भूपेंद्र-गोविंद ने साथ में किया डिनर, फिर चाय की चुस्कियां लीं; क्या रंग लाएगी खंडेलवाल की यह पहल?

मध्यप्रदेश के सागर में भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने डिनर डिप्लोमेसी अपनाई। उन्होंने भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत को एक साथ बुलाया। इस बातचीत से संगठन को मजबूती मिलने का संदेश दिया गया। सियासी दुश्मनी की दीवारें गिराने की कोशिश की गई।

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The Sootr
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BHOAPL.मध्यप्रदेश के सागर की राजनीति में लंबे अरसे से चली आ रही सियासी खींचतान क्या खत्म होने की तरफ बढ़ रही है? क्या जिले के दो बड़े भाजपा नेताओं के बीच विवाद की आग ठंडी पड़ने जा रही है? इन सवालों ने राजनीतिक गलियारों में फिर हलचल पैदा कर दी है। वजह है, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की वह पहल, जिसने दो पावर सेंटर्स को एक मेज पर बैठा दिया। 

जी हां, सागर प्रवास के दौरान प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने जिस तरह की समन्वय रणनीति अपनाई है, उसने राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया है। उन्होंने डिनर डिप्लोमेसी अपनाई। पहले पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह को मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के घर बुलाया। वहां दोनों के बीच डिनर कराया। इस दौरान दिग्गज नेता गोपाल भार्गव भी मौजूद रहे।

इसके बाद खंडेलवाल मंत्री राजपूत को साथ लेकर भूपेंद्र सिंह के घर पहुंचे, जहां चाय पर लंबी बातचीत चली। इस कवायद का संदेश साफ था कि सियासी दुश्मनी की दीवारें गिरें। संवाद शुरू हो और संगठन मजबूत नजर आए। इस दौरान खंडेलवाल ​विभिन्न बैठकों और कार्यक्रमों में शामिल हुए। पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह भी पूरे समय उनके साथ मौजूद रहे।

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बढ़ गई थी कड़वाहट 

भूपेंद्र और गोविंद की राजनीतिक तल्खी सार्वजनिक तौर पर किसी परिचय की मोहताज नहीं रही। महीनों से दोनों गुटों के बीच टिप्पणियों, आरोपों और रिश्तों में कड़वाहट की खबरें सामने आती रहीं। शुरुआत में यह प्रतिद्वंद्विता पर्दे के पीछे थी, लेकिन हाल के दिनों में बयानबाजी खुलकर सामने आने लगी थी। पार्टी स्तर पर कई बार सुलह की कोशिशें हुईं। बैठकें चलीं, संदेश भेजे गए, पर मुकाम तक बात नहीं पहुंची।

अब खंडेलवाल ने तरीका बदला और सीधे दिल तक दस्तक दी। उनका मकसद संगठन में उपजे अविश्वास की जड़ों को कमजोर करना था।

यह विवाद इसलिए भी बढ़ गया था, क्योंकि भाजपा के भीतर गुटीय राजनीति, कार्यकर्ताओं में असमंजस और संगठनात्मक अनुशासन पर सवाल उठने लगे थे। पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता खुलकर किसी तरफ नहीं बोल पाते थे।

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एक दूसरे पर लगाए थे आरोप 

पिछले महीनों में भूपेंद्र सिंह ने कहा था कि बाहर से आए नेता पुराने कार्यकर्ताओं को दबा रहे हैं। गोविंद सिंह राजपूत ने पलटवार करते हुए आरोप लगाया था कि कुछ विधायक खुद को पार्टी से बड़ा समझ रहे हैं। इन बयानों ने विवाद को व्यक्तिगत टकराव से आगे ले जाकर संगठनात्मक संकट की शक्ल दे दी थी।
अब जब प्रदेश अध्यक्ष ने खुद जिम्मेदारी उठाई है तो सागर ही नहीं, पूरा प्रदेश भाजपा इस पहल को अलग नज़रिए से देख रहा है। यह सिर्फ मेल-मुलाकात नहीं, बल्कि नियंत्रण, संतुलन और भरोसे की राजनीतिक कोशिश मानी जा रही है।

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दिल्ली तक पहुंची थी गूंज 

आपको बता दें कि भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत की राजनीतिक जंग की गूंज दिल्ली तक जा पहुंची थी। इससे बीजेपी की कार्यशैली और संगठनात्मक मजबूती को कई बार सवालों के घेरे में ला दिया। भूपेंद्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं; वहीं राजपूत ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं।

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