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मध्य प्रदेश में हुई ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के समापन पर गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि दो ही दिन में 30 लाख 77 हजार करोड़ का निवेश आया। ग्लोबल समिट से प्रदेश को तो बहुत कुछ मिला, लेकिन बात सिर्फ सीएम मोहन यादव की करें तो उन्हें क्या मिला। यूं देखा जाए तो मोहन यादव को सीएम की कुर्सी संभाले अभी डेढ़ साल का वक्त भी नहीं हुआ। इसके बाद भी बीजेपी के ही गलियारों में ये अटकलें लगने लगी हैं कि वो अब उस पंक्ति में शामिल हो चुके हैं। जिस पंक्ति में बीजेपी के दूसरे प्रदेशों के सीएम शामिल हैं जिसमें योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्व सरमा और देवेंद्र फडणवीस का नाम आता है। अब मोहन यादव का नाम भी इस लिस्ट मे शामिल हो चुका है।
बीजेपी अपने कुछ फैसलों से लगातार चौंका रही है। खासतौर से विधानसभा चुनावों के बाद जिस तरह से बीजेपी सीएम फेस का चुनाव करती है। वो फैसला हमेशा ही हैरान करने वाला रहता है। हाल ही में दिल्ली में रेखा गुप्ता को सीएम का पद सौंपना हो, हम उसकी बात करें या उससे पहले तीन राज्यों में जो चुनाव हुए। उनकी बात कर लें। साल 2023 में तीन राज्यों में चुनाव हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। तीनों ही जगह पर बीजेपी ने ऐसे नेताओं को सीएम की गद्दी सौंप दी जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। राजस्थान में भजन लाल को ये कुर्सी मिली। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय को सीएम चुना गया और मध्य प्रदेश की कमान मोहन यादव के हाथ में आई।
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राजनीतिक जानकारों के दावे हुए फेल
तीनों में ही एक फैक्टर कॉमन था, वो ये कि किसी ने भी ये उम्मीद नहीं की थी कि सीएम के पद पर ऐसे चेहरों को मौका दिया जाएगा। मध्य प्रदेश में भी कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल जैसे सीनियर लीडर्स के नाम इस अहम पद की रेस में सबसे आगे थे। लेकिन, मौका मिला मोहन यादव को। इस ऐलान के साथ ही बड़े बड़े राजनीतिक जानकारों के दावे फेल हो गए थे। उस समय ये भी अटकलें थीं कि मोहन यादव के नाम पर जमकर गुटबाजी होगी और वरिष्ठ नेता हावी रहेंगे। लेकिन इस सोच या डर को भी खत्म करने में मोहन यादव देर नहीं लगाई।
खैर ये सब पुरानी बातें हैं। हम एक बार फिर उन तीन नामों का जिक्र करते हैं, जिन्हें एक साथ सीएम बनने का मौका मिला। ये तीन नाम है भजन लाल, विष्णु देव साई और मोहन यादव। तीनों एक ही साथ सीएम बने। तीनों को अपने अपने राज्य की जिम्मेदारियां संभालते हुए एक समान ही वक्त भी हुआ है, लेकिन जब हम बात करते हैं सीएम रहते हुए प्रदेश की जिम्मेदारी संभालना और नेशनल लेवल पर अलग छवि बनाना। तब सीएम मोहन यादव अपने आप इस कतार से बाहर आकर दूसरी कतार में शामिल नजर आते हैं।
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योगी, हिमंता और फडणवीस की कतार में आए मोहन यादव
ये वो कतार है जिसमें बीजेपी के चंद दिग्गज नेता और सीएम के नाम शामिल हैं। योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्व सरमा और देवेंद्र फडणवीस के बाद इस कतार में अब सीएम मोहन यादव का नाम भी लिया जा सकता है। क्योंकि डेढ़ ही साल में मोहन यादव ने अपने नाम के साथ जुड़ा जूनियर नेता, पहली बार के सीएम जैसे सारे जुमलों को काफी पीछे छोड़ दिया है।
