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संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर हुकमचंद मिल के 5895 मजदूर परिवारों को अब उनकी बकाया राशि, ग्रेच्युटी के भुगतान को लेकर मप्र गृह निर्माण व अधोसंरचना विकास मंडल यानि हाउसिंग बोर्ड की ओर से नया प्रस्ताव औपचारिक तौर पर मिला है। मजदूरों को कहा गया है कि साल 2002 में जो शासकीय परिसमापक द्वारा सेटलमेंट राशि 229 करोड़ रुपए तय की गई थी, वह शासन देने को तैयार है। इसमें से शासन 55 करोड़ रुपए का पहले ही भुगतान कर चुका है। बाकि राशि 173.87 करोड़ रुपए बचता है, इसे एकमुश्त देने को तैयार है। यदि यह राशि लेने को मजदूर तैयार है तो समझौते पर हस्तार कर दें, ताकि कोर्ट में इसे रखकर मामले को पूरा निराकरण किया जा सके। इससे 42.49 एकड़ जमीन मुक्त हो जाएगी। महापौर पुष्यमित्र भार्गव पद संभालने के बाद से ही इस मुद्दे को सुलझाने में लगे हैं, पहले उन्होंने यहां आईटी पार्क भी बनाने का प्रस्ताव दिया था। अब हाउसिंग बोर्ड की ओर से नया प्रस्ताव आया है। बोर्ड के आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला ने शुक्रवार को इंदौर में बैठक के बाद इसे लेकर लिखित पत्र भी मजूदरों को दे दिया है।
मजदूरों को 450 करोड़ की है उम्मीद
मजदूर नेता नरेंद्र श्रीधर का कहना है कि उज्जैन में एक मिल के सेटलमेंट में राशि 58-59 करोड़ रुपए ही मूल राशि थी, उस पर सौ करोड़ का ब्याज दिया गया। हमारी मांग है कि एक देश एक कानून के तहत हमे भी मुआवजा मिलना चाहिए, भले ही जब साल 2007 में कोर्ट में मामला सेटलमेंट के लिए तय हुआ, वहां तक का ब्याज मिले, लेकिन ब्याज तो मिलना चाहिए। मूल राशि तो हमे वैसे ही मिलना है, हम 32 साल से अपने हक का इंतजार कर रहे हैं। यह 229 करोड़ रुपए तो मूल राशि है। इस पर जो कोर्ट बोले कम से कम ब्याज तो मिलना ही चाहिए।
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दो दिन बाद सभी से बात कर लेंगे फैसला
मजूदरों के प्रतिनिधि श्रीधर ने कहा कि इस मामले में सभी से रविवार को बैठक कर फैसला लिया जाएगा, हालांकि हमारे लिए यह खुशी का भी मौका है कि कम से कम राशि मिलने का रास्ता तो साफ हुआ लेकिन ब्याज मिलेगा तो पूरा न्याया हो सकेगा, क्योंकि सरकार तो वैसे ही अलग-अलग योजनाओं में सभी को जमकर राशि दे रही है, लेकिन हम सालों से परेशान हो रहे हैं। हमारे बारे में भी कम से कम थोड़ा सोचकर फैसला करें तो अधिक खुशी होगी।
निगम तो खुद ही वैल्यूशन 1400 करोड़ रुपए बता चुका है
आर्थिक तंगी के चलते मिल को 32 साल पहले बंद कर दिया गया। इससे 5895 मजूदरों का बकाया वेतन, ग्रेच्युटी अटक गई। यह तभी से लड़ रहे हैं। इसमें से 2200 मजदूरों की तो मौत हो चुकी है। उनका परिवार हक मांग रहा है। बैंकों का भी करीब 170 करोड़ रुपए बकाया है। कोर्ट की लड़ाई के बाद तय हुआ कि जमीन को बेचकर भुगतान किया जाए। पहले जमीन की कीमत 385 करोड़ रुपए आंकी गई, इस पर मजूदर नाराज हुए, फिर नए वैल्युअर बैठे और 500 करोड़ से ज्यादा कीमत आंकी गई, हालांकि निगम खुद साल 2014 में एक ट्रिब्यूनल में जमीन को बेशकीमती बताते हुए कीमत 1400 करोड़ रुपए आंक चुका है। अब तो जमीन का लैंडयूज भी उद्योग से आवासीय, व्यावसायिक हो गया है जो कांग्रेस सरकार के समय हुआ था, इससे जमीन की कीमत और बढ़ गई। लेकिन मजदूरों को सरकार अब केवल मूल राशि 229 करोड़ का भुगतान करने के लिए तैयार है, इसमें भी वह पहले 55 करोड़ रुपए दे चुकी है, इसे काटकर 173.87 करोड़ रुपए एकमुश्त देगी।
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