/sootr/media/media_files/2025/11/17/news-strike-17-november-2025-11-17-22-30-51.jpg)
Photograph: (The Sootr)
बिहार चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद कांग्रेस का ग्राफ फिर नीचे गिर गया है। मध्यप्रदेश में भी बीजेपी (BJP) ने अभी से ही कांग्रेस को और कमजोर करने की तैयारी शुरू कर दी है। खासतौर से उन 21 सीटों पर जहां कांग्रेस का कोर वोटर ज्यादा मजबूती से उसका साथ दे रहा है। उन सीटों पर बीजेपी का फोकस अभी से ही बढ़ गया है।
खास प्लानिंग के साथ बीजेपी ने उन सीटों के लिए खास टीम भी बना दी है। जो अब बस इन 21 सीटों पर फोकस करेगी। और कांग्रेस का चुनावी खेल बिगाड़ेगी।
बीजेपी और कांग्रेस में एक खास अंतर है। वो अंतर ये है कि बीजेपी फिलहाल चुनावों का इंतजार कर अपनी रणनीति बनाने में नहीं जुटी है।
किसी और स्टेट में ये तरीका हो या न हो लेकिन मध्यप्रदेश में तो बीजेपी ने यही स्ट्रेटजी अपना रखी है। जिसके दम पर लगातार और बार बार कांग्रेस को शिकस्त दे रही है। नतीजा ये है कि बीस सालों में कांग्रेस लगातार सिमटती जा रही है। और, अब बीजेपी ने कांग्रेस की 21 सीटों पर काम शुरू कर दिया है।
ट्रेनिंग-गुटबाजी में उलझी है कांग्रेस
कांग्रेस अब तक ट्रेनिंग और अपनी आपसी गुटबाजी में ही उलझी हुई हैं। वहीं बीजेपी ने खास क्लस्टर तैयार कर दिए हैं। इन्हें भाजपा का गांव क्लस्टर कहें तो भी कुछ गलत नहीं होगा। क्योंकि पार्टी ने तीन-तीन चार-चार गांवों को जोड़ कर ये समूह तैयार किया है। लेकिन, ये क्लस्टर प्रदेश के हर गांव में नहीं बना है।
ये सिर्फ उन सीटों पर बनाया जा रहा है जो आदिवासी सीटें हैं या फिर जहां इस तबके के मतदाता बड़ी तादाद में हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों पर बीजेपी की खास इंजीनियरिंग शुरू होने जा रही है।
ये भी पढ़ें... NEWS STRIKE: अफसरों से परेशान मंत्री, नहीं बैठ रही पटरी! सुशासन पर उठ रहे सवाल
हर क्लस्टर की जिम्मेदारी विधायकों को
साल 2028 में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी आदिवासी गांवों के विकास का खाका भी अभी से ही तैयार कर रही है। सरकार ने ये भी साफ कर दिया है कि इस क्षेत्रों के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। ताकि आदिवासी बीजेपी का गुणगान करने में कोई कोताही न करें।
बीजेपी ने अपनी इस योजना को संसदीय संकुल विकास परियोजना नाम दिया है। जो गांव की जरूरतों पर नजर रखेगी। इसके बाद ग्राम पंचायतों में शिक्षा, हेल्थ, रोजगार, पानी की आपूर्ति जैसी समस्याएं क्या-क्या हैं। इन पर ट्राइबल सिविल सोसायटी को नजर रखने की जिम्मेदारी दी गई है।
बीजेपी ने हर क्लस्टर की जिम्मेदारी विधायकों को सौंपी है। पूर्व विधायक या फिर ऐसे प्रत्याशी जो जीत हासिल न कर सके। वो भी इस टीम का हिस्सा होंगे। उनके साथ संबंधित पंचायत के सरपंच और दूसरे पोस्ट होल्डर्स भी एक्टिव रहेंगे।
ये भी पढ़ें... News Strike: वर्ग संघर्ष से सुलगा ग्वालियर चंबल, बीजेपी क्यों मौन, कांग्रेस को मौके का इंतजार ?
