मप्र के 37 जिलों में लोकपाल की नियुक्ति ही नहीं हो पाई, भ्रष्टाचार के मामले में मध्य प्रदेश में दूसरे नंबर पर है पंचायत विभाग

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Rahul Sharma
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मप्र के 37 जिलों में लोकपाल की नियुक्ति ही नहीं हो पाई, भ्रष्टाचार के मामले में मध्य प्रदेश में दूसरे नंबर पर है पंचायत विभाग

Bhopal. लोकायुक्त के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार (Corruption) के मामलों में राजस्व विभाग के बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग दूसरे नंबर पर है। भ्रष्टाचार के इन मामलों में सबसे ज्यादा पंचायत सरपंच—सचिव ही पकड़े जाते हैं। करीब 29 हजार रुपए मासिक वेतन पाने वाले तृतीय श्रेणी के पंचायत सचिव और 4250 रूपए मासिक मानदेय (31 दिसंबर 2022 तक मानदेय 1750 रूपए था) पाने वाले सरपंच लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के छापों में अकूत संपत्ति के मालिक निकले हैं। सरपंच सचिव के गठजोड़ ऐसा कि 5 सालों में ये लाखों रूपए कमा लेते हैं। 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस पर आज हम बात करेंगे सरपंच—सचिव के ऐसे ही गठजोड़ की। साथ ही इन सवालों के जवाब भी देंगे कि आखिर क्यों इन पर लगाम लगाना मुश्किल है। 



1 साल में सिर्फ 15 जिलों में ही लोकपाल की तैनाती 



पंचायतों में बेलगाम हो चुके भ्रष्टाचार को रोकने सरकार ने जनवरी 2022 में हर जिला पंचायत में लोकपाल की तैनाती करने का फैसला किया। लोकपाल को पंचायतों में होने वाले मनरेगा के काम, पंचायत निधि का उपयोग, भुगतान और सोशल ऑडिट सहित 22 बिंदुओं की समीक्षा और शिकायतों का निराकरण करना था। शिकायत मिलने पर 15 दिन में उसके निपटारा करने के दावे भी किए गए, पर ये व्यवस्था जमीन पर नहीं उतर सकी। 1 साल में सिर्फ सागर, नर्मदापुरम जैसे 15 जिलों में ही लोकपाल की नियुक्ति हुई, उसका भी प्रचार—प्रसार नहीं होने से आमजन तक इसकी कोई जानकारी ही नहीं पहुंची। 37 जिलों में लोकपाल की नियुक्ति की पिछले एक साल से सिर्फ तैयारी ही चल रही है।



यह है कमीशनखोरी का पूरा गणित



पंचायत स्तर पर सभी फैसले को कागजी अमलीजामा पहनाने में सरपंच—सचिव के हस्ताक्षर अनिवार्य है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के इस पूरे खेल में दोनो का गठजोड़ रहता है, क्योंकि बिना सरपंच—सचिव के साइन के पंचायत स्तर पर कुछ भी नहीं हो सकता। निर्माण से संबंधित जो भी काम होते हैं, उनमें 20% से 25% कमीशन के रूप में बंट जाता है। इस कमीशन में हिस्सा सरपंच, सचिव से लेकर जनपद में पदस्थ अधिकारियों तक का होता है। इसके अलावा सरपंच-सचिव मनरेगा के कामों में रिश्तेदारों की फर्म के फर्जी बिल से खरीदी दिखाकर और पोर्टल पर फर्जी मजदूर की एंट्री से भी सरकारी राशि का बड़े स्तर पर बंदरबांट कर देते हैं। अब हम आपको बताते हैं कि पंचायतों में भ्रष्टाचार किस किस तरीके से और कैसे होता है।  




  • स्वतंत्रता दिवस 2023 अभी आया भी नहीं और निकाल ली आयोजन की राशि : डिंडोरी जिले की ग्राम पंचायत कूंड़ा में सरपंच—सचिव ने 15 अगस्त 2023 के आयोजन के  एक लाख दस हजार से अधिक की राशि निकाल कर डकार गए। जबकि स्वतंत्रता दिवस 2023 में अभी सवा तीन महीने बाकी है। डिंडोरी विकासखंड की ग्राम पंचायत कूंड़ा में सरपंच सचिव ने 15 अगस्त 2023 को राष्ट्रीय पर्व में प्रसाद वितरण की राशि निकाल ली। ग्रामीणों को इस पूरे कारनामे की जानकारी तब लगी जब उन्होंने ग्राम स्वराज की वेबसाइट पर बिल देखे। ग्रामीणों ने इसकी शिकायत अधिकारियों से की है। वहीं डिंडोरी जनपद सीईओ ने पूरे मामले में जांच करने की बात कही है। 


