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Photograph: (THESOOTR)
NEWS STRIKE। न्यूज स्ट्राइक: क्या मध्यप्रदेश बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इस सवाल को हम थोड़ा और रिफाइन करते हैं। क्या मध्यप्रदेश की कैबिनेट में सब कुछ ठीक नहीं है। कैबिनेट का आप मतलब तो खूब समझते ही होंगे।
फिर भी बता दें कि कैबिनेट मतलब वो समूह जिसका मुखिया खुद सीएम होते हैं और प्रदेश के सारे मंत्री उसका हिस्सा होते हैं। इसलिए इसे मंत्रिमंडल भी कहा जाता है।
मध्यप्रदेश कैबिनेट से जुड़ी ये खबर अब आम हो गई है कि मंत्रियों के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ समय से लगातार हर कैबिनेट बैठक के बाद तनाव, बहस या असंतोष की खबर सामने आती है। क्या प्रदेश के दो सीनियर मंत्री और नए नेताओं के बीच तालमेल की कमी इसका कारण है।
मतभेद जरूरी है पर मनभेद नहीं होना चाहिए
चर्चा के लिए जब भी कोई बैठक होती है तो उसमें बहस होना सामान्य बात है। राजनीतिक गलियारों में तो कई बार हंसते हुए कहा भी जाता है कि मतभेद होना जरूरी है मन भेद नहीं होना चाहिए, लेकिन मध्यप्रदेश की कैबिनेट में हालात उलटे नजर आ रहे हैं। मंत्रियों का मनभेद सामने दिख रहा है जो मतभेदों का कारण बन रहा है। मन भेद भी कुछ इस लेवल के हैं कि खुद बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष को एक इंटरव्यू में इस बारे में सफाई देनी पड़ी।
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सीनियर मंत्री और सरकार के बीच तालमेल नहीं
बैठक में सीनियर मंत्री और सरकार के बीच तालमेल नहीं बैठ रहा है। इस सवाल पर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने कहा कि सीनियर नेताओं का अपना सम्मान होता है। उन्होंने ये भी कहा कि वो और सीएम दोनों ये प्रयास कर रहे हैं कि सब साथ मिलकर चल सकें। इस बयान से ये तो साफ है कि सीनियर मंत्री और सरकार का तालमेल गड़बड़ा रहा है। प्रदेश की पिछली कुछ कैबिनेट बैठकों से ये साफ भी हो रहा है कि दो सीनियर मंत्री लगातार अपनी ही पार्टी की सरकार पर सवाल उठा रहे हैं।
ये सीनियर मंत्री कौन हैं। अगर आप नहीं समझे हैं तो नाम हम बताए देते हैं। मोहन कैबिनेट में दो सीनियर मंत्री हैं कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल। दोनों की राजनीतिक उम्र सीएम मोहन यादव और प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल से ज्यादा है, इसमें कोई दो राय नहीं। प्रहलाद पटेल मोदी कैबिनेट में मंत्री भी रहे हैं और कैलाश विजयवर्गीय का कद भी किसी केंद्रीय नेता से कम नहीं है।
दोनों प्रदेश के दिग्गज राजनेता हैं। कैबिनेट में यकीनन बाकी सभी नेताओं से ये राजनीतिक कद और तजुर्बे में काफी ज्यादा हैं। ये बाद अलग है कि सत्ता में इनका ओहदा सीएम से नीचे ही है और होगा भी।
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कैबिनेट बैठकों में कई मुद्दों पर विरोध
मोहन कैबिनेट की पिछली कुछ बैठकों में खटपट की सुगबुगाहटें आ रही हैं। ये इत्तेफाक तो नहीं हो सकता कि अधिकांश बार दोनों सीनियर नेता का नाम भी तब सुर्खियों में जरूर आया है। कैबिनेट बैठकों में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और मंत्री प्रहलाद पटेल कई मुद्दों पर विरोध दर्ज कराते रहे हैं। ताजा मामला ही ले लीजिए।
मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में अनुपूरक प्रस्ताव की चर्चा के दौरान उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा जब अनुपूरक प्रस्ताव पढ़ रहे थे। तब नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बीच में ही उन्हें टोक दिया और पूछा कि जब देश में जीएसटी बढ़ रहा है तो मध्यप्रदेश में जीएसटी क्यों घट रहा है। ये मामला ज्यादा न बढ़े। शायद इसलिए खुद सीएम मोहन यादव ने बीच में ही टोका और कहा कि इस मुद्दे पर अलग से चर्चा हो सकती है।
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मंत्रिमंडल में अब उभरने लगे हैं मतभेद
इस पर पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल बीच में बोल पड़े। उन्होंने कहा कि इस बारे में वित्त मंत्री को जवाब देना चाहिए साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि कैलाशजी को बोलने दीजिए वो बिलकुल सही कह रहे हैं। इसके बाद जीएसटी पर बहस का सिलसिला करीब पांच से सात मिनट तक चलता रहा। इस दौरान बाकी सारे मंत्री चुप्पी साधे रहे। ये बहस साफ इशारा करती है कि मंत्रिमंडल में मतभेद अब उभरने लगे हैं और कभी भी टकराव का रूप ले सकते हैं।
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मंत्रियों को सड़कों से जुड़े प्रोजेक्ट पर आपत्ति
ये भी बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। वरिष्ठ मंत्रियों की असहमति अब खुलकर नजर आने लगी है। एक कैबिनेट बैठक में कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल ने सड़कों से जुड़े प्रोजेक्ट पर भी आपत्ति जाहिर की थी। उनकी आपत्ति को सरकार के प्रति नाराजगी से जोड़कर भी देखा गया था। असल में आपत्ति 2312 करोड़ रुपए के बजट पर थी।
दोनों मंत्रियों का कहना था कि सिंहस्थ के लिए सड़क बनानी है तो बजट भी सिंहस्थ के फंड से ही लिया जाना चाहिए। इस पर सीएम मोहन यादव का तर्क था कि सिंहस्थ का बजट सिर्फ 500 करोड़ रुपए है। इसके बाद जो कैबिनेट बैठक हुई। उसमें दोनों ही मंत्री नदारद रहे। इसके बाद इस बात को और बल मिला कि मंत्री और सरकार के बीच सब कुछ ठीक नहीं है।
सीएम मोहन यादव पर तालमेल बिठाने की चुनौती
कुछ ही दिन पहले इंदौर दौरे के दौरान कैलाश विजयवर्गीय ने कुछ प्रशासनिक फैसलों पर खुलकर असंतोष जाहिर किया था। प्रहलाद पटेल ने भी अपने विभाग के कामकाज से जुड़ी एक बैठक में ये नाराजगी जाहिर की थी कि फैसले अब बिना चर्चा के हो रहे हैं। नर्मदा किनारे अवैध निर्माण के मुद्दे पर भी मंत्रियों की राय में काफी अंतर नजर आया था।
ये मुद्दे छोटे-छोटे हो सकते हैं, लेकिन कभी भी बड़ा रूप ले सकते हैं। क्योंकि इनसे ये तो साफ जाहिर है कि कई मुद्दों पर सरकार अपने ही वरिष्ठ मंत्रियों से अलाइन नहीं हो पा रही है। इसका नतीजा क्या होगा। क्या तालमेल की ये कमी आलाकमान की नाराजगी का कारण बन सकती है। क्या वरिष्ठ मंत्री कैबिनेट के दूसरे पावर सेंटर बन सकते हैं।
ऐसा हुआ तो सत्ता की गाड़ी बुरी तरह डगमगा भी सकती है। ऐसे में सीनियर और जूनियर की खाई को पाटकर कैबिनेट में तालमेल बिठाने की चुनौती से सीएम मोहन यादव को ही पार पाना होगा।
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