News Strike: सांसद और Jyotiraditya Scindia में होड़, किसे मिलेगा नई ट्रेन का क्रेडिट ?

ज्योतिरादित्य सिंधिया को अब ग्वालियर में अपने किए गए कामों का क्रेडिट खुद से जताना पड़ रहा है। ग्वालियर सांसद भरत सिंह कुशवाह ने भी नई ट्रेन के लिए अपनी भूमिका का दावा किया है। इसको लेकर सिंधिया को जबरदस्त कॉम्पिटीशन का सामना करना पड़ रहा है।

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Harish Divekar
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news strike 9 june

Photograph: (the sootr)

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ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में अब ये दिन आ गए कि उन्हें एक सांसद से कॉम्पिटीशन करना पड़ रहा है। वैसे तो सिंधिया की छवि कभी भी प्रदेश के नेता की नहीं रही। ग्वालियर और गुना से गहरा रिश्ता होते हुए भी वो ज्यादातर समय दिल्ली में ही रहे। लेकिन, कांग्रेस में थे तब तक ग्वालियर से रिश्ता एफर्टलेस तरीके से जारी था। पर, बीजेपी में कदम-कदम पर संघर्ष है। ग्वालियर के महाराज को ही अब ये जताने की नौबत आ गई है कि जो काम हो रहे हैं वो उनकी वजह से हुए हैं। इसमें भी उन्हें जबरदस्त कॉम्पिटीशन फेस करना पड़ रहा है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया क्या तमाम कोशिशों के बावजूद स्थानीय लीडर्स से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। ये सवाल आप भी पूछेंगे, ये जानने के बाद कि सिंधिया को किस तरह अपने ही गढ़ में किए कामों को जताना और बताना पड़ रहा है। उसमें भी कॉम्पिटीशन कई बार टफ हो रहा है। फिलहाल ताजा ताजा मामला नई रेल से जुड़ा है। ये ट्रेन बेंग्लुरू से ग्वालियर तक चलेगी। ग्वालियर तक इस ट्रेन को पहुंचाने का क्रेडिट पूरी तरह से सिंधिया ले जाते उससे पहले ही ग्वालियर सांसद भरत सिंह कुशवाह भी बीच में आ गए। कुशवाह ने भी ये दावा कर दिया है कि ग्वालियर में ये ट्रेन उनकी कोशिशों की वजह से आई है।

ग्वालियर सांसद कुशवाह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में कॉम्पिटिशन

इस ट्रेन को कुछ ही दिन पहले केंद्रीय रेल मंत्रालय से मंजूरी मिली है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ट्रेन को मंजूरी देने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया और ग्वालियर सांसद भारत सिंह कुशवाह को भी इसकी जानकारी दी। बस इसके बाद से दोनों नेताओं के बीच ये होड़ लग गई कि किसकी मेहनत से ग्वालियर को ये ट्रेन मिल सकी है।

ट्रेन चलने की जानकारी मिलती ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट किया कि ग्वालियर चंबल के यात्रियों ने लंबे से ये मांग उठाई थी। उसके आगे उन्होंने लिखा कि वो केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का भी दिल से आभार व्यक्त करते हैं। गुना क्षेत्र के यात्री खासतौर से बेंगलुरू में कार्यरत युवा साथी इस रेल सुविधा का लाभ उठा सकेंगे।

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इस मामले में सांसद कुशवाह भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी ट्वीट कर दिया कि ग्वालियर से बेंगलुरू के बीच सीधी ट्रेन की सौगात देने के लिए प्रधानमंत्री जी, केंद्रीय रेल मंत्रीजी और मुख्यमंत्री जी का आभार और धन्यवाद। भारत सिंह कुशवाहा इतने पर ही नहीं रुके। इस ट्रेन का क्रेडिट उन्होंने मीडिया के सामने भी आकर लिया।

