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Photograph: (the sootr)
मध्य प्रदेश में बीजेपी ने कांग्रेस की ऐसी कमर तोड़ी हुई है कि कांग्रेस जितना बार सीधा खड़ा होने की कोशिश करती है। फिर झुकने पर मजबूर हो जाती है। हालांकि कांग्रेस ने कोशिश नहीं छोड़ी है। एक बार फिर कांग्रेस ने अपनी कमर को मजबूत करने का तरीका ढूंढ निकाला है। जिसे सुनकर आप ये जरूर कहेंगे कि बहुत देर कर दी मेहरबां आते आते। लेकिन देर आने के बाद अगर थोड़ा बहुत भी दुरुस्त आ गई। तो ये कहा जा सकता है कि अगर प्लानिंग सही रही तो आने वाले दो तीन साल में कांग्रेस कुछ न कुछ कमाल तो दिखा ही लेगी। कांग्रेस का नया तरीका सुनकर ये सवाल भी जरूर उठेंगे कि कांग्रेस अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है या फिर पार्टी को एक्टिव रखने का नया जरिया तलाश लिया गया है।
प्रदेश में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। कांग्रेस का हाल लोकसभा में बहुत बुरा रहा। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी। विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में अगर कुछ बदला तो वो थे सिर्फ चेहरे। बीते चार दशकों से प्रदेश में जमे चेहरों को कांग्रेस ने पीछे धकेला और आगे नई लाइन ऑफ लीडरशिप खड़ी कर दी। लेकिन, लोकसभा में ये नई लीडरशिप भी खास कमाल नहीं दिखा सकी। वैसे बात करें नई लीडरशिप की तो कांग्रेस ने सिर्फ नए चेहरे ही प्रदेश में लॉन्च किए हैं। एक जीतू पटवारी दूसरे उमंग सिंघार और तीसरे हेमंत कटारे। इसके अलावा कांग्रेस का कोई नेता नया नहीं दिखता। हालांकि ये भी चेहरे पुराने ही हैं, लेकिन इनके पास जिम्मेदारियां नई नई हैं। पर, मुश्किल ये है कि ये तीनों भी अक्सर अलग अलग सुरताल अलापते नजर आते हैं।
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कमलनाथ-दिग्विजय फ्रेम से ही गायब
सागर जिले का ही मामला ले लीजिए। कांग्रेस का एक नेता गोविंद सिंह राजपूत को घेरता दिखा तो दूसरा भूपेंद्र सिंह को। बाकी कांग्रेस गायब ही रही। प्रदेश में कांग्रेस के सबसे तजुर्बेकार लीडर्स की बात करें तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह फिलहाल फ्रेम से बिलकुल ही गायब हैं। ऐसे में कांग्रेस को खुद को संभालना है तो कोई तगड़ा प्लान बनाना ही होगा।
आपको याद होगा पिछले साल अगस्त के महीने में भी कांग्रेस ने खुद को एग्रेसिव शो करने की पूरी कोशिश की थी। इस कोशिश के तहत अगस्त क्रांति के नाम पर अलग आंदोलन भी किए गए थे। लेकिन क्रांति की जगह वो भी कांग्रेस के लिए फुस्सी बम ही साबित हुए। अगस्त में दो तीन आंदोलन जरूर हुए। उसके बाद कांग्रेस फिर स्लीप मोड में चली गई।
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पार्टी को जगाने का मास्टर प्लान तैयार
अब आलाकमान ने इस कमजोर और सोई पड़ी हुई कांग्रेस को जगाने के लिए नया मास्टर प्लान तैयार किया है। फिलहाल लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव हों दोनों में ही कम से कम तीन साल से ज्यादा वक्त है। उससे पहले लोकल स्तर के चुनाव जरूर हो सकते हैं। इन सारे चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस ने अभी से चेहरे तलाशने शुरू कर दिए हैं।
