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Photograph: (the sootr)
मोदी सरकार के ग्यारह साल पूरे होने पर बीजेपी देशभर में कार्यक्रम कर रही है। लेकिन मध्यप्रदेश में ये जश्न पुरानी टीम के साथ ही मनाए जाने की तैयारी है। बीजेपी केंद्र में जितनी मजबूत हो रही है या हो चुकी है। प्रदेश में भी उतनी ही मजबूत है, लेकिन टीम के मामले में बीजेपी पर वही बासापन नजर आ रहा है। इसकी वजह से बीजेपी अब ऐसे नेताओं के भरोसे हर जिले में कार्यक्रम करने वाली है जिनके पास पद नहीं है या वो पद के लिए वेटिंग की कतार में खड़े नजर आ रहे हैं।
मोदी सरकार की ग्यारहवीं सालगिरह के मौके पर बीजेपी ने लंबी चौड़ी प्लानिंग की है। सालगिरह का ये जश्न अलग-अलग कार्यक्रमों की शक्ल में 21 जून तक मनाया जाना प्रस्तावित है। इस मौके पर प्रदेश का कोई जिला ऐसा नहीं होगा जहां मोदी सरकार की ग्यारह साल की उपलब्धियां न गिनवाई जाएं। बर्थ डे तो सरकार का है लेकिन तोहफे जनता को मिलेंगे।
हो सकता है आपके आसपास भी बीजेपी का कोई नुमाइंदा सरकार के ग्यारह साल पूरे होने का बखान कर रहा हो। आपको वो शक्ल जानी पहचानी या बार-बार देखी हुई लगे तो भी ताज्जुब नहीं होगा। क्योंकि वर्तमान में प्रदेश ही नहीं देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी बीजेपी के पास प्रदेश में कोई नया चेहरा नहीं है। बीजेपी अब तक अपनी नई टीम का गठन नहीं कर पाई है जबकि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हो चुकी है। और, कई मंडल स्तर पर भी चुनाव हो चुके हैं। उस के बाद भी बीजेपी नई टीम बनाने में असफल रही है जिसकी वजह से संकल्प सिद्धि अभियान के तहत 21 जून को होने वाले योग दिवस से कार्यक्रम शुरू होंगे जो पुरानी टीम के ही भरोसे होने हैं।
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प्रबुद्ध वर्ग को बीजेपी से जोड़ने का प्लान
21 जून को विश्व योग दिवस के बाद 23 जून को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस मनाया जाएगा। इसके बाद छह जुलाई, उनकी जन्म जयंती तक कई अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। इस दौरान सरकार की उपलब्धियों पर फोटो एग्जिबिशन लगेगी। विकसित भारत संकल्प सभाएं होंगी। विचार गोष्ठियां भी होंगी। साथ ही मोहल्ला स्तर से लेकर पंचायत लेवल तक चौपालें भी लगेंगी। प्रबुद्ध वर्ग को आकर्षित करने के लिए बीजेपी का प्लान अलग है। कई सम्मेलनों के जरिए इस वर्ग को भी पार्टी से जोड़ने की प्लानिंग है।
ऐसे हर कार्यक्रम के जरिए ग्यारहवीं सालगिरह पर बीजेपी नगर से लेकर कस्बों तक केंद्र सरकार के काम गिनवाने वाली है। काम सिर्फ गिनवाया ही नहीं जाएगा। हर एक काम का जोर शोर से प्रचार भी होगा। तकरीबन हर जिले में एक मंत्री, केंद्रीय मंत्री लेवल का नेता इस काम के लिए तैनात होगा। विधायकों और सांसदों को भी ये ड्यूटी पूरी शिद्दत से निभानी है। मुख्यमंत्री के भी कार्यक्रम तय हो चुके हैं। इतने बड़े लेवल पर कार्यक्रम होने तय हो चुका है, लेकिन अब तक बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष तय नहीं हुआ है। हर जिले में नए जिलाध्यक्ष तो हैं लेकिन प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी वीडी शर्मा ही संभालते हुए इस काम को आगे बढ़ाएंगे।
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जिलाध्यक्षों को भी नहीं मिल पाई है नई टीम
जिलाध्यक्षों को भी अब तक नई टीम नहीं मिली है जिसकी वजह से वो पुरानी टीम या पुराने नेताओं को ही हर काम की जवाबदारी सौंप रहे हैं। हालात ये हैं कुछ नेता खास जिम्मेदारी उठाने के मूड में नहीं है। इसलिए उन की मान मनुहार करने के बाद उन्हें सालगिरह से जुड़े काम सौंपे जा रहे हैं। वैसे बीजेपी के लिए नई टीम बनाना कोई मुश्किल बात नहीं है।
बीजेपी जिस मुकाम पर है, वहां हाल ये है कि वो एक नेता तलाशेगी और चार ऑप्शन्स मिल ही जाएंगे। जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के दौरान हम ये हालात देख भी चुके हैं। जब एक ही जिले के लिए बहुत से नेता लाइन में लगे थे। दिग्गज नेता भी आमने-सामने थे ताकि अपने फेवरेट नाम को जिलाध्यक्ष की कुर्सी दिलवा सकें। तो क्या बीजेपी दिग्गजों की इसी रेलमपेल के डर से नई टीम बनाने से कतरा रही है।
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अब तक नहीं कर पाई है प्रदेशाध्यक्ष के नाम का ऐलान
टीम की बात तो छोड़िए पार्टी अब तक अपने प्रदेशाध्यक्ष के नाम का ऐलान भी नहीं कर पाई है। क्या बीजेपी को ये डर खाए जा रहा है कि पार्टी अध्यक्ष चुनने में अगर जरा सी भी गलती हुई तो प्रदेश में या फिर किसी और विधानसभा चुनाव में गड़बड़ हो सकती है। पहले प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति विधानसभा चुनाव तक के लिए टली फिर लोकसभा का बहाना दिया गया। इसके बाद दिल्ली चुनाव और कभी दूसरे मसले सामने आते रहे। तो क्या अब ये मान लें कि पार्टी बिहार चुनाव के बाद इस तरफ ध्यान देगी।
क्योंकि प्रदेश में अभी यादव वर्ग का सीएम बनाया जा चुका है। सीएम मोहन यादव को सीएम फेस पर चुनना ही यूपी बिहार के चुनाव के मद्देनजर एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा था। यानी अब वीडी शर्मा को पद पर बनाए रख कर क्या बीजेपी ब्राह्मण वर्ग को भी साध कर रखने की कोशिश में है। लेकिन टीम का ये रोना सिर्फ मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है। कुछ और भी प्रदेश हैं जहां बीजेपी नए अध्यक्ष नहीं चुन पाई है। राष्ट्रीय स्तर पर भी यही हाल है। इसलिए ये सवाल लाजमी है कि ग्यारह साल की उपलब्धियां गिनना अच्छी बात है लेकिन इतनी बड़ी पार्टी को नई टीम बनाने में कौन सा डर सता रहा है।
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