उन्होंने पिछले दिनों भोपाल में कहा कि ये ट्रेन ग्वालियर के लोगों की बहुत बड़ी जरूरत थी। इस ट्रेन के लिए लेटर लिखने का क्रेडिट भी उन्होंने खुद को ही दिया। इस दौरान उनसे ये सवाल भी हुआ कि ट्रेन का क्रेडिट सिंधिया ले रहे हैं जिसके जवाब में कुशवाह ने साफ कहा कि अप्रैल माह की शुरुआत में वो पर्सनली रेल मंत्री से मिले भी थे। इसी मुलाकात के दौरान उन्होंने रेल मंत्री को इस ट्रेन से जुड़ा पत्र दिया था। आखिरी में वो ये कहना नहीं भूले कि उन्हीं के पत्र के बाद ट्रेन के लिए मंजूरी मिली है।

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नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने ली चुटकी

दो नेताओं के आमने-सामने आने के बाद कांग्रेस ने भी इस मामले पर चुटकी ली है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने कहा कि दोनों नेताओं को उसी ट्रेन के कोच में एक दूसरे से कुश्ती लड़ना चाहिए। जो जीत कर बाहर आए उसे ही ट्रेन का क्रेडिट दे देंगे।

वैसे किसी भी काम का क्रेडिट लेने की होड़ नेताओं के बीच होती रही है, लेकिन सिंधिया के सामने क्रेडिट लेने की कोशिश पहले कभी नजर नहीं आई। खासतौर से ग्वालियर के मामले में। वैसे ग्वालियर में पहले भी काम होते रहे हैं और, कोई कहे या न कहे उसका क्रेडिट डायरेक्टली-इनडायरेक्टली सिंधिया को ही मिला है।

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एक दौर ऐसा भी था जब ये कहा जाता था कि ग्वालियर और गुना जैसी जगहों पर कुछ खास पोस्टिंग्स भी सिंधिया की मर्जी से ही होती हैं। कांग्रेस में तो ग्वालियर के नेता होने का मतलब ही खुद सिंधिया होना या सिंधिया का कोई करीबी नेता होना हुआ करता था। लेकिन, बीजेपी में अब सिंधिया को उसी ग्वालियर के लिए काम करवाने पर कॉम्पिटीशन फेस करना पड़ रहा है। 

क्या ग्वालियर पर खत्म हो रही सिंधिया की मॉनोपॉली

क्या ये इस बात का इशारा नहीं है कि ग्वालियर पर सिंधिया का एक छत्र राज या मॉनोपॉली खत्म या कम हो रही है। बीजेपी में आकर सिंधिया केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री तो बन गए हैं पर क्या ग्वालियर का महाराज बने रहने में किसी तरह का संघर्ष फेस करना पड़ रहा है।

जब सिंधिया नए-नए बीजेपी में शामिल हुए थे, तब हर तरफ उनका बोलबाला दिखता था। हर सभा हर रैली में सिंधिया साथ होते थे। यहां तक कि पीएम के कार्यक्रमों में भी उन्हें पूरी तवज्जो दी जाती थी। लेकिन, धीरे-धीरे प्रदेश के कार्यक्रमों में उनकी सक्रियता कम नजर आ रही है। केंद्रीय नेतृत्व के साथ तो उनका तालमेल ठीक नजर आता है, लेकिन प्रदेश से जुड़े कार्यक्रमों में वो तकरीबन नदारद हो चुके हैं।

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खासतौर से मोहन सरकार बनने के बाद से प्रदेश के कार्यक्रमों में सिंधिया कम दिख रहे हैं। पिछले दिनों हुई बड़ी इंवेस्टर समिट में भी सिंधिया नहीं आए। हाल ही में पीएम मोदी की भोपाल दौरे के दौरान भी सिंधिया नजर नहीं आए। क्या ये इस बात का इशारा है कि बीजेपी में सिंधिया के अच्छे दिन लद गए हैं। और, उन्हें भी एक दायरे में सिमटने पर मजबूर कर दिया गया है। उनकी आगे की सियासी चाल ही बताएगी कि बीजेपी में उनका हाल क्या है।

 

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