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Photograph: (thesootr)
NEWS STRIKE (न्यूज स्ट्राइक): मध्यप्रदेश बीजेपी के घमासान का एपिसेंटर बन चुके सागर जिले पर पहली बार बीजेपी के किसी बड़े नेता ने चुप्पी तोड़ी है। यहां घमासान किसकी वजह से ये तो आप जानते ही होंगे। पर फिर भी बता देते हैं।
सागर जिले में बीजेपी के दो कद्दावर नेता खुलकर आमने सामने रहते हैं। एक हैं कांग्रेसी से भाजपाई बने गोविंद सिंह राजपूत और दूसरे हैं पुराने खांटी भाजपाई और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह। दोनों की अदावत किसी से छिपी नहीं है। क्या इससे बीजेपी पर असर पड़ता है। खुद भाजपाई दिग्गज से ही जान लेते हैं।
एक जिले की दो विधानसभा के नेताओं में टसल
मध्यप्रदेश में भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत के बीच की टसल इतनी बढ़ चुकी है कि उससे दिल्ली दरबार भी दहल चुका है। पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह हमेशा ही शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने गए हैं, जबकि राजपूत सिंधिया खेमे के वफादार नेता हैं।
लड़ाई सिर्फ इसलिए नहीं है कि दोनों के खेमें अलग-अलग हैं। बल्कि, इस बात की भी है कि दोनों एक ही जिले की अलग-अलग विधानसभा से आते हैं। दोनों ही कद्दावर हैं और सबसे बड़ी बात दोनों बरसों तक एक दूसरे के खिलाफ राजनीति करते रहे हैं।
एक दौर ऐसा था जब राजपूत कांग्रेस में थे और भूपेंद्र सिंह बीजेपी में ही थे। तब दोनों एक दूसरे के खिलाफ राजनीति करते थे और एक दूसरे की खिलाफत का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। अब दोनों के दल एक हो चुके हैं, लेकिन दिल नहीं मिल पा रहे।
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कार्यकर्ता भी खिलाफत का कोई मौका नहीं छोड़ते
एक बार तो भूपेंद्र सिंह खुल्लमखुल्ला ये आरोप लगा चुके हैं कि बाहर से आए नेता बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं को परेशान कर रहे हैं। जिसके जवाब में गोविंद सिंह राजपूत ने कहा था कि एक विधायक खुद को पार्टी से बड़ा समझने लगे हैं।
दोनों ने ही किसी का नाम नहीं लिया था, लेकिन भूपेंद्र सिंह का इशारा जिस ओर था निशाना वहीं जाकर लगा था। राजपूत ने भी जवाब देकर ये जाहिर कर दिया था कि वो उस इशारे को खूब समझे हैं।
सिर्फ दोनों दिग्गज ही नहीं उनके समर्थक और कार्यकर्ता भी एक दूसरे की खिलाफत का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। जिसका असर पूरे बुंदेलखंड की राजनीति पर नजर आने लगा है।
ये मामला इतना तूल पकड़ चुका है कि सीनियर लीडर्स भी कई बार दोनों नेताओं को समझाइश दे चुके हैं। एक नेता ने यहां तक कहा कि दोनों ही पार्टी के सीनियर लीडर्स हैं। इसलिए कोई भी दूसरा नेता कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। न इस सियासी जंग में दखल दे पाता है।
बीजेपी को खत्म करने की साजिश तक का आरोप
सीनियर लीडर्स की चुप्पी का नतीजा ये हुआ कि दोनों नेता छोटे-छोटे मुद्दे पर भी एक दूसरे को आड़े हाथों लेने में कसर नहीं छोड़ते हैं। जयसिंघ नगर का नाम बदलने को लेकर भी दोनों में काफी तू-तू मैं-मैं हुई।
इसके अलावा एक कार्यक्रम में भूपेंद्र सिंह ने ये तक बोल दिया कि दल बदल कर आए लोगों को पार्टी भले ही अपना मान लें, लेकिन वो कभी उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे। उनका ये भी आरोप रहा है कि दलबदल कर आए नेता बीजेपी कार्यकर्ताओं को परेशान करते हैं। यहां तक कि बीजेपी को सागर जिले में खत्म करने की साजिश तक कर चुके हैं।
प्रदेश अध्यक्ष ने रखी थी भोज के पहले ये शर्त
