौगढ़ से बिना चुनाव लड़े नपा अध्यक्ष बने थे दिग्विजय, यहीं से की थी राजनीतिक पारी की शुरुआत

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Jitendra Shrivastava
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राघौगढ़ से बिना चुनाव लड़े नपा अध्यक्ष बने थे दिग्विजय, यहीं से की थी राजनीतिक पारी की शुरुआत

BHOPAL. गुना जिले की राघौगढ़ नगरपालिका। कई कोशिशों के बाद भी भाजपा यहां पिछले 45 साल से कांग्रेस का किला नहीं तोड़ सकी है। यह वही नगरपालिका है, जहां से दिग्विजय सिंह ने राजनीतिक पारी की शुरुआत की। 1969 में वे इस नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए। फिर प्रदेश के CM बनने से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाई। सोमवार 23 जनवरी को आए नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम देखें तो राघौगढ़ के 24 वार्डों में से कांग्रेस को 16 और भाजपा को 8 वार्डों में जीत मिली। हालांकि, चुनाव प्रचार के दौरान इस बार दिग्विजय सिंह राघौगढ़ नहीं आ पाए, लेकिन नगरपालिका से जुड़े उनके किस्सों और नपा अध्यक्ष के तौर पर उनके द्वारा कराए गए कामों की चर्चा खूब हुई।





बिना चुनाव लड़े कैसे नगर पालिका अध्यक्ष बने दिग्विजय सिंह 





राजनीति में आने की दिग्विजय सिंह की रुचि कतई नहीं थी। वे इंदौर से इंजीनियरिंग कर राघौगढ़ आए। इस बीच उनके पिता का निधन हो गया। वह तो घर-परिवार और अपनी जमीन की देखभाल करने आए थे। 1969 में राघौगढ़ नगरपालिका के चुनाव हुए। इसमें किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। 7 वार्डों में से एक में कांग्रेस, 3 में मजदूर पार्टी और 3 जनसंघ से पार्षद चुनकर आए। ऐसे में अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पा रहा था। कुछ लोगों ने विचार किया कि क्यों न दिग्विजय सिंह से संपर्क किया जाए? वह युवा हैं, पढ़े-लिखे हैं। उन्होंने किले पर जाकर दिग्विजय सिंह के सामने अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा। दिग्विजय ने मना कर दिया। सभी लोग वापस लौट आए। कोई अच्छा कैंडिडेट नहीं मिल रहा था। थक हारकर दोबारा फिर प्रयास किया गया। दिग्विजय सिंह ने कहा कि वह इसी शर्त पर राजी होंगे, जब सभी पार्षद एकमत हों। इस पर सभी पार्षद मान गए। इस तरह बिना चुनाव लड़े दिग्विजय सिंह पहली बार नगरपालिका अध्यक्ष बन गए। उन्हें को-ऑप्ट कर पार्षद बनाया गया था। यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। उनका कार्यकाल दो साल का रहा।





1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद दिग्विजय सिंह विधानसभा चुनाव जीते





नरेंद्र लाहोटी आगे बताते हैं कि इसके बाद दिग्विजय सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह युवक कांग्रेस में सक्रिय हो गए। 1977 में विधानसभा चुनाव होने थे। चारों तरफ जनता पार्टी की लहर थी। कांग्रेस ने राघौगढ़ विधानसभा सीट से दिग्विजय सिंह को उतारा। उस समय मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रामगोपाल तिवारी थे। जनता पार्टी की लहर के बावजूद दिग्विजय सिंह विधानसभा चुनाव जीते। यहीं से राज्य और राष्ट्रीय नेतृत्व की नजरों में वह आए। उनका सफर आगे बढ़ा, फिर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और दो बार मुख्यमंत्री बने।





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प्रचार में नहीं आ पाए तो दिग्गी ने वोटिंग के 2 दिन पहले लिखी चिट्‌ठी





कांग्रेस की तरफ से विधायक जयवर्धन सिंह ने ही चुनाव की पूरी कमान संभाली। उनके अलावा केवल चांचौड़ा विधायक लक्ष्मण सिंह ने लगातार प्रचार किया। वहीं, पूर्व मंत्री पीसी शर्मा और चंदेरी विधायक गोपाल सिंह चौहान एक-एक दिन प्रचार करने पहुंचे थे। हालांकि, उन्होंने कोई बड़ी सभा नहीं की। जयवर्धन सिंह ने भी अपने भाषणों में नगरपालिका क्षेत्र में हुए विकास कार्यों पर ही वोट देने की अपील की। साथ कि नागरिकों के किले के साथ संबंध और हर मुसीबत के समय में नागरिकों के साथ खड़े रहने की बात को ही रेखांकित किया। पूरे चुनाव के दौरान दिग्विजय भारत जोड़ो यात्रा में ही रहे। उन्होंने चुनाव से दो दिन पहले केवल एक चिट्ठी जारी की, जिसमें उन्होंने जिक्र किया कि नए वोटर और युवा अपने बुजुर्गों से पूछें कि पहले राघौगढ़ कैसा था। राघौगढ़ में लगातार विकास हुआ है।





बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी, पर नहीं हुई कामयाब





भारतीय जनता पार्टी की ओर से मध्यप्रदेश के पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया, ऊर्जा मंत्री प्रदुम्न सिंह तोमर, राजगढ़ सांसद रोडमल नागर, भाजपा के प्रदेश मंत्री और जिला प्रभारी राहुल कोठारी, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती, गुना के पूर्व विधायक और पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष राजेंद्र सिंह सलूजा, चांचौड़ा की पूर्व विधायक और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ममता मीना, पूर्व राजगढ़ विधायक अमरसिंह यादव, वर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष अरविंद धाकड़ ने प्रचार-प्रसार किया। प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने गलियों-गलियों में घूमकर प्रचार किया। उन्होंने ठेला और रेहड़ी वालों से जाकर वोट की अपील की। वहीं पंचायत मंत्री ने आम सभाएं की। रुठियाई की सभा में तो उन्होंने खुले तौर पर कांग्रेसियों को भाजपा में आने का न्योता दे दिया।



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