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन में बड़ी मात खाई थी। इसलिए कांग्रेस ने सबसे पहले इसी गलती से बचने की कवायद शुरू की है। इस गलती से बचने के लिए कांग्रेस अभी से हर लोकसभा और विधानसभा सीट पर चेहरों पर काम करना शुरू कर रही है। खास बात ये है कि कांग्रेस किसी पुराने चेहरे पर दांव नहीं लगा रही है। बल्कि हर सीट पर एक ऐसा चेहरा तलाशा जा रहा है, जो एक्टिव हो और जिसकी छवि भी अच्छी हो। पार्टी का फोकस सीट के पढ़े लिखे, समाजसेवी और प्रितिष्ठित लोगों पर है। ऐसे लोगों को तलाशने के बाद, उनकी राय जानी जाएगी। अगर वो कांग्रेस से जुड़ने में इंटरेस्टेड होंगे तो उन्हें अभी से सीट की कमान भी सौंपी जा सकती है।
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बीजेपी से इस मामले में पिछड़ी हुई है कांग्रेस
इसके पीछे कांग्रेस की सोच शायद ये हो सकती है कि चुने हुए चेहरे को ज्यादा से ज्यादा समय मिल सके और वो क्षेत्र में कांग्रेस का प्रचार प्रसार करने के साथ ही कांग्रेस को एक्टिव भी कर सके। वैसे भी इतने समय से लगातार हार रही कांग्रेस फंड्स की कमी का सामना कर ही रही होगी। इसलिए ऐसा चेहरा भी चाहिए होगा जो टिकट पक्की होने की बात जानने के बाद खुद ही कांग्रेस को जीवित करने का बीड़ा उठा ले, अपने क्षेत्र में ही सही कांग्रेस के लिए इतना भी काफी ही होगा।
वैसे भी पीढ़ी परिवर्तन कहें या चेहरे बदलने की बात कहें, कांग्रेस इस मामले में बीजेपी से बहुत ज्यादा पिछड़ी हुई है। बीजेपी प्रदेश में अब तक दो से तीन बार चेहरे बदल चुकी है। सुंदर लाल पटवा, कैलाश जोशी जैसे चेहरे हटा कर पार्टी उमा भारती, शिवराज सिंह चौहान, प्रहलाद सिंह पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे चेहरे लेकर प्रदेश में आई। और, अब इन सबको बदलकर नई पीढ़ी को आगे कर दिया है। जिसके फेस फिलहाल मोहन यादव और वीडी शर्मा हैं। लेकिन कांग्रेस में वही चेहरे चले आ रहे हैं जो दिग्विजय सिंह की सरकार से पहले से जमे हुए हैं। उसमें से एक कमलनाथ हैं और दूसरे खुद दिग्विजय सिंह हैं। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस ने इन्हीं दो चेहरों पर ज्यादा भरोसा जताया। जिसका नतीजा क्या है ये सब जान ही चुके हैं।
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नए चेहरे तलाशना जरूरत नहीं मजबूरी
इस बीच कांग्रेस की जो पीढ़ी आई। उन्हें आगे आने का और अपना हुनर दिखाने का पूरा मौका ही नहीं मिल सका। और, वो पीढ़ी भी अब गुजरे जमाने की होने को आ गई है। इसलिए नए चेहरे तलाशना कांग्रेस की सिर्फ जरूरत ही नहीं मजबूरी भी है। क्योंकि अब भी नए चेहरों को मौका नहीं दिया तो अगला चुनाव आते आते कांग्रेस ये पीढ़ी भी पुरानी हो जाएगी।
फिलहाल मतदाताओं को ये भरोसा दिलाना जरूरी है कि कांग्रेस एक्टिव भी है साथ ही ताजगी और एनर्जी से भरपूर भी है। इसके लिए एक्टिव चेहरे तलाशने के बाद ही कांग्रेस किसी क्षेत्र में अपनी पैठ बना सकेगी। बीजेपी की तर्ज पर इन चलते हुए कांग्रेस ने प्रदेश में बदलाव करने का साहस एक बार तो दिखा ही दिया है। अब देखना ये है कि चुनाव से तीन साल पहले बड़े फैसले लेकर कांग्रेस क्या वाकई अपनी ही सोई हुई आत्मा में नई जान फूंक सकती है।