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Photograph: (thesootr)
NEWS STRIKE (न्यूज स्ट्राइक) : बीजेपी में गुटबाजी, ये बात सुनते ही बीजेपी नेताओं की त्योरियां चढ़ जाती हैं, लेकिन इसी बीजेपी में कमलनाथ जैसे दिग्गज को हराने वाले नेता तक को साइडलाइन कर दिया है।
छिंदवाड़ा में बीजेपी के नेताओं में खाई इतनी गहरी हो चुकी है कि अब सारी तनातनी खुलकर सामने आ चुकी है। आप समझ ही गए होंगे कि मैं किस नेता की बात कर रहा हूं।
हम बात कर रहे हैं विवेक बंटी साहू की। इसकी वजह से बीजेपी छिंदवाड़ा जैसा कांग्रेस का अभेद गढ़ जीत सकी और अब वही नेता कभी विवादों में घिरता है और कभी गायब कर दिया जाता है।
बंटी साहू ने दी कमलनाथ को चुनौती
विवेक बंटी साहू नाम सुनकर आपको साल 2024 का लोकसभा चुनाव याद आ ही गया होगा। इस चुनाव में बीजेपी ने पूरे मध्यप्रदेश की एक-एक लोकसभा सीट अपने नाम कर ली। वैसे तो सारी सीटों को लेकर बीजेपी काफी ज्यादा कॉन्फिडेंट थी। डाउट था तो बस एक सीट का, छिंदवाड़ा।
छिंदवाड़ा वो सीट थी जो बीजेपी पीएम मोदी के नाम की प्रचंड आंधी के बीच भी जीत नहीं सकी थी, साल 2019 में। इस सीट पर कमलनाथ को चुनौती देने का दम भरा विवेक बंटी साहू ने। कमलनाथ के बेटे लोकसभा चुनाव में उतरे और बंटी साहू ने उन्हें भारी वोटों से शिकस्त दे दी। बंटी साहू के राजनीतिक इतिहास पर आगे भी बात की जा सकती है। फिलहाल बीजेपी की गुटबाजी पर बात करते हैं।
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शादी बनी शक्ति प्रदर्शन का मौका
इस बड़ी जीत के बाद शायद विवेक बंटी साहू को भी ये लगा होगा कि पार्टी में उन्हें पलक पावड़ों पर बिठाया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उल्टे अपनी ही जीती हुई सीट पर वो लगातार गुटबाजी का शिकार हो रहे हैं। खुद भी गुटबाजी कर ही रहे होंगे। मामले उनके भी कम नहीं है। उस पर भी नजर जरूर डालेंगे।
अभी बात करते हैं ताजा मामले की। हाल ही में छिंदवाड़ा जिला अध्यक्ष शेषराव यादव के बेटे की शादी हुई। इस समारोह में शामिल होने खुद सीएम मोहन यादव पहुंचे। इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, जिले के प्रभारी मंत्री राकेश सिंह, मंत्री प्रहलाद पटेल भी पहुंचे।
शेषराव रिश्ते में बीजेपी नेता लता वानखेड़े के जीजा हैं। इसलिए वो भी पूरे समय मौजूद रहीं, लेकिन जिलाध्यक्ष के बेटे की शादी का मौका बीजेपी नेताओं के शक्ति प्रदर्शन का अवसर बन गया।
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पोस्टर्स से गायब थे विवेक बंटी साहू
इस शादी के लिए पूरे छिंदवाड़ा को ही विवाह मंडल में तब्दील कर दिया गया था। छिंदवाड़ा में आने से लेकर शादी तक के सारे रास्तों पर बीजेपी नेताओं ने स्वागत के रूप मे बड़े-बड़े पोस्टर लगाए थे। जिसके जरिए सीएम, प्रदेशाध्यक्ष और मंत्रियों का शहर में स्वागत हो रहा था, लेकिन इसमें से किसी भी पोस्टर में विवेक बंटी साहू नजर ही नहीं आए।