  • कागजों में दिखा दिया निर्माण और संबंधियों के नाम पर निकाल ली राशी : छतरपुर जिले की ग्राम पंचायत टेढ़ीकबरी में पूर्व सरपंच शकुन्तला पटेल पर लाखों रुपये का भ्रष्टाचार करने के आरोप लगे हैं। पूरे मामले का खुलासा आरटीआई के तहत मिली जानकारी से हुआ है। टेढ़ीकबरी के निवासी अरविन्द पटेल का कहना है कि पूर्व सरपंच शकुन्तला पटेल नें अपने कार्यकाल में लगभग डेढ़ करोड़ तक का घोटाला किया है। पंचायत के रिकॉर्ड में जहां सीसी रोड और नाली का निर्माण दर्शाया गया है वहां आज भी कच्चा रास्ता है, गंदगी फैली है, नाली निर्माण तक नहीं हुआ। पूर्व सरपंच शकुन्तला पटेल ने अपने सगे संबंधियों के नाम पर फर्जी तरीके से लाखों रुपये का आहरण किया है। इस भ्रष्टाचार में पूर्व सरपंच के भाई, देवर, सरपंच पति के मित्र, जेठ और रिस्तेदारों के नाम सामने आए हैं जिनके नाम से राशियां निकाली गई हैं। 

  • पंचायत में भ्रष्टाचार के और भी उदाहरण : भिंड जिले की पड़कोली ग्राम पंचायत में जिन लोगों के जॉब कार्ड बनाए गए उन लोगों ने मजदूरी ही नहीं की। लेकिन उनके जॉब कार्ड पर फर्जी मस्टर भर कर मजदूरों के नाम पर रुपये निकाले गए हैं। जॉब कार्ड किसी और का एवं खाता नंबर किसी दूसरे का लगाकर रुपये निकले गए हैं। यह हालात केवल पड़कोली ग्राम पंचायत के नहीं बल्कि अधिकांश ग्राम पंचायतों में यही हालात देखने को मिलते हैं। झाबुआ जिले की सबसे बड़ी पंचायत बमनिया में सरपंच ने शौचालय की 12—12 हजार रूपए अपने खाते में डलवा लिए। जबकि यह हितग्राही के खाते में जाना चाहिए थी। जब ग्रामीणों ने इसका विरोध किया तो किसी को 3 हजार तो किसी को 5 हजार रूपए दे दिए गए, लेकिन कई हितग्राही ऐसे भी है जिन्हें शौचालय निर्माण की कोई राशि नहीं मिली। छिन्दवाड़ा जिले की ग्राम पंचायत राजेगांव में मुक्तिधाम सड़क का घटिया निर्माण की बात सामने आई। ग्रामीणों का आरोप है कि सरपंच—सचिव ने सड़क निर्माण की राशि का बंदरबांट किया। 



  • राजनीति संरक्षण के कारण मिलती है शह



    पंचायत सचिव-सरपंच बेखौफ होकर ये पूरा खेल खेल कैसे लेते हैं, अब हम आपको यह समझाते हैं। कमीशन का जो पैसा आता है, वह वरिष्ठ अधिकारियों तक बंटता है, इसलिए वे तो कुछ कहने और करने से रहे। अब बात जनप्रतिनिधियों की, तो इनका भी  सरपंच—सचिव को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रहता है। कारण...यही सरपंच—सचिव चुनाव के समय किसी वोट बैंक से कम नहीं होते। अब इसके दो उदाहरण देखिए कि किस तरह सचिव-सरपंच के भ्रष्टाचार का राजनीति संरक्षण मिलता है।




    • सांसद की अजब दलील : 27 दिसंबर 2021 को बीजेपी सांसद जनार्दन मिश्रा ने रीवा में कहा कि जब लोग हमारे पास आते हैं कि सरपंच बहुत भ्रष्टाचार कर रहा है, तो मैं बोलता हूं कि 15 लाख तक का भ्रष्टाचार किया है तो भाई हमसे बात मत करो। 15 लाख से ज्यादा का अगर वह भ्रष्टाचार कर रहा है तो यह भ्रष्टाचार माना जाएगा। क्योंकि 7 लाख तो उसने चुनाव में लगाया, सात लाख लगाकर चुनाव जीता और 7 लाख अभी अगले चुनाव के लिए चाहिए। महंगाई बढ़ेगी तो एक लाख और जोड़ लो, तो 15 लाख तो हो गए। 15 लाख से ज्यादा अगर वह गड़बड़ कर रहा है तो उसका भ्रष्टाचार समझ में आता है।