प्रदेश में आदिवासी वोटर ही किंग मेकर
ये तो हुई बीजेपी की प्लानिंग की बात। अब ये समझना जरूरी है कि आखिर बीजेपी को इस प्लानिंग की जरूरत ही क्यों पड़ी। इन सीटों पर ऐसी क्या खास बात है कि बीजेपी ने पूरे प्रदेश में से सिर्फ इन्हीं 47 सीटों को चुना है। उसमें भी 21 सीटों पर ज्यादा गंभीरता से गौर किया जा रहा है।
असल में प्रदेश में आदिवासी वोटर (Tribal Vote) ही किंग मेकर है। उनकी सीटों का आंकड़ा भले ही छोटा हो लेकिन वो जिसका साथ देते हैं, उस दल को सत्ता तक पहुंचा ही देते हैं। फिलहाल बीजेपी के पास 47 आदिवासी सीटों में से 25 सीटें हैं और 21 सीटें कांग्रेस के पास है।
अब बीजेपी की कोशिश ये है कि कांग्रेस के पास वाली 21 सीटों पर भी वो अपना कब्जा जमा सके। एक सीट भारत आदिवासी पार्टी के पास है। वो भी बीजेपी अपने खाते में लाने की पूरी कोशिश में जुटी हुई है।
ये भी पढ़ें... News Strike: युवा कांग्रेस के चुनाव के बाद बदले कांग्रेस के अंदरूनी समीकरण, नई जोड़ी का दिखेगा दबदबा ?
मोहन यादव मंत्रिमंडल से हो चुकी है शुरुआत
इसकी शुरुआत वैसे मोहन यादव मंत्रिमंडल से ही हो गई थी। मोहन सरकार में विजय शाह, नागर सिंह चौहान, संपतिया उईके, राधा सिंह और निर्मला भूरिया आदिवासी वर्ग से आने वाले मंत्री हैं। इतने पर भी अगर बीजेपी राहत की सांस नहीं ले रही तो उसके पीछे भी खास वजह है।
असल में आदिवासियों की वोटिंग (MP Tribal Voters) का कोई फिक्स ट्रेंड नहीं है। कभी वो कांग्रेस के साथ होते हैं तो कभी बीजेपी के साथ। एक-एक दो-दो परसेंट के वोट प्रतिशत के साथ ये वर्ग किसी की भी सरकार बनवा देता है और किसी को भी किनारे लगा ही देता है। साल 2008 से उनके वोटिंग ट्रेंड को देखते हैं।
ये भी पढ़ें... एमपी में ट्राइबल प्राइड डे मनाएगी बीजेपी, राष्ट्रीय पर्व का देगी दर्जा
2028 के नतीजे बताएंगे मेहनत कितनी सफल?
साल 2008 में 47 आदिवासी सीटों में 29 कांग्रेस के पास थीं। 16 बीजेपी के पास और एक पर अन्य का कब्जा था। 2013 में बड़ा उलटफेर नजर आया। और कांग्रेस के खाते में सिर्फ 15 ही आदिवासी सीटें बचीं। 31 सीटें बीजेपी को मिली और एक किसी अन्य के खाते में चली गई।
2018 में जब बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई थी तब कांग्रेस ने 30 सीटें हथियाईं थीं। बीजेपी के पास 16 सीटें थीं और एक अन्य दल के पास थी। इससे ये जाहिर होता है कि आदिवासी समुदाय का वोटिंग ट्रेंड कभी भी किसी के भी पलड़े में जा सकता है।
ऐन चुनाव के समय की इस अनिश्चितता को खत्म करने के लिए बीजेपी अभी से इस समुदाय पर पकड़ बनाने में जुट गई है। 2028 के नतीजे बताएंगे कि उनकी ये कोशिश कितना रंग लाई।
इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं
/sootr/media/agency_attachments/dJb27ZM6lvzNPboAXq48.png)
Follow Us