इसका सबसे पहला उदाहरण हम लोकसभा चुनाव का मान सकते हैं। पार्टी की मंशा थी कि बीजेपी यहां हर सीट पर जीत हासिल करे। उन्होंने ये कर दिखाया। इसके बाद पार्टी ने उन्हें दोबारा परखा दूसरे प्रदेशों में प्रचार की जिम्मेदारी सौंप कर। प्रचार वाली सीटों पर जीत दिलाने में उनका स्ट्राइक रेट भले ही सौ फीसदी न रहा हो, लेकिन वो अधिकांश सीटें जिताने में कामयाब रहे।
उनका कद ऊंचा करने में पार्टी ने भी थोड़ा जोर लगाया। बीजेपी ने तय किया कि हरियाणा में सीएम फेस चुनने के लिए मोहन यादव भी एक पर्यवेक्षक होंगे। इस लिस्ट में पहला नाम अमित शाह का था और दूसरा नाम मोहन यादव का था। इसमें कोई शक नहीं कि इस फैसले ने भी मोहन यादव की छवि एक बड़े नेता के तौर पर बनाने में अहम भूमिका अदा की।
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मोहन यादव ने बहनों में कायम किया अपना भरोसा
अब बात करते हैं उस योजना की जो बीजेपी की फ्लेगशिप योजना है। ये योजना है लाडली बहना योजना जिसका चुनावी मॉडल इतना हिट रहा कि बीजेपी ने कुछ और राज्यों में इस योजना को अलग अलग तरह से लॉन्च किया। न केवल इतना बल्कि इस योजना को दूसरे सियासी दलों ने भी कॉपी किया। इस योजना के तहत राशि बढ़ाने के वादे का शगूफा विपक्ष ने कई बार उठाया। लेकिन, हर बार सीएम मोहन यादव ने इस मुद्दे को इस तरह हैंडल किया कि लाडली बहना अब तक प्रदेश सरकार के साथ हैं और उनमें इस बात का भरोसा भी कायम है कि बहुत जल्द उनसे किया वादा पूरा भी होगा।
ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के सफल आयोजन से सभी खुश
अब बात करते हैं ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट की। समिट में कितना निवेश आया है इसका भारी भरकम आंकड़ा खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बता चुके हैं। अंदरखाने की खबर ये है कि इस आयोजन से पीएम मोदी और बीजेपी का पूरा मैनेजमेंट काफी खुश बताया जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि इस फीडबैक से मोहन यादव को और फायदा होगा और उनके मैनेजमेंट की साख पार्टी के अंदर ही और बढ़ेगी। किसी भी नेता के लिए सिर्फ डेढ़ साल में ये उपलब्धि हासिल करना आसान नहीं है।
मुश्किलें और चुनौतियां और भी आएंगी
इसी रफ्तार के साथ योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्व सरमा ने बतौर सीएम अपनी जगह मजबूत की थी। एक फर्क ये भी था कि योगी और हिमंता दोनों ही हार्ड हिंदुत्व के फेस रहे हैं और ऐसे मामलों पर मुखर भी रहे हैं। लेकिन, मोहन यादव ने ऐसी छवि चुनी है जो उन्हें हिंदुवादी नेता तो बनाती है लेकिन हार्ड और कॉन्ट्रोवर्शियल हिंदुत्ववादी एजेंडे से भी दूर रखती है। अपने प्रदेश की तासीर के अनुसार उन्होंने ये छवि गढ़ी है, जो कॉन्ट्रोवर्शिलय होने की जगह प्रोग्रेसिव ज्यादा दिखती है। पर अब भी उन्हें इस पद पर लंबा रास्ता तय करना है। जाहिर सी बात हैं मुश्किलें और चुनौतियां और भी आएंगी। तब मोहन यादव किस कतार का हिस्सा बनते हैं ये उनके फैसलों के आधार पर तय होगा।
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