  • थोड़ी बहुत रिश्वत लेना गलत नहीं: पथरिया विधायक रामबाई के पास 27 सितंबर 2021 को सतऊआ गांव के कुछ लोग पंचायत सचिव और रोजगार सहायक की शिकायत लेकर पहुंचे थे। आरोप था कि पीएम आवास योजना के नाम पर सचिव और रोजगार सहायकों ने हजारों रुपए वसूल रहे थे। गांव वालों का आरोप था कि अधिकारियों द्वारा 5 से 10 हजार रुपये तक रिश्वत ली जाती है। इसी के बाद विधायक राम बाई ने कहा कि थोड़ा-बहुत तो चलता है, लेकिन किसी गरीब से हजारों रुपए नहीं लेने चाहिए। अगर एक हजार रुपए भी लेते हैं तो कोई दिक्कत नहीं थी।



  • शासन का मॉनीटरिंग सिस्टम पूरी तरह से फेल



    ऐसा नहीं है कि शासन स्तर पर सरपंच-सचिव और अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने की खुली छूट ही दे दी गई हो। इसकी मॉनिटरिंग के लिए 3 सिस्टम है, पर वे पूरी तरह से फेल हैं, जिससे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में जमकर लूट-खसोट चल रही है। पंचायत में होने वाले काम की मॉनीटरिंग का पहला सिस्टम है सोशल ऑडिट...मतलब ग्राम सभा। इसमें ग्रामीणों के सामने पंचायत अपना लेखा-जोखा रखती है, लेकिन जागरूकता की कमी से यह ग्रामसभा किसी औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं है, लोग जागरूक नहीं है, इसलिए वे अपनी पंचायत के हिसाब किताब में ज्यादा रुचि नहीं रखते। दूसरा सिस्टम है- विभाग का अपना ऑडिट और तीसरा सिस्टम है- कैग का ऑडिट। इनमें भ्रष्टाचार पकड़ में तो आ जाता है, लेकिन सरकारी राशि की बंदरबांट ऊपरी लेवल तक होने से बड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती। 



    मतदाता नहीं, जागरूक नागरिक बनिए



    द सूत्र का शुरू से यह कहना रहा है कि एक दिन का मतदाता नहीं बल्कि जागरूक नागरिक बनिए। सबसे पहला सवाल यह होता है कि पंचायत में हो रहे भ्रष्टाचार को आप कैसे पकड़ पाएंगे। तो उसके लिए ग्राम सभा में पूरा खाका रखा जाता है, उसे ध्यान से सुनें। पंचायत दर्पण की वेबसाइट http://mppanchayatdarpan.gov.in/ पर जाकर अपनी पंचायत चुनें। इस वेबसाइट पर आपको ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक के जनप्रतिनिधियों की जानकारी के साथ-साथ वेतन भुगतान तक की जानकारी मिल जाएगी। इस वेबसाइट से आप ग्राम पंचायत के ई-भुगतान की जानकारी, ग्राम पंचायत को प्राप्त राशि की जानकारी, जिला/जनपद पंचायत के ई-भुगतान (एकल खाते से), जिला/जनपद पंचायत को प्राप्त राशि की जानकारी, पंचायत द्वारा हाल ही मे स्वीकृत कामों की जानकारी, ग्राम पंचायत के द्वारा पूर्ण किए गए कामों की जानकारी, कार्य का सारांश, जिले, जनपद और पंचायत वार प्राप्त कर सकते हैं। वहीं, ग्राम पंचायत के निर्माण कार्यों की जानकारी, योजनावार कार्य, निर्माण कार्यों की जानकारी, ग्राम पंचायत के निर्माण कार्यों का भौतिक एवं वित्तीय प्रगति, कार्य के प्रकार एवं स्थिति वार निर्माण कार्यों की जानकारी भी आपको यही मिल जाएगी। यदि आपको लगता है कि आपकी पंचायत में कहीं कोई भ्रष्टाचार हुआ है तो आप इसकी शिकायत जनपद सीईओ, जिला सीईओ, कलेक्टर जनसुनवाई या सीएम हेल्पलाइन में कर सकते हैं। यदि आपके यहां जिला पंचायत में लोकपाल की नियुक्ति हो गई है तो आप लोकपाल को भी शिकायत कर सकते हैं।



    (इनपुट : डिंडोरी से जनकराज, छतरपुर से नीरज सोनी, भिंड से योगेंद्र सिंह, झाबुआ से श्रवण मालवीय और छिंदवाड़ा से बीके पाठे)


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