इसके बाद से सियासी गलियारों में फिर से गुटबाजी की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया। कुछ बीजेपी नेता ही दबी जुबान में ये कहने से नहीं चूके कि भले ही ये एक निजी कार्यक्रम था, लेकिन पोस्टर्स तो बीजेपी नेताओं ने ही लगवाए थे। जिसमें हर स्तर के नेता को जगह मिली थी। बस कोई नदारद था तो वो थे बंटी साहू।
एक तर्क ये भी दिया गया कि सारे पोस्टर जिला अध्यक्ष शेषराव यावद के समर्थकों ने लगवाए थे। इसलिए भी बंटी साहू की फोटो पोस्टर्स पर नजर नहीं आई। अब इसे ही तो गुटबाजी कहा जाता है, ये इन्हें कौन बताएगा। वैसे भी छिंदवाड़ा में ये बात छिपी नहीं है कि बतौर जिलाध्यक्ष शेषराव यादव कभी बंटी साहू की पसंद नहीं रहे।
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लता वानखेड़े सांसद पर रहीं भारी
इस साल जब बीजेपी हर जिला लेवल पर अपनी नई टीम का गठन कर रही थी। तब छिंदवाड़ा जिलाध्यक्ष का ऐलान करना भी टेढ़ी खीर साबित हो रहा था।
असल में यहां सांसद विवेक बंटी साहू चाहते थे कि टीकाराम चंद्रवंशी को जिलाध्यक्ष बनाया जाए और सागर की सांसद लता वानखेड़े यहां शेषराव यादव को पद दिलवाना चाहती थीं। आखिर में लता वानखेड़े ही सांसद पर भारी पड़ीं।
शेष राव से पहले खुद बंटी साहू छिंदवाड़ा के जिलाध्यक्ष थे। वो चुनावी मैदान में उतरे तो शेष राव को छिंदवाड़ा का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। बंटी साहू ने कमलनाथ को बेशक हराया, लेकिन जीत का थोड़ा सा क्रेडिट शेष राव भी ले गए। क्योंकि उस दौरान छिंदवाड़ा में बहुत से कांग्रेसी बीजेपी में शामिल हुए।
इस दरमियान बीजेपी अमरवाड़ा के उपचुनाव भी जीती। इसलिए शेष राव पर एक कामयाब छिंदवाड़ा अध्यक्ष माने गए और भारी खींचतान के बाद उन्हें इस पद का स्थाई दायित्व सौंप दिया गया, लेकिन उसके बाद से ही छिंदवाड़ा में गुटबाजी ने बड़ा रूप ले लिया है।
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ये रही कमलनाथ की ताकत की वजह
असल में छिंदवाड़ा में कई सालों से कमलनाथ का राज रहा है। उनके रहते कांग्रेस यहां बेहद मजबूत रही और बीजेपी लगातार कमजोर होती गई। बीजेपी की कमजोरी या आपसी खींचतान भी कमलनाथ की ताकत की एक बड़ी वजह रही। जिसकी वजह से छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ कहा जाने लगा।
इस गढ़ में सेंध लगाई विवेक बंटी साहू ने। उन्होंने साल 2018 और 2023 में विधानसभा चुनाव में कमलनाथ को ललकारा, लेकिन हार गए। पर, 2024 के चुनाव में वो नाथ परिवार को शिकस्त देने में कामयाब हो ही गए। इसके बाद वो कभी बीजेपी कार्यकर्ताओं के पैर धुलवाने और कभी नाथ परिवार के खिलाफ बयानबाजी को लेकर सुर्खियों में रहे, लेकिन इससे ज्यादा वो गुटबाजी के चलते हैडलाइन का हिस्सा बनते रहे हैं।
अब छिंदवाड़ा की ये गुटबाजी खुलकर पार्टी के आलानेताओं के सामने भी चुकी है। जो लगातार गहरी भी हो रही है। फिलहाल टाल भी दें, लेकिन आने वाले स्थानीय निकाय चुनाव से पहले इस मुश्किल से निपटना बीजेपी के लिए जरूरी भी है और मजबूरी भी है। वर्ना जो दुर्ग मुश्किल से हाथ आया है वो हाथ से निकल भी सकता है।
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