News Strike : Digvijay Singh का फेसबुक पर छलका दर्द या आलाकमान के नाम कोई संदेश!

मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को किस कैटेगरी में डालेंगे। चुनाव की रेस हारने के बाद दिग्विजय सिंह खुद ही बाराती घोड़ों में शामिल हो गए। फिर रेस के घोड़े बनकर लौटे। ये अलग बात है कि वो रेस जीत नहीं सकी... 

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Harish Divekar
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News Strike Digvijay Singh

Photograph: (THESOOTR)

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दिग्विजय सिंह कांग्रेस के कौन से घोड़े हैं। राहुल गांधी की सलाह पर अमल करते हुए जब कांग्रेस अपने नेता रूपी घोड़ों को वर्गीकरण करेगी। तब ये सवाल पार्टी को जरूर सोचना होगा कि वो पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को किस कैटेगरी में डालेंगे। चुनाव की रेस हारने के बाद दिग्विजय सिंह खुद ही बाराती घोड़ों में शामिल हो गए। फिर रेस के घोड़े बनकर लौटे। ये अलग बात है कि वो रेस जीत नहीं सकी।

अपनी घोड़ों वाली थ्योरी देकर राहुल गांधी दिल्ली लौटे ही थे कि पार्टी के इस बुजुर्ग और तजुर्बेकार घोड़े ने भी एक नई थ्योरी देकर सुर्खियां बटोर ली हैं। ये थ्योरी उनका दर्द है कोई कसक है या फिर कोई नया पेंतरा ये आप खुद ही तय कीजिएगा। फिलहाल मैं आपको दिग्विजय सिंह की नई थ्योरी से रूबरू करवाता हूं।

दिग्विजय सिंह का नया अंदाज सोशल मीडिया पर हो रहा वायरल

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भोपाल में कांग्रेस नेताओं से कहा कि रेस के घोड़े चुनाव में और बाराती घोड़े संगठन में रहेंगे। उसके बाद दिग्विजय सिंह का भी एक अंदाज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। कांग्रेस के एक कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह लाख मनुहार के बाद भी मंच पर नहीं गए। इसके पीछे कोई नाराजगी नहीं थी। बल्कि दिग्विजय सिंह एक एग्जाम्पल सेट करने की कोशिश कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने मंच पर न जाने के पीछे कुछ नई थ्योरी दी हैं। अपने सोशल मीडिया अकाउंट से दिग्विजय सिंह ने ये सारी थ्योरी पोस्ट भी की हैं। 

दिग्विजय ने लिखा है कि मंच पर न बैठना एक व्यक्तिगत विनम्रता नहीं बल्कि, संगठन को सशक्त करने का एक नया कदम है। ये कदम उन्होंने कांग्रेस की मूल विचाराधारा समता, अनुशासन और सेवा से प्रेरित होकर उठाया है। उन्होंने लिखा कि आज कांग्रेस का काम करते हुए कार्यकर्ताओं को नया विश्वास और हौसला चाहिए। इसके लिए संगठन में जितनी सादगी होगी उतनी सुदृढ़ता आएगी।

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सोनिया-राहुल गांधी भी मंच पर जाने से करते रहे हैं परहेज

बातों ही बातों में दिग्विजय सिंह ने खुद ही इसे विनम्रता और सादगी भी बता दिया। साथ ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी का एक पुराना किस्सा भी शेयर कर दिया। दिग्विजय सिंह ने अपनी पोस्ट में 2018 और 2023 के एक कार्यक्रम का हवाला देते हुए लिखा कि खुद सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने भी मंच पर जाने से परहेज करते रहे हैं। ऐसा 17 मार्च 2018 को हुआ। तब कांग्रेस का तीन दिवसीय पूर्ण राष्ट्रीय अधिवेशन था। दिग्विजय सिंह ने इसे कांग्रेस का सबसे सफलतम प्रयोग बताया।

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बड़े नेताओं के मंच पर जाने से असल हकदार रह जाते हैं वंचित

इसके बाद दिग्गी राजा ने बापू का उदाहरण भी पेश किया है। उन्होंने लिखा कि बापू भी असहयोग आंदोलन के समय जमीन पर ही बैठा करते थे। दिग्विजय सिंह ने अपनी थ्योरी क्लियर करते हुए लिखा है कि बड़े नेता मंच पर आते हैं तो जो मंच के असल हकदार हैं वो वंचित रह जाते हैं। इस पूरी पोस्ट में दिग्विजय सिंह ने बार-बार समता, समानता, सादगी और अनुशासन जैसे शब्दों पर जोर दिया है और जरूरत पड़ने पर उन्हें दोबारा इस्तेमाल भी किया है।

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कांग्रेस की संविधान बचाओ रैली में नाराज हुए दिग्विजय सिंह

ये पहला मौका नहीं है जब दिग्विजय सिंह मंच से नीचे बैठे हों। आपको याद होगा कि विधानसभा चुनाव से पहले एक सभा के दौरान भी दिग्विजय सिंह मंच से नीचे और कार्यकर्ताओं के बीच बैठे नजर आए थे। वो आम कार्यकर्ता की तरह नोट्स भी बनाते दिखे। तब भी उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। अप्रैल माह में कांग्रेस पार्टी के ही एक कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह बुरी तरह नाराज हुए थे। ये कांग्रेस की संविधान बचाओ रैली से जुड़ा मामला है। सभा में लोग कम और खाली कुर्सियां ज्यादा थी। जिसके बाद दिग्विजय सिंह नाराज भी हुए और कहा कि अब वो किसी मंच पर नहीं बैठेंगे। इसके बाद अब वो जबलपुर के कार्यक्रम में मंच पर भी नहीं गए। 

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दिग्विजय की खत्म हो रही राजनीति को बचाने की कवायद है?

क्या दिग्विजय सिंह इस फैसले के जरिए कोई और छवि गढ़ने की कोशिश में हैं। क्या वो आलाकमान को ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वो किसी गुटबाजी का हिस्सा नहीं है और लंगड़े, बाराती और रेस के घोड़ों की होड़ में शामिल होने का इरादा नहीं है। साल 2023 में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के आला नेताओं ने भी प्रदेश में आकर सख्त रूख दिखाया है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को संगठन की जिम्मेदारी से अलग करके भी बड़ा मैसेज दिया है। तो क्या अब ये अपनी खत्म हो रही राजनीति को बचाने की एक और कवायद है।

दिग्विजय की पोस्ट की टाइमिंग को लेकर भी उठ रहे हैं सवाल  

राहुल गांधी ने इस बार के अपने दौरे में इशारों इशारों में ये भी साफ कर दिया कि अब कुछ नेताओं को रिटायरमेंट ले लेना चाहिए। इसके बाद दिग्विजय सिंह का ये पोस्ट सामने आया है। हैरानी की बात ये है कि दिग्विजय सिंह जिस मंच पर नहीं बैठे वो सभा 31 मई को हुई थी, जबकि राहुल गांधी का दौरा 3 जून को हुआ। इसके बाद अब दिग्विजय सिंह ने ये पोस्ट किया है। उनकी पोस्ट की टाइमिंग की वजह से भी ये सवाल उठ रहे हैं कि दिग्विजय सिंह इसके जरिए क्या मैसेज देना चाहते हैं। क्या ये कोई सियासी दर्द है जो छलक रहा है या आलाकमान की नजरों में आने का कोई नया पैंतरा है। दिग्विजय राजनीति का नया चैप्टर थोड़ी और डिटेल में जाने के बाद ही समझा जा सकेगा।

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