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Photograph: (The Sootr)
कहते हैं आदमी के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है। बरसों से जो सीख महिलाओं को दी जाती रही वो मध्यप्रदेश बीजेपी में सच हो गई। दो धुर विरोधी नेता एक साथ खाने की टेबल पर क्या मिले एक दूसरे के साथ हो गए। ये कारनामा कर दिखाया प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने। जो दो दशक में नहीं हो सका। वो कमाल एक डिनर टेबल पर हो गया। चाय की चुस्कियों के साथ मुस्कान तो दिखी पर कई सवाल भी उठे। क्या ये सशर्त समझौता है या फिर बस चंद पलों का दिखावा है।
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ये वो सियासी तस्वीर है जिसे देखने की तमन्ना बीजेपी लंबे समय से कर रही है। सागर के दो दिग्गज गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह को एक साथ एक मंच पर लाने के लिए बीजेपी शायद साम दाम दंड भेद सब अपना चुकी है। पर, ये तस्वीर साकार नहीं हो सकी। लेकिन हेमंत खंडेलवाल ने सिर्फ एक फोन कॉल पर ये कर दिखाया। सागर की राजनीति में ये दृश्य किसी जादू से कम नहीं है। सामने खाने की थाली। एक दूसरे को हंसते मुस्कुराते देख रहे गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह। बीजेपी के बहुत सारे शुभचिंतक बस यही सोच रहे होंगे कि इन मुस्कानों को नजर न लगे।
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लेकिन ये दुआ कबूल होना क्या बहुत आसान है। क्योंकि गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह के मतभेद किसी से छिपे नहीं है। सिर्फ दोनों नेता ही नहीं इन दोनों के समर्थक तक एक दूसरे को आमने सामने देखना पसंद नहीं करते हैं। दोनों की अदावत के इतिहास में जाने से पहले ये बता दें कि ये दोनों एक ही मेज पर आने को तैयार हुए तो हुए कैसे।
जारी हुआ था फरमान
प्रदेशाध्यक्ष बनने के करीब पांच महीने के बाद हमेंत खंडेलवाल ने सागर का दौरा किया। इस दौरे से पहले उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि सागर के सारे दिग्गज नेता एक साथ नजर आ सकें। वरना तो आप जानते ही हैं कि क्या होता। उनके सागर दौरे के बाद ऐसी हेडलाइन बनी दिखतीं कि प्रदेशाध्यक्ष के दौरे में भी दिखी तल्खी। साथ नजर नहीं आए भूपेंद्र गोविंद वगैरह-वगैरहा। लेकिन हेमंत खंडेलवाल ये तय किया कि ऐसी कोई स्थिति ही न बनें।
उन्होंने सागर के दौरे से पहले ही ये फरमान जारी कर दिया था कि उनके सामने सागर के सारे नेताओं को एक साथ एकजुट दिखना होगा। कोई मन मुटाव या मतभेद नजर नहीं आने चाहिए। अब जब प्रदेशाध्यक्ष का फरमान था तो उसे मानना भी मजबूरी था और एक साथ दिखना और बैठना भी मजबूरी था। सो दोनों नेताओं ने मन मारकर ही सही, इस प्रोटोकॉल को बखूबी निभाया। इसके बाद ये तस्वीरें भी खिंची। जिसे देखकर कहा जा सकता है कि एकजुटता लाने की हेमंत खंडेलवाल की कोशिश काफी हद तक कामयाब रही।
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दो दशक से राजनीतिक खटपट
कम से कम वो इन दो नेताओं को एक ही फ्रेम में लाने में कामयाब तो हुए। अब आगे क्या चुनौतियों होगी वो भी देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि दोनों नेताओं के बीच की रार बहुत पुरानी है। करीब दो दशक पहले गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह एक दूसरे के खिलाफ चुनाव तक लड़ चुके हैं। तब से दोनों के बीच राजनीतिक खटपट चलती आई है। साल 2020 में गोविंद सिंह राजपूत कांग्रेसी से भाजपाई हो गए।
वो उस पार्टी का हिस्सा तो बन गए जिसमें भूपेंद्र सिंह पहले से हैं। लेकिन दोनों दिल से विरोधी या राजनीतिक प्रतिद्विद्वी ही रहे। शिवराज सरकार में भूपेंद्र सिंह कद्दावार मंत्रियों में से एक थे। तब हालात ये थे कि गोविंद सिंह राजपूत सागर के कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर सीएम से उनकी शिकायत करने भोपाल आए थे।
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सीएम के सामने दिखा चुके हैं तल्खी
लेकिन सरकार बदलते ही हालात बदल गए। 2023 के बाद बनी मोहन सरकार में भूपेंद्र सिंह को मंत्री पद ही नहीं मिला है। तब से अब तक उनकी तल्खी सामने आ ही जाती है। पिछले साल दिसंबर में आयोजित सागर गौरव दिवस में भी भूपेंद्र सिंह के तल्ख तेवर नजर आए। इस कार्यक्रम में सीएम मोहन यादव के अलावा उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी भी पहुंचे थे। भूपेंद्र सिंह ने इस कार्यक्रम में अपने स्वागत से ही इंकार कर दिया।
कार्यक्रम में गोविंद सिंह राजपूत को डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल के बगल में जगह मिली थी। जबकि भूपेंद्र सिंह को दूसरी तरफ बिठाया गया। जहां सागर के एक और दिग्गज विधायक गोपाल सिंह भार्गव बैठे थे। मंच पर भूपेंद्र सिंह ने गुलदस्ता नहीं लिया और माइक पर भी नाराजगी जाहिर करने से नहीं चूके। उन्होंने कार्यक्रम में गोविंद सिंह राजपूत का नाम भी नहीं लिया। इस कार्यक्रम के लिए जो बैनर पोस्ट लगे थे। उसमें भूपेंद्र सिंह की फोटो नहीं थी। जिसके जवाब में भूपेंद्र सिंह ने मंच से ही कहा कि बैनर पोस्टर में नहीं दिलों में जगह होनी चाहिए।
कई बार हो चुके हैं आमने-सामने
जैसीनगर के नाम बदलने पर भी दोनों नेता आमने सामने नजर आए। गोविंद सिंह राजपूत ने एक कार्यक्रम में भूपेंद्र सिंह का नाम लिए बगैर ये भी कहा कि अभी तो प्रस्ताव भी तैयार नहीं हुआ और लोगों को तकलीफ होने लगी है। पिछले साल दीपावली मिलने के एक कार्यक्रम में भूपेंद्र सिंह ने भी बिना लिए कहा था कि पार्टी चाहे कांग्रेसियों को अपना मान ले वो कभी नहीं मानेंगे।
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क्या भूपेंद्र सिंह को मिला है कोई आश्वासन?
ये बयान तो बानगी भर हैं। ये जाहिर करने के लिए कि दो नेताओं के बीच मतभेद कितने गहरे हैं। क्या एक लंच या डिनर टेबल पर इस खाई को पाट देना आसान है। क्या एक साथ आने के लिए सिर्फ प्रोटोकॉल का हवाला देने के अलावा भी कोई आश्वासन दिया गया है। क्योंकि भूपेंद्र सिंह लंबे अरसे कैबिनेट में शामिल होने के लिए प्रयासरत हैं। खाने की मेज पर दिख रही इन मुस्कानों को स्थाई बनाए रखने के लिए क्या बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष अपनी पार्ट के वरिष्ठ नेता को ऐसा कोई आश्वासन भी देकर आए हैं। यूनिटी की डिमांड किस शर्त पर पूरी हुई है ये भी देर सवेर पता चल ही जाएगा।
इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं
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