News Strike: तिगुना कीटनाशक डालकर मप्र में पकी मूंग ? खरीदने पर क्यों मजबूर प्रदेश सरकार ?

मध्यप्रदेश में मूंग दाल में तीन गुना ज्यादा कीटनाशक डालने की रिपोर्ट सामने आई है, जिससे सेहत पर खतरा बढ़ रहा है। किसान इस प्रक्रिया से फायदा तो उठा रहे हैं, लेकिन आम लोगों के लिए यह खतरे की घंटी बन चुकी है। सरकार को इस मुद्दे पर यू-टर्न लेना पड़ा।

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Harish Divekar
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news strike 15 august

Photograph: (The Sootr)

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मूंग की सेहत से भरपूर दाल खाने से पहले जरा रुकिए। जरा सोचिए कि आपकी मूंग दाल में सेहत ज्यादा है या कीटनाशक ज्यादा है। ये वो मुद्दा है जो मध्यप्रदेश में बवाल मचा रहा है। आमतौर पर उबाल चाय की प्याली में आता है। लेकिन एमपी में मूंग दाल की प्याली में सियासी उबाल आया हुआ है। इस दाल पर आई एक रिपोर्ट ने पहले सरकार को चौंकाया। फिर सख्त फैसला लेने पर मजूबर किया।

उसके बाद राजनीतिक भूचाल सा आया और सरकार को यूटर्न भी लेना पड़ा। जिसके बाद मूंग दाल का आपके घर तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है। किसानों को इससे फायदा हो सकता है सरकार का वोटबैंक भी बच सकता है लेकिन आपको यानी कि आम मतदाता को नुकसान झेलना पड़ सकता है।

मध्यप्रदेश की सियासत में मूंग दाल का मुद्दा

मूंग दाल का मुद्दा काफी समय से मध्यप्रदेश की सियासत में गूंज रहा है। मूंग दाल उन दालों में से एक है जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है। पेट से जुड़ी कोई शिकायत हो या मामला किसी गंभीर मर्ज का हो। मूंग दाल खाने की सलाह दे दी जाती है। लेकिन मध्यप्रदेश में हालात उल्टे हैं।

यहां जो मूंग की दाल मौजूद है वो आपको रोगों से बचाने की जगह आपको रोगी बना सकती है। मूंग की दाल को जल्दी पकाने के चक्कर में मध्यप्रदेश के किसान जरूरत से ज्यादा कीटनाशक का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे उनकी तो चांदी हो जाती है लेकिन आम लोगों को कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है। 

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सबसे पहले आपको ये बता दें कि मध्यप्रदेश मूंग का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। पिछले साल 11.59 लाख हेक्टेयर में मूंग की बोवनी हुई थी। इस बार 13.49 लाख हेक्टेयर में मूंग बोई गई। नर्मदा नदी की पट्टी पर बसे सोलह जिले ऐसे हैं जहां मूंग खूब उगाई जाती है। इस साल मूंग का उत्पादन भी 21 लाख टन के आसपास होने की उम्मीद है। लेकिन सरकार ने काफी समय तक मूंग खरीदी की दरें ही तय नहीं की थी। उसकी वजह थी एक रिपोर्ट। जिसमें दावा किया गया था कि मध्यप्रदेश के किसान जरूरत से तीन गुना ज्यादा कीटनाशक दवा मूंग दाल में मिला रहे हैं। जिसकी वजह से दाल फायदे से ज्यादा नुकसान करने वाली हो सकती है।

समय से पहले पकाने के लिए केमिकल्स का इस्तेमाल

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक गेहूं के बाद मूंग दाल लगाने के लिए किसानों के पास सिर्फ साठ दिन का समय बचता है। क्योंकि उसके बाद मानसून आ जाता है। आमतौर पर मूंग दाल की फसल को पकने के लिए 75 दिन का समय लगता है। लेकिन कुछ केमिकल्स डालकर मूंग दाल को समय से पहले पका दिया जाता है जिससे मूंग दाल जहरीली बन जाती है।

