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Photograph: (thesootr)
NEWS STRIKE (न्यूज स्ट्राइक): सरकार गिरी, सरकार बनी, सरकार चली, मध्यप्रदेश में अतिथि शिक्षकों के नाम पर न जाने क्या क्या सियासी रोटियां पकीं। कुछ नहीं हुआ तो बस ये कि उन्हें अपना वाजिब हक नहीं मिला। इस बात का दर्द एक बार फिर सड़कों पर उतरने वाला है।
अतिथि शिक्षकों ने इस बार 31 जनवरी को बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है। वजह बना है स्कूल शिक्षा मंत्री का ताजा बयान। इसके बाद उनकी नाराजगी चरम पर है। हालांकि, ये पहला मामला नहीं है जब स्कूल शिक्षा मंत्री ने ऐसा कोई बयान दिया है।
अतिथि शिक्षकों की सड़क पर उतरने की तैयारी
स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह के एक बयान ने अतिथि शिक्षकों की नाराजगी की आग में घी का काम कर दिया है। कुछ ही दिन पहले अतिथि शिक्षकों ने सरकार से सवाल किया था कि उन्हें वो सारी सुविधाएं कब मिलेंगी। जिसकी घोषणाएं पहले की जा चुकी हैं।
मोहलत या आश्वासन देने की जगह सरकार ने जो जवाब दिया उसने अतिथि शिक्षकों की सारी उम्मीद ही खत्म कर दी है। नतीजा ये हुआ कि अब अतिथि शिक्षक सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। पहले ये जान लीजिए कि स्कूल शिक्षा मंत्री ने आखिर क्या कहा है।
सीधी भर्ती में बोनस अंक देने की थी घोषणा
असल में स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने विधानसभा में ये कहा है कि पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की अतिथि शिक्षकों से जुड़ी घोषणाओं को पूरा करना संभव नहीं है।
बता दें कि पूर्व सीएम ने अतिथि शिक्षकों को विभागीय परीक्षा के जरिए नियमित करने और सीधी भर्ती में बोनस अंक देने की घोषणा की थी, लेकिन अब सरकार ने इससे साफ इंकार कर दिया है। इस बात को लेकर नाराजगी भरपूर है। अतिथि शिक्षकों का सिर्फ एक ही सवाल है कि सरकार का सिर्फ चेहरा बदला है पार्टी नहीं बदली तो फिर उन्हें किए वादे पूरा करने से इंकार कैसे किया जा सकता है।
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31 जनवरी को भोपाल में होगा बड़ा आंदोलन
उनकी बात भी बिलकुल सही है। चुनाव से पहले उन्हें वादा करने वाली सरकार भी बीजेपी की थी। जिस सीएम ने वादा किया था वो भी बीजेपी का ही था और अब भी सरकार और सीएम दोनों बीजेपी के ही हैं। फिर उनके साथ दगा कैसे हो सकता है।
इस मामले पर अतिथि शिक्षकों से जुड़े संगठन के प्रदेश महासचिव चंद्रशेखर राय ने भी कहा है कि अगर सरकार वादे नहीं निभा सकती तो मान ले की सारी घोषणाएं झूठी थीं।
इस बात से नाराज अतिथि शिक्षकों का आंदोलन अब 25 दिसंबर से शुरू होगा। ये आंदोलन पूरे एक माह तक अलग-अलग जगहों पर चलेगा। 25 जनवरी तक हर संभाग में सम्मेलन होंगे और फिर 31 जनवरी को भोपाल में बड़ा आंदोलन होगा।
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कभी कोरे आश्वासन, कभी दिए विवादित बयान
अतिथि शिक्षकों की ये नाराजगी या मांग आज की नहीं है। ऐसा कोई साल नहीं गुजरता जब उन्हें अपनी मांगे याद दिलाने के लिए सरकार के सामने आंदोलन न करना पड़ा हो। बदले में उन्हें मिलते हैं कोरे आश्वासन। कभी-कभी विवादित बयान।
स्कूल शिक्षा मंत्री ने पिछले साल भी ऐसा ही बयान दिया था जिससे अतिथि शिक्षकों की नाराजगी भड़क गई थी। तब मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा था कि मेहमान बनकर आओगे तो घर पर कब्जा कर लोगे क्या। इस बयान पर जमकर बवाल हुआ। आग में कांग्रेस ने भी बयानों का खूब घी डाला, इसके बाद मंत्रीजी यूटर्न लेने पर मजबूर हुए। उन्हें कहना पड़ा कि अतिथि शिक्षक उनके अपने बच्चों की तरह है।
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शिक्षा की कमान अतिथि शिक्षकों के भरोसे
अतिथि शिक्षकों को अगर मैं प्रदेश के दूर दराज के इलाकों की शिक्षा की रीढ़ कह दूं तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। गांव के जिन स्कूलों में जाने से नियमित टीचर्स कतराते है या जिन स्कूलों में नियमित टीचर्स की कमी होती है। वहां शिक्षा की कमान इन्हीं अतिथि शिक्षकों के भरोसे है। इसलिए ये प्रदेश की स्कूल शिक्षा का अहम हिस्सा हैं।
कितना अहम हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि उनके नाम पर कांग्रेस की साल 2018 में बनी सरकार गिरा दी गई थी। उस ऐतिहासिक सियासी घटना के तहत दल बदल करने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अतिथि शिक्षकों की मांगे पूरी न होने का हवाला भी दिया था। तब सिंधिया ने कहा भी था कि वो अतिथि शिक्षकों की ढाल भी हैं तलवार भी। पर न ढाल रही न तलवार की धार।
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सत्ता मिलते ही अतिथि शिक्षकों को भूल गए
सितंबर में एक प्रदर्शन के तहत अतिथि शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष केसी पवार ने मंच से कहा भी सिंधिया उनकी ढाल नहीं बन पाए। उनके नाम पर वो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए। उन्हें सत्ता मिली और वो अतिथि शिक्षकों को भूल गए। उस वक्त भी अतिथि शिक्षकों ने याद दिलाया था कि उनकी तीन मांगे कभी पूरी नहीं हो सकी।
शिक्षकों की पहली मांग नियमित करने की रही है। ताकि वो भी एक स्टेबल लाइफ जी सके। 17 साल तक काम करने वाले अतिथि शिक्षक को जिस तरह नौकरी से बाहर किया जाता है उस पर भी रोक लगाने की मांग है। लीव पॉलिसी भी लागू करने के लिए अतिथि शिक्षक मांग करते रहे हैं।
प्रदेश में करीब तीस हजार शिक्षकों के पद खाली
इसके अलावा अतिथि शिक्षकों ने एक ऑप्शन भी दिया है। उनका कहना है कि उन्हें नियमित न किया जा सके तो कम से कम संविदा शिक्षकों का दर्जा ही दे दिया जाए, लेकिन इस पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई है।
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में अतिथि शिक्षकों की संख्या सत्तर से बहत्तर हजार के करीब है। कुछ ही दिन पहले उदय प्रताप सिंह ने ये जानकारी भी दी थी कि प्रदेश में करीब तीस हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं।
ऐसे हालात में समझा जा सकता है कि अतिथि शिक्षक स्कूल शिक्षा के लिए कितने जरूरी हैं। उन पर राजनीति करने का असर स्कूली बच्चों पर कितना पड़ता होगा। जब ये शिक्षक एक माह लंबे आंदोलन में उतरेंगे। उस दौरान बच्चों को होने वाले नुकसान का जिम्मेदार कौन होगा। वो जो वादा करके भूल गए वो या फिर जो पुराने वादे करने से मुकर गए वो।
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