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TIKAMGARH. मप्र के टैक्सपेयर की गाढ़ी कमाई को सरकार में बैठे नुमाइंदे किस तरह से ठिकाने लगाते हैं इसका जीता जागता उदाहरण टीकमगढ़ से सामने आया है। टीकमगढ़ के सर्किट हाउस में स्व. माधवराव सिंधिया की मूर्ति दो महीने पहले स्थापित हो चुकी है, लेकिन नगरीय प्रशासन संचालनालय ने फरवरी माह की 2 तारीख को मूर्ति लगाने की प्रशासकीय स्वीकृति दी है। इसके साथ ही 24 लाख 85 हजार रुपए का फंड भी नगर पालिका को जारी किया है। अब इस कारनामे को लेकर बड़े घोटाले और गड़बड़ी के आरोप लगाए जा रहे हैं।
दो महीने पहले कैसे स्थापित हुई मूर्ति
टीकमगढ़ के बीजेपी नेता विकास यादव ने स्व. माधवराव सिंधिया की मूर्ति को बनवाया है। विकास यादव सिंधिया समर्थक है और बीजेपी में शामिल होने से पहले कांग्रेस के नेता थे। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए तो विकास यादव ने भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन था लिया था। विकास यादव ने पिछले ही साल ग्वालियर के मूर्तिकार प्रभात राय से 10 फीट ऊंची मूर्ति बनवाई और इसकी लागत आई करीब 7 लाख रुपए थी।
द सूत्र ने जब मूर्तिकार प्रभात राय के सहयोगी गौरव बंसल से फोन पर बातचीत करना जानना चाहा कि इस तरह की मूर्ति बनाने की क्या लागत होती है, तो गौरव बंसल ने मूर्ति की लागत और मूर्ति स्थापित करने की पूरी प्रोसेस बताई।
रिपोर्टर- गौरव जी जैसे टीकगमढ़ में माधवराव जी की मूर्ति स्थापित की गई है, उस तरह की मूर्ति बनवाने में कितना खर्च आता है।
गौरव बंसल- देखिए, वो मूर्ति 9 से 10 फीट ऊंची है और इस तरह की धातु की प्रतिमा बनवाने में करीब 7 लाख रु. का खर्च आता है।
रिपोर्टर- मूर्ति की डिलीवरी आप कैसे करते हैं
गौरव बंसल- मूर्ति को स्थापित करने के लिए हमारा बंदा आता है और ट्रांसपोर्ट का खर्च भी आपको ही उठाना पड़ता है।
रिपोर्टर- मूर्ति बनाने की क्या प्रोसेस है और इसमें कितना समय लगता है।
गौरव बंसल- देखिए जब आप किसी भी मूर्ति का हमें फोटो देते हैं तो हम उसका क्ले मॉडल बनाते हैं फिर जो लोग मूर्ति बनवा रहे हैं, उन्हें दिखाते हैं। क्ले मॉडल में कोई संशोधन होता है तो संशोधन किया जाता है। उसके बाद जब हरी झंडी मिल जाती है तो फिर उसे धातु में ढाला जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में दो से तीन महीने लगते हैं।
नगरीय प्रशासन विभाग ने अब जारी की स्वीकृति
मजेदार बात ये है कि मूर्ति पिछले साल नवंबर के महीने में टीकमगढ़ के सर्किट हाउस में स्थापित हो चुकी है, लेकिन नगरीय प्रशासन विभाग ने इस साल 2 फरवरी को इसकी प्रशासकीय स्वीकृति दी है। विभाग की तरफ से सीएमओ नगर पालिका को एक पत्र जारी किया गया, जिसमें लिखा गया कि स्व. माधवराव सिंधिया की मूर्ति की स्थापना के लिए प्रशासकीय स्वीकृति दी जाती है। साथ ही मूर्ति की स्थापना के लिए 24 लाख 85 हजार रु. का फंड यानी विशेष अनुदान भी जारी करने की मंजूरी दी गई। इस पत्र के साथ मूर्ति स्थापना के लिए नियम कायदों का पालन करने की भी हिदायत दी गई। मसलन स्थापना के लिए ई-टेंडर की प्रक्रिया का पालन किया जाए। साथ ही ये भी कहा गया कि जितना पैसा सेंक्शन हुआ है, उससे ज्यादा पैसा न खर्च किया जाए।
पत्र पहुंचने के बाद हुआ बवाल
जैसे ही ये पत्र टीकमगढ़ नगर पालिका पहुंचा तो बीजेपी नेता विकास यादव ने 6 फरवरी को अपने लेटरहैड पर कलेक्टर को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा और कहा कि इस मूर्ति का अनावरण फरवरी के आखिरी हफ्ते में होने की संभावना है इसलिए इसकी स्थापना से संबंधित सभी काम पूरे करवाए जाएं। जैसे ही ये पत्र कलेक्टर को मिला कलेक्टर दफ्तर की तरफ से सीएमओ नगर पालिका को पत्र लिखकर निर्देशित किया गया कि इस संबंध में तत्कार कार्रवाई की जाए।
क्षत्रिय महासभा समेत कांग्रेस नेताओं ने उठाए सवाल