मध्यप्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक वर्णवाल ने इस बारे में कहा था कि सरकार को इस बात की जानकारी है कि किसान मूंग दाल में बीड़ी पेस्टिसाइड डाल रहे हैं। इसका इस्तेमाल ठीक नहीं है जिसके बाद सरकार ने ये तय किया था कि मूंग दाल सरकार नहीं खरीदेगी। उसके बाद से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन का दौर। इस मामले में किसान संगठन भी किसानों के फेवर में आए।

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किसान की सबको फिक्र

भारतीय कृषक समाज ने बड़े आंदोलन की चेतावनी दी। नरसिंहपुर जिले के किसानों ने आंदोलन शुरू भी कर दिया। कृषक समाज का कहना था कि सरकार खुद सैंपलिंग कराए और फैसला करे। भारतीय किसान संघ भी सरकार के खिलाफ दिखा। संघ ने कहा कि सरकार खुद एमएसपी पर खरीदी नहीं करती है तो कृषि उपज मंडी में समर्थन मूल्य से नीचे की बोली न लगने दे। ताकि किसानों को कोई नुकसान न हो।

कुल जमा किसानों की फिक्र सब ने की लेकिन आम मतदाता की चिंता काफी पीछे छूट गई। किसानों की इस लड़ाई में कांग्रेस भी कूदी। जीतू पटवारी, उमंग सिंगार से लेकर कमलनाथ तक ने किसानों का खूब जमकर साथ दिया। जीतू पटवारी ने सवाल किया कि जिस मूंग दाल की खरीदी से इंकार किया जा रहा है उसे उस तरह लगाने के लिए किसानों को सुझाव किसने दिया। कमलनाथ ने इस बारे में सरकार पर आरोप लगाए थे कि सरकार की ओर से ही खरीदी का प्रस्ताव केंद्र के पास नहीं भेजा गया। फिर मूंग खरीदी कैसे होगी। इस बीच किसानों का एक दल केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी मिला। 

मामले की गंभीरता को समझते हुए शिवराज सिंह चौहान ने ये आश्वासन दिया कि सरकार अगर उन्हें प्रस्ताव भेजती है तो वो जरूर मूंग दाल खरीदने की मंजूरी देंगे। इस बीच एक और डर था जो सरकार को खाए जा रहा था। वो डर ये था कि अगर सरकार किसानों से मूंग दाल नहीं खरीदती है तो भी जहरीली मूंग दाल का बाजार में आने का खतरा है। हो सकता है कि किसान घाटे से बचने के लिए कम दामों पर व्यापारियों को मूंग दाल बेच दें। और तमाम कोशिशों के बावजूद जहरीली दाल बाजार में आ जाए। ये समझते हुए मोहन यादव ने दाल खरीदी की मंजूरी दे दी है।

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वोटबैंक को साधने की हुई कोशिश

अब समझना ये है कि आम मतदाता की सेहत की फिक्र की जीत हुई है या फिर सबसे बड़े और अहम वोटबैंक किसान की नाराजगी से बचने की कोशिश हुई है। सरकार अगर मूंग दाल नहीं खरीदती तो शायद किसान नाराज हो जाते जिसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ सकता था। सरकार ने एमपी में मूंग खरीदी पर यू-टर्न लेकर एक बड़े वोट बैंक को बचा लिया है, लेकिन आम आदमी का क्या।

क्या सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि दाल खरीदी के बाद वो जहरीली दाल बाजार में बिकने नहीं आएगी। ताकि आम मतदाता को भी कोई दिक्कत न हो। मूंग दाल उत्पादन में ये शिकायत नजर के बाद क्या अगली गर्मियों में मूंग किसानों पर नजर रखी जाएगी। ताकि वो फिर मूंग में तीन गुना ज्यादा कीटनाशक डालकर आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ न करें।

किसान अन्नदाता हैं। उनका साथ देना, उनका दर्द समझना अच्छी बात है। ये संवेदनशील सरकार की निशानी है। लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि आम मतदाता की चिंता ही भुला दी जाए। मूंग खाने वाले मतदाताओं की थाली में अच्छी और सही दाल पहुंचे, जहरीली दाल नहीं। क्या सरकार इसके लिए कोई सख्त सिस्टम तैयार कर सकेगी।

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इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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