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Photograph: (The Sootr)
कहते हैं ना, वक्त और जज्बात बदलते देर नहीं लगेगी। अब देखिए। वही हुआ न जिस बात का डर था। न वो हंसकर मुस्कुराकर बात करना काम आया। न वो गलबहियां रंग लाईं और न ही एक-दूसरे के साथ देने की कोशिश कामयाब हुई। कुछ दिन का प्यार जता कर दोनों अपनी-अपनी राह पर चल पड़े हैं। और, इस बार दुश्मनी ज्यादा गहरी नजर आ रही है। क्या आप समझें हम किसकी बात कर रहे हैं। अगर जवाब हां है तो बस जान लीजिए कि अब दुश्मनी इस लेवल पर है कि ग्वालियर चंबल की हवा बीजेपी से कांग्रेस की तरफ दोबारा चलने लगी है। और अगर नहीं समझें तो चलिए बने रहिए हमारे साथ और गौर से पढ़िए एक-एक लाइन।
राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं
ये अकसर कहा जाता है कि राजनीति सबसे ज्यादा अनिश्चितता से भरा हुआ फील्ड है। यहां कब कौन किसके साथ है। कौन किसके साथ होते हुए भी साथ नहीं है और कब कौन एक दूसरे का दुश्मन बन जाए कहना मुश्किल है। पिछले दिनों ऐसी ही एक सियासी तस्वीर ने ये साबित कर दिया कि राजनीति में सबसे ज्यादा कुछ निश्चित है तो वो अनिश्चितता ही है। चलिए अब सारी पहेलियां बुझाना बंद करते हैं। हम जिसकी बात कर रहे हैं, वो हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह। बीते दिनों दोनों ही जमकर लाइमलाइट लूट रहे थे। वैसे तो हमेशा ही एक-दूसरे के खिलाफ नजर आते हैं। लेकिन, पार्टी बदलने के बाद दोनों की नजदीकियां नए अंदाज में नजर आईं। ज्योतिरादित्य सिंधिया एक गैर राजनीतिक कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह का हाथ पकड़ कर उन्हें मंच पर ले गए। राजा ने भी महाराज के इस जेश्चर का कर्ज अदा करते हुए बताया कि उन्होंने किस मजबूरी में दल बदला।
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दिग्विजय ने शुरू की पॉलिटिकल सर्जरी
ये तस्वीरें देखकर आपको क्या लगा था। क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह अब एक हो गए हैं। क्या अब ग्वालियर चंबल में अब राजनीति के ये दो सूरमा आपस में नहीं टकराएंगे। इन सब सवालों का जवाब है सिर्फ एक कि ये दोनों गैर राजनीतिक रूप से एक हो सकते हैं। लेकिन जब राजनीति के मैदान में होंगे तब आमने सामने ही होंगे। फिर भले ही पार्टी एक हो या अलग अलग ही क्यों न हो। एक बार फिर मध्यप्रदेश में दोनों की सियासी रार नजर आने लगी है। दोनों खुलकर एक दूसरे के सामने नहीं है। लेकिन कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने पॉलिटिकल सर्जरी शुरू कर दी है। जिसका नतीजा ये है कि ग्वालियर चंबल में अब हवा बीजेपी से कांग्रेस की तरफ वापस बहने लगी है।
बीजेपी की इसलिए बढ़ी टेंशन
माजरा ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया से नजदीकियां बढ़ाने के बाद दिग्विजय सिंह एक बार फिर कांग्रेस नेता के फुल फॉर्म में लौट आए हैं। और अब अपने बेटे जयवर्धन के साथ सिंधिया के गढ़ में जबरदस्त तरीके से एक्टिव हैं। दिग्विजय सिंह की ये सक्रियता बीजेपी में भी कानाफूसी बढ़ा रही है। बीजेपी को टेंशन होना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि 2020 के ऐतिहासिक दल बदल के दौरान कांग्रेस के सबसे ज्यादा नेता और कार्यकर्ता इसी क्षेत्र से बीजेपी का हिस्सा बन गए थे। और, अब दिग्विजय सिंह का उनके बीच पहुंचना बीजेपी को परेशान करने वाला यकीनन हो सकता है। और, इसी बीजेपी का हिस्सा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हैं। गढ़ भी उन्हीं का है तो इसमें कोई शक नहीं कि परेशान तो वो भी हो ही रहे होंगे।
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घर वापसी के लिए खास सदस्यता अभियान
दिग्विजय सिंह जब से एक्टिव हुए हैं तब से बहुत से कांग्रेसी जो बीजेपी में चले गए थे उन्होंने घर वापसी शुरू कर दी है। ऐसे दलबदलू कार्यकर्ताओं के लिए दिग्विजय सिंह ने खास सदस्यता अभियान चलाया है। अपने गृहनगर राघोगढ़ से दिग्विजय सिंह ने सदस्यता अभियान शुरू किया है। सिर्फ एक छोटे से कार्यक्रम में ही बीजेपी के करीब 50 से ज्यादा कार्यकर्ता वापस कांग्रेस में शामिल हो गए। इसमें कुछ ऐसे भी हैं जो मूल रूप से भाजपाई ही थे। जो शिवपुरी की कोलारस विधानसभा सीट से ताल्लुक रखते हैं। इस बारे में पोहरी के विधायक कैलाश कुशवाहा ने मीडिया को ये बयान भी दिया कि ये तो बस शुरुआत मात्र है। अभी तो हजारों की संख्या में भाजपा कार्यकर्ता कांग्रेस में शामिल होंगे।
दबबदल होना कोई ताज्जुब की बात नहीं
वैसे तो ये काम मुश्किल लगता है, लेकिन नामुमकिन नहीं है। दलबदल किस स्तर पर कितना हो सकता है, ये तो खुद बीजेपी ही साबित कर चुकी है। इसलिए अगर कुछ कार्यकर्ता घर वापसी करते हैं और कई कार्यकर्ता दलबदल करते हैं तो कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी। कुशवाहा तो ये दावा भी कर चुके हैं कि बहुत से बीजेपी कार्यकर्ता उनसे ही संपर्क साध रहे हैं और कांग्रेस में शामिल होना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह का मूल मकसद भी यही बताया जा रहा है कि दलबदल कर बीजेपी में गए कार्यकर्ता वापस कांग्रेस में आ जाए।
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क्या से क्या हो गया...
अब एक सवाल और जो शायद आपके मन में भी आ ही रहा होगा। वो ये कि जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास ज्यादा कुछ बचा ही नहीं है तो फिर घर वापसी का फायदा क्या। असल में हालात कुछ यूं है कि दलबदल के बाद से प्रदेश में बीजेपी कार्यकर्ता भी बंटे हुए हैं। जिसकी वजह से महाराज भाजपा और पुरानी भाजपा का जुमला भी चल निकला था। इसका नुकसान ये हो रहा है कि या तो दलबदलू कार्यकर्ता कुछ काम ही नहीं कर पा रहे हैं या फिर उनकी वजह से पुराना भाजपाई कार्यकर्ता नीरस हो रहा है। ऐसे में जाहिर है बहुत से कार्यकर्ताओं को घर वापसी ही ज्यादा मुफीद नजर आएगी। जहां काम भी मिले और बात भी बने। इससे ग्वालियर चंबल में कांग्रेस कितनी मजबूत होगी और बीजेपी को कितना नुकसान होगा ये भी देखने वाली बात होगी।
पर दिग्विजय सिंह ने जो किया है और जो करने वाले हैं क्या उसे देख सुनकर महाराज का दिल ये नहीं गुनगुना रहा होगा कि क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार में....
इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं
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