इस मामले में पूर्व प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा से भी सवाल हो चुका है। तब उन्होंने इसे सामान्य सियासी घटना जाहिर करते हुआ कहा था कि वो दोनों इंसान हैं। उनकी चिंता मत करो। ये बीजेपी है जो सिस्टम से चलती है। सब ठीक हो जाएगा, लेकिन कुछ खास बदलाव नहीं आ सका। दोनों की सियासी जंग बढ़ती चली गई और हर मौके बेमौके सबके सामने नजर भी आती रही।
इसी वजह से मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने एक खास पहल की थी। जिस पर हमने न्यूज स्ट्राइक का खास एपिसोड भी किया था। उस पहल की वजह और उसका इंपेक्ट दोनों हमने उस एपिसोड में बताए थे। एपिसोड की लिंक नीचे मौजूद है। आप देख सकते हैं। एक बार हम भी बता देते हैं। खंडेलवाल ने सागर में खास भोज रखा था। इसमें गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह दोनों मौजूद थे।
खबर थी कि खंडेलवाल ने भोज की शर्त ही ये रखी थी कि दोनों ही नेता उनके साथ उस भोज में साथ में बैठेंगे। एक साथ खाना खाएंगे और हंसते मुस्कुराते नजर भी आएंगे। उनकी ये कोशिश कितना रंग लाई थी। उस वक्त की तस्वीरों में साफ नजर आया था। जब दोनों एक साथ मुस्कुराते दिखे थे।
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हर क्षेत्र में मतभेद को खत्म करेंगे: खंडेलवाल
अब हेमंत खंडेलवाल ने ही इस सियासी जंग पर चुप्पी भी तोड़ी है। एक मीडिया हाउस से बातचीत में खंडेलवाल ने भूपेंद्र और गोविंद के बीच तनाव पर भी चर्चा की। खंडेलवाल ने इस तनाव को नजरअंदाज करने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की।
बल्कि, कहा कि कार्यकर्ताओं के बीच जब भी मनमुटाव होता है वो सिर्फ पर्सनल लेवल पर नुकसान नहीं करता बल्कि, पार्टी और पार्टी की विचारधारा के साथ-साथ पूरे क्षेत्र पर असर डालता है। खंडेलवाल ने ये भी कहा कि वो न सिर्फ सागर बल्कि हर क्षेत्र में मतभेद को खत्म करना चाहते हैं। इसलिए वो ज्यादा से ज्यादा संवाद कायम करने की कोशिश करते हैं।
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साथ भोज करना संवाद कायम करने का पहला चरण
यहां हम एक बात स्पष्ट कर दें कि बीजेपी में बड़े से बड़े नेता को भी पार्टी का कार्यकर्ता ही कहा जाता है। इसलिए खंडेलवाल की ये बात दोनों नेताओं के संदर्भ में भी कही गई है। एक बात और है। जब किसी भी मुसीबत या समस्या को खत्म करना होता है तो सबसे पहले ये मानना भी जरूरी होता है कि वो समस्या वाकई में है खंडेलवाल ने यही किया है।
पार्टी प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है कि वो सभी नेताओं के बीच मतभेद दूर करने की पहल करें। उन्होंने बाकी नेताओं की तरह गोविंद और भूपेंद्र के बीच चल रहे सियासी तनाव को नजरअंदाज करने की कोशिश नहीं की। न ही ये पार्टी लाइन और बीजेपी के अनुशासन की डींगे हाकी हैं। उन्होंने ये माना है कि पार्टी में कहीं-कहीं आपसी मनमुटाव और मतभेद हैं। और इसे मिटाने की पहल संवाद से ही की जा सकती है।
सागर के दोनों दिग्गजों के साथ भोज करना संवाद कायम करने का वही पहला चरण था। एक फ्रेम में आकर पहली बार गोविंद और भूपेंद्र एक साथ खुशनुमा अंदाज में दिखाई दिए थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि ये तस्वीर जब वायरल हुई होगी तब दोनों के समर्थकों पर इसका पॉजिटिव असर ही पड़ा होगा।
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भोज के बाद दोनों दिग्गजों के बीच तनाव कम होगा?
अब खंडेलवाल ये खुलकर मान चुके हैं कि मनमुटाव तो हैं और इसे खत्म करने की पहली भी पहले ही कर चुके हैं। तो अब ये उम्मीद भी की जा सकती है कि दोनों नेताओं को दोस्त बना सकें या न बना सकें।
पर इतना जरूर है कि खुलेआम चल रहे तनाव को कुछ हद तक कम कर सकेंगे और दोनों नेताओं को सियासी मर्यादाओं में रहने की सीख दे पाएंगे। साथ ही सागर को सियासी घमासान के एपिसेंटर बने रहने की पहचान से तो मुक्ति दिला ही पाएंगे।
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