दरअसल माधवराव सिंधिया की मूर्ति लगाए जाने का पहले भी विरोध हो चुका है। जब ये मूर्ति सर्किट हाउस में स्थापित की गई थी तब क्षत्रिय महासभा ने इस आपत्ति दर्ज की थी। क्षत्रिय महासभा के जिला अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह ने उस वक्त आपत्ति जताते हुए कहा था कि टीकमगढ़ शहर के सर्किट हाउस की ऐतिहासिक इमारत महाराजा वीर सिंह जूदेव ने बनवाई थी। जो भी अतिथि आते हैं, सबसे पहले सर्किट हाउस में ही रुकते हैं। सर्किट हाउस कैम्पस में चोरी-छिपे माधवराव सिंधिया की प्रतिमा लगा दी गई। ग्वालियर में उनकी कई प्रतिमाएं लगी हैं। टीकमगढ़ में भी सिंधिया जी की प्रतिमा किसी और स्थान पर लगा दें, कोई दिक्कत नहीं। टीकमगढ़ का वैभवशाली इतिहास रहा है। इस शहर के विकास और वैभव को आगे बढ़ाने में जिनका योगदान रहा है, उनकी प्रतिमाएं लगाई जानी चाहिए।
टीकमगढ़ में कई महापुरुष रहे हैं
भगवान राम को अयोध्या से ओरछा लाने वाली रानी कुंवर गणेश, जनकपुरी में जानकी जी का नौलखा मंदिर, अयोध्या में कनक भवन बनवाने वाली रानी वृषभानु कुंवर टीकमगढ़ से आती हैं। जल संरक्षण के क्षेत्र में शहर को समृद्ध बनाने वाले महाराजा प्रताप सिंह जूदेव हों या बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल। जिनका टीकमगढ़ से लगाव, जुड़ाव और जन्म स्थान रहा है, उनकी प्रतिमाएं यहां लगनी चाहिए। माधवराव सिंधिया का शहर के विकास में कोई रोल नहीं रहा है। उनके नाम का एक शिलालेख भी यहां नहीं है, इसलिए यहां के नागरिकों की मांग है कि यहां की स्थानीय विभूतियों की प्रतिमाएं लगाई जाएं।
इस विरोध के बाद प्रतिमा का अनावरण नहीं हो सका था।
पिछले दरवाजे से अनावरण की तैयारियां !
इस समय मप्र में विकास यात्राओं का आयोजन हो रहा है और विकास के कामों का लोकार्पण और शिलान्यास हो रहा है इसी को देखते हुए पिछले दरवाजे से इस मूर्ति के अनावरण की तैयारियां की गई। जबकि इस मूर्ति को लगाने के लिए पीडब्लूडी के पीएस ने भी इंकार कर दिया था।
कैसे चली फाइल
1. मूर्ति को स्थापित करने के संबंध में पीडब्लूडी के ईई ने पत्र क्रमांक 601/7.7 2021 के साथ 25 लाख का एस्टीमेट प्रमुख सचिव को भेजा लेकिन मूर्ति लगाने को लेकर पीडब्लूडी के प्रमुख सचिव ने मना कर दिया।
इसके बाद 23 अप्रैल को पत्र क्रमांक DM/23.04.22 में सभी विभागों की एनओसी के साथ मूर्ति स्थापित करने का एक और पत्र भेजा गया
2.पीडब्लूडी के सचिव ने 100 वर्ग मीटर की जगह राजस्व विभाग को वापस की
3. इस पत्र को आधार बनाकर पत्र क्रमांक 69/6.1.2023 को मूर्ति लगाने की प्रशासकीय स्वीकृति नगरीय प्रशासन संचालनालय ने जारी की। साथ ही 24 लाख रु. भी स्वीकृत किए।
मूर्ति पर गर्माई सियासत
द सूत्र ने इस मामले में बीजेपी नेता विकास यादव से बात की तो उन्होंने कहा कि मूर्ति स्थापित करने के लिए पैसा मंजूर नहीं हुआ बल्कि सौंदर्यीकरण के लिए 24 लाख रु. मंजूर हुए है। विकास यादव ने तो सारा ठीकरा नगर पालिका अध्यक्ष पर फोड़ते हुए कहा कि नगर पालिका की तरफ से ही एस्टीमेट बनाकर भेजा गया था।
ये सब फर्जीवाड़ा है- नपा अध्यक्ष
द सूत्र ने इस मामले में टीकमगढ़ के नगर पालिका अध्यक्ष अब्दुल गफ्फार से बात की तो उन्होंने कहा कि नगर पालिका ने जो एस्टीमेट बनाया वो उनके कार्यकाल के पहले का होगा इसके बारे में उन्हें जानकारी नहीं है लेकिन मूर्ति पहले से स्थापित हो चुकी है अब उसके लिए प्रशासकीय स्वीकृति देना कहीं न कहीं बताता है कि फ्रॉड किया जा रहा है।
टीकमगढ़ में है कांग्रेस की नगर पालिका
टीकमगढ़ में छह महीने पहले हुए नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस की परिषद् बनी है और इसलिए इस मामले ने सियासी तूल पकड़ा है साथ ही क्षत्रिय महासभा जो मूर्ति लगाने का पहले ही विरोध कर रहा है उसके पदाधिकारियों का तो आरोप है कि कहीं न कहीं स्थानीय नेता पैसा डकारने की जुगत में है।