News Strike : एक एलान के इंतजार में अटके पांच बड़े काम, बीजेपी कब लेगी प्रदेशाध्यक्ष पद पर फैसला?

बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के नाम की घोषणा में देरी से पार्टी के कई महत्वपूर्ण काम अटक गए हैं। निगम मंडल नियुक्तियां, सहकारिता और मंडी चुनाव, मंत्रिमंडल विस्तार जैसी अहम नियुक्तियां लंबित हैं। प्रदेशाध्यक्ष का फैसला न होने से पार्टी में असंतोष बढ़ रहा है...

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Harish Divekar
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NEWS STRIKE : सब कुछ तय तो फिर ऐलान में क्यों देरी। ये सवाल बीजेपी से बार बार हो रहा है पर पार्टी के पास कोई जवाब नहीं है। वो भी तब जब एक ऐलान के रुकने से पार्टी के ही बहुत से काम पेंडिंग लिस्ट में पहुंच चुके हैं। हम बात कर रहे हैं बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष के नाम की।

ये इंतजार इतना लंबा हो चुका है कि अब खुद बीजेपी में भी इस बारे में चर्चा नहीं होती, लेकिन चर्चा न होने का मतलब ये तो नहीं है कि सब कुछ ठीक है। प्रदेशाध्यक्ष तय न होने की वजह से बीजेपी कई स्तरों पर अलग अलग परेशानियों से जूझ रही है।

कहां उलझा है प्रदेशाध्यक्ष के नाम का पेंच

बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के नाम का ऐलान कहां अटक गया। इस सवाल का जवाब बीजेपी के फॉलोअर्स और वोटर्स ही नहीं बीजेपी के अपने कार्यकर्ता भी जानना चाहते हैं। प्रदेशाध्यक्ष के नाम का पेंच कहां उलझा है इसका रहस्य पार्टी के भीतर ही गहराता जा रहा है। इस वजह से पार्टी के बड़े-बड़े काम अटके हैं इससे नेताओं के बीच असंतोष भी पनप रहा है। सबसे पहला काम जो अटका है वो है निगम मंडल में नियुक्तियों का काम, दूसरा काम है सहकारिता चुनाव, तीसरा है मंडी चुनाव और चौथा है मंत्रिमंडल विस्तार और पांचवा काम है सीएम के मीडिया सलाहकार जैसी नियुक्तियां। 

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असंतुष्ट नेताओं को ऑफर किए जाते हैं ये पद 

बीजेपी में ऐसे बहुत से नेता हैं जिन्हें निगम मंडल में नियुक्तियों का इंतजार है। इस नियुक्ति के बहाने कोई भी राजनीतिक दल अपनी पार्टी के नेताओं को ओबलाइज करते हैं। इनमें से कुछ नियुक्तियां मंत्री दर्जे की होती हैं तो कुछ राज्य मंत्री दर्जे की। यानी जो व्यक्ति ये नियुक्ति हासिल करता है उसे इनमें से एक दर्जा मिलता है।

आमतौर कोई वरिष्ठ विधायक मंत्री नहीं बन पाता तो उसे निगम मंडल में भेज दिया जाता है। कुछ वरिष्ठ नेता ऐसे होते हैं जो चुनाव नहीं जीत सकते, लेकिन पार्टी की जीत में अहम रोल अदा करते हैं। उन्हें भी निगम मंडल में भेजकर उपकृत किया जाता है। कुछ असंतुष्ट नेताओं को शांत रखने के लिए ये पद ऑफर किया जाता है।

अमूमन ये नियुक्तियां प्रदेश के लेवल पर ही होती है। जिसमें सीएम से लेकर संगठन के अहम लोगों की सहमति शामिल होती है। अब जब प्रदेशाध्यक्ष ही तय नहीं है तो ये नियुक्तियां ही नहीं हो पा रही हैं। क्योंकि संगठन का मुखिया ही प्रदेशाध्यक्ष होता है। जिसकी सहमति इसमें बहुत जरूरी होगी।

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नियुक्ति में प्रदेशाध्यक्ष की सहमति जरूरी 

कमोबेश यही हाल सहकारिता चुनाव और मंडी चुनावों का भी है। विधानसभा चुनाव में जीत का बेस यही सारे चुनाव तय करते हैं। क्योंकि इसके नेता ही निचले स्तर तक पार्टी फेस बनते हैं। पार्टी की योजनाओं को सही तरीके से आगे पहुंचाते हैं और आम मतदाता से डायरेक्ट टच में रहते हैं, लेकिन ये सब पद भी भर पाना मुश्किल हो रहा है।

मंत्रिमंडल और बाकी राजनीतिक नियुक्तियों पर भी यही बात लागू होती है। माना कि इन दोनों जगहों पर सीएम की भूमिका ही अहम होगी, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष की सहमति भी जरूरी होगी। क्योंकि जो टीम बनेगी वो चुनाव तक या चुनाव नजदीक आने तक तालमेल बिठाकर काम करेगी।

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जनगणना भी पालीटिकल सीनेरियो में करेगी बदलाव

इसका दूसरा पहलू ये भी कि एक अहम पद पर ऐलान के बाद पार्टी बाकी समीकरण भी उसकी के अनुसार तय करेगी। इसे आसान तरीके से यूं समझिए कि पार्टी अगर किसी आदिवासी चेहरे को प्रदेशाध्यक्ष बनाती है तो बाकी तबकों का बैलेंस अन्य जगहों पर किया जाएगा। इसी लिहाज से पहले कुछ नाम सुझाए गए थे। जिसमें से एक नाम पर मुहर लगने की भी खबर थी, लेकिन अचानक ही पूरी प्रक्रिया रुक सी गई।

अब संभव है कि पार्टी को नए सिरे से पूरा विचार विमर्श करना पड़े। क्योंकि इससे पहले जब नाम तय हुआ था तब तक पार्टी खुद जातिगत जनगणना के खिलाफ थी, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर से पहले मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का भी ऐलान कर दिया। अब ये जनगणना भी देश के पालीटिक्ल सीनेरियो में काफी कुछ बदलाव करेगी। आगे की राजनीति भी उसी हिसाब से होगी। संभवतः बीजेपी ने भी नए प्रदेशाध्यक्षों का ऐलान भी इसी वजह से फिर टाल दिया है।

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...और फिर पटरी पर लौटना मुश्किल हो जाए

इसमें भी कोई दो राय नहीं कि सियासी उलटफेर और नए समीकरण तो बनते बिगड़ते ही रहेंगे। इस वजह से बीजेपी अगर प्रदेशाध्यक्ष जैसा अहम फैसला टालती रही तो इसका क्या अंजाम होगा। अभी तो वरिष्ठ नेताओं ने कार्यकर्ताओं को बांध कर रखा है। लेकिन ज्यादा देर होने पर ऐसा न हो कि बिना इंजन की रेलगाड़ी की तरह पार्टी का काम काज आगे बढ़ने लगे और फिर पटरी पर लौटना मुश्किल हो जाए।

News Strike Harish Divekar | न्यूज स्ट्राइक | न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर | मध्यप्रदेश | MP

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