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Photograph: (The Sootr)
बस एक दिन का इंतजार और, उसके बाद मध्यप्रदेश बीजेपी की शक्लोसूरत बदली हुई नजर आ सकती है। जिस पल का बीजेपी सहित पूरे प्रदेश को इंतजार था वो घड़ी आने वाली है क्योंकि नए प्रदेशाध्यक्ष का ऐलान होने की तारीख तय मानी जा रही है। और, यकीन मानिए अब सियासी गलियारों में अक्सर चहलकदमी वालों के बीच ये चर्चा है कि अगला प्रदेशाध्यक्ष होगा कौन। वो आदिवासी चेहरा होगा, कोई महिला होगी या फिर बीजेपी अपने फैसले से फिर चौंकाएगी। चलिए समझते हैं कि नया चेहरा और नया समीकरण क्या हो सकते हैं।
बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष बदलने का इंतजार इस साल की शुरूआत से ही हो रहा था। लेकिन अलग अलग कारणों से बीजेपी ये फैसला टालती रही। लेकिन अब सुन रहे हैं कि इस जुलाई ये फैसला होने तय है। इसकी वजह मानी जा रही है धर्मेंद्र प्रधान का प्रस्तावित दौरा। इस पद पर नए चेहरे की घोषणा उन्हें ही करनी है। अब तयशुदा कार्यक्रम कुछ यूं बताया जा रहा है कि एक जुलाई को नए अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल होंगे। दो जुलाई को चुनाव होगा और एक लंबी चौड़ी बैठक होगी जिसके बाद ऐलान हो जाएगा। वैसे चुनाव की प्रक्रिया को फॉर्मेलिटी कहा जा सकता है क्योंकि आलाकमान के दरबार से नाम तय हो कर आता है। बस उस पर मुहर लगानी होती है। और, बीजेपी में ये जुर्रत कोई नहीं करता कि आलाकमान के फरमान से अलग जाकर वोट कर सके। हालांकि चंद नाम फिर भी चर्चा में हैं।
हेमंत खंडेलवाल का नाम सबसे आगे
नए अध्यक्ष पद के चुनाव की सरगर्मियां तेज होने के बाद जो नाम सबसे आगे है वो है बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल का नाम। हम भी न्यूज स्ट्राइक में ये कई बार बता चुके हैं कि हेमंत खंडेलवाल का अध्यक्ष बनना तकरीबन तय है बस ऐलान की देरी है। लेकिन जातिगत जनगणना के ऐलान के बाद समीकरण काफी बदल चुके हैं। हो सकता है इसका असर बीजेपी के फैसले पर भी पड़ा हो जिस वजह से संभावनाएं जताई जा रही हैं कि बीजेपी ट्राइबल कार्ड भी खेल सकती है। अगर ऐसा होता है तो केंद्रीय मंत्री दुर्गादास उईके, खरगोन सांसद गजेंद्र पटेल या पूर्व मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते में से कोई एक इस बपद के हकदार बन सकते हैं।
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आदिवासी चेहरे को मौका देगी बीजेपी!
वैसे भी नंद कुमार साय के बाद से बीजेपी में कोई ट्राइबल अध्यक्ष नहीं रहा है। यानी कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का विभाजन होने के बाद बीजेपी ने किसी आदिवासी नेता को इस पद पर मौका नहीं दिया है। एक मोटे आंकलन को माने तो मध्यप्रदेश में आदिवासी वर्ग की आबादी 22 फीसदी तक हो गई है। इस वजह से ये संभावनाएं हैं कि बीजेपी इस बार आदिवासी चेहरे को ये मौका दे।
दुर्गादास उइके दे रहे खंडेलवाल को टक्कर
इसके अलावा भी बहुत से नाम चर्चा में हैं। हेमंत खंडेलवाल का पलड़ा इसलिए भारी है क्योंकि वो सीएम मोहन यादव और आरएसेस पदाधिकारी सुरेश सोनी की पसंद माने जा रहे हैं। उन्हें सबसे ज्यादा टक्कर मिल रही है दुर्गादास उईके के नाम से। जो आरएसएस में अच्छा इंप्रेशन तो रखते ही हैं साथ ही लो प्रोफाइल नेता भी माने जाते हैं। केंद्रीय केबिनेट में होने की वजह से वो हाईकमान की नजरों में भी चढ़े हुए हैं।
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महिला नेता को मिलेगी बीजेपी की कमान?
इन सारी चर्चाओ के बीच अगर कोई सरप्राइज एलिमेंट आ जाए तो भी ताज्जुब नहीं होगा। बीजेपी कई बार अलग अलग पदों पर ऐसे नाम लाकर वाकई चौंका भी चुकी है। लेकिन ये सरप्राइज एलिमेंट होंगे कौन। ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि बीजेपी इस इंपोर्टेंट पद पर किसी महिला नेत्री को मौका दे दे। अगर ऐसा होता है तो रेस में केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर, सीमा सिंह या फिर सांसद लता वानखेड़े आगे निकल सकती हैं। प्रदेश में फिलहाल अगले तीन साल तक कोई अहम चुनाव नहीं है। किसी महिला अध्यक्ष को ये मौका दे कर बीजेपी मिसाल भी कायम कर सकती है और नया प्रयोग भी कर सकती है। अगर इसमें सफल हुई तो आगे भी महिला नेत्रियों को ये मौका मिल सकता है।
वीडी शर्मा कायम कर चुके हैं रिकॉर्ड
अब बात करते हैं मौजूदा अध्यक्ष वीडी शर्मा का। इस पद पर रहते हुए वीडी शर्मा अपने आप में एक रिकॉर्ड कायम कर चुके हैं। वो प्रदेशाध्यक्ष पद पर सबसे ज्यादा दिन रहने वाले नेता बन गए हैं। इस मामले में उन्होंने पूर्व सीएम सुंदर लाल पटवा का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है। वीडी शर्मा करीब 63 माह तक प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज रहे जबकि पटवा 50 महीने ही प्रदेशाध्यक्ष रहे थे। हालांकि वो दो अलग-अलग कार्यकाल में ये कुर्सी संभाल चुके हैं। इस लिहाज से वो 86 महीने इस पद पर रहे, लेकिन ये दो भाग में है। इसलिए एक संलग्न कार्यकाल देखें तो वीडी शर्मा का रिकॉर्ड उनके रिकॉर्ड पर भारी पड़ता है।
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इस बार कौन सा अचंल मारेगा बाजी?
अब बात करें अंचलों के हिसाब से तो मालवा से अब तक आठ बार प्रदेशाध्यक्ष बने हैं। ग्वालियर चंबल को चार बार ही बीजेपी में ये मौका मिला है। जबकि बुंदेलखंड और विंध्य तो अब भी अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं। जब मध्यप्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था तब दो बार छत्तीसगढ़ के हिस्से में भी अविभाजित प्रदेश का प्रदेशाध्यक्ष बनने का मौका आया था। छत्तीसगढ़ से लक्खीराम अग्रवाल और नंदकुमार राय प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं।
मध्यप्रदेश में इस चुनाव के बाद उम्मीद है कि बाकी राज्यों में भी बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष चुन लेगी। फिलहाल 19 राज्यों में प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव बचे हैं। इस प्रक्रिया के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा। अटकले हैं कि 10 जुलाई तक बीजेपी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मिल जाएगा। देखना ये होगा कि इन पदों के जरिए बीजेपी कौन कौन से सियासी समीकरण साधती है।
नियमित कॉलम के लेखक हरीश दिवेकर मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं
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