News Strike: टीम हेमंत के बाद अब निगम-मंडलों में नियुक्ति पर नजर, इन नेताओं को आस, किसका कटेगा पत्ता?

मध्यप्रदेश में बीजेपी जल्द ही निगम मंडलों और आयोगों में नियुक्तियां करने वाली है। पार्टी पुराने और हार चुके नेताओं को नजरअंदाज कर नई टीम में युवा चेहरों को तवज्जो देने के मूड में है। ये नियुक्तियां कार्यकर्ताओं के उत्साह को बढ़ाने के लिए अहम हैं।

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Harish Divekar
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Photograph: (THESOOTR)

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NEWS STRIKE | न्यूज स्ट्राइकमध्यप्रदेश में हेमंत खंडेलवाल की टीम का ऐलान होने के बाद अब सारे भूले बिसरे नेताओं की आखिरी उम्मीद राजनीतिक पदों के रूप में ही शेष है, लेकिन सियासी बाजार में जो अटकलें चल रही हैं, वो ऐसे नेताओं की आखिरी उम्मीद पर भी पानी फेरते हुए ही नजर आ रही है।

बीजेपी में ऐसे बहुत से नेता हैं जो चुनाव हार गए, लेकिन लाभ के पद की फिराक में जरूर हैं। इसमें कुछ पार्टी के ही पुराने दिग्गज नेता हैं। कुछ हारे हुए पूर्व मंत्री हैं और कुछ सिंधिया समर्थक हैं। अफसोस की इनमें से बहुतों को पार्टी से मायूसी ही मिल सकती है।

हारने वालों को मिल सकती है निगम मंडल में जगह

प्रदेश में संगठनात्मक फेरबदल हो चुका है और अब बारी या इंतजार है राजनीतिक नियुक्तियों का। जिन नेताओं को प्रदेश कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली वो अब निगम मंडल और आयोगों में बड़ा पद पाने की उम्मीद में हैं। इन पदों के जरिए अक्सर पार्टी संतुलन बिठाने की कोशिश करती है।

ये संतुलन बड़े और दिग्गज नेताओं का होता है या फिर किसी बड़े और दिग्गज नेताओं के समर्थकों का होता है। इसके अलावा पार्टी अपने सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ये पद भरती है। मसलन कोई बड़ा नेता जो पार्टी के लिए पहले जरूरी रहा हो, लेकिन इस बार चुनाव हार गया हो। उसे निगम मंडल में जगह दी जा सकती है।

कोई ऐसा नेता जो किसी और बड़े राजनेता का समर्थक है तो उसे जगह दी जा सकती है। जाति और अंचलों का तालमेल सही बिठाने के लिए भी ये नियुक्तियां मायने रखती हैं। 

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आयोगों में युवा और नए चेहरों को मिलेगा मौका! 

नई टीम बना लेने बाद संभव है मध्यप्रदेश बीजेपी जल्द से जल्द इन पदों पर भी नियुक्तियां करे। कोशिश होगी कि नगरीय निकाय चुनाव से पहले ये काम भी पूरा हो जाए। ताकि किसी को कोई शिकायत न रह जाए, लेकिन मोहन और हेमंत की टीम जिस सोच के साथ आगे बढ़ रही है। उसे देखते हुए लगता है कि पुराने नेताओं को खास मौका नहीं मिलने वाला है।

खबरें आ रही हैं कि पार्टी के इस बार निगम मंडल और आयोगों में युवा और नए चेहरों को मौका देने के मूड में हैं। इस तरह से बीजेपी हर लेवल पर एनर्जेटिक नेता तैनात करना चाहती है। साथ ही कार्यकर्ताओं में ये उम्मीद जगाना चाहती है कि कभी भी किसी को भी बड़ा मौका मिल सकता है। ताकि वो दिल लगाकर और पूरी एनर्जी के साथ काम करते हैं।

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बिहार चुनाव खत्म होते ही नियुक्तियों में आएगी तेजी 

कार्यकर्ताओं के लिए बीजेपी के पास कुछ नए प्लान्स भी हैं। इसमें से एक है दीनदयाल अंत्योदय समितियों का पुनर्गठन करना। ये समितियां अधिकारियों पर नजर रखेगी और योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के तौर तरीकों पर भी जोर देगी। इस काम में जुटे कार्यकर्ताओं को जरूरी भत्ते भी दिए जाएंगे। इसके बाद राजनीतिक नियुक्तियों का दौर शुरू हो सकता है।

अटकलों की माने दो दिसंबर में ये काम भी शुरू हो जाएगा। इसके लिए पार्टी सबसे पहले उन नेताओं को मौका देगी जो बिना किसी पद के भी अब तक पार्टी में सक्रिय रहे हैं। दिसंबर तक भी इस काम को इसलिए टाला गया है क्योंकि पार्टी के सभी बड़े नेता फिलहाल बिहार चुनाव में बिजी हैं। बिहार विधानसभा चुनाव खत्म होते ही मध्यप्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियों का काम तेजी से शुरू हो जाएगा। 

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कई बड़े और पुराने नेता अपनी नियुक्ति के इंतजार में...

मध्यप्रदेश के कई बड़े नेताओं को भी इन नियुक्तियों का शिद्दत से इंतजार है। इसमें ऐसे बहुत से नेता हैं जो दलबदल कर कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं। जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के भरोसे इन पदों को हासिल करने की बाट जरूर जोह रहे होंगे। इसमें एक नाम इमरती देवी का है। जो लगातार दूसरी बार चुनाव हार चुकी हैं।

इसके अलावा महेंद्र सिंह सिसोदिया, ओपीएस भदौरिया, गिर्राज कंसाना, रणवीर जाटव, मुन्नालाल गोयल और रक्षा सिरोनिया को भी हो सकता है अच्छी खबर मिलने का इंतजार हो। जिस तरह से पिछले कुछ समय से सिंधिया समर्थकों को अवॉइड किया जा रहा है उसे देखते हुए लगता है कि इस बार भी कई समर्थकों को निराशा ही हाथ लग सकती है।

राम निवास रावत को भी बीजेपी से कुछ वफादारी की उम्मीद जरूर होगी। हालांकि, वो खुद अपनी सीट पर उपचुनाव नहीं जीत सके, जबकि पार्टी ने उन्हें कैबिनेट में पद भी दे दिया था। ऐसे में क्या उनका नाम राजनीतिक नियुक्ति के लिए कंसिडर किया जाएगा। इसमें संशय ही नजर आता है। 

अब देखना ये है कि बीजेपी किसे मौका देती है...

कुछ ऐसे नेताओं को भी पार्टी से उम्मीद है जो पिछला चुनाव हार चुके हैं या फिर उन्हें पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया था। इसमें उमाशंकर गुप्ता, अरविंद भदौरिया, अंचल सोनकर, दिलीप शेखावत, यशपाल सिसोदिया, कमल पटेल, केपी यादव जैसे नाम शामिल हो सकते हैं।

अब देखना ये है कि बीजेपी किसे मौका देती है। क्या वाकई नए चेहरों से पुराने चेहरों को रिप्लेस कर दिया जाता है और किस नेता की नाराजगी इतनी भारी पड़ती है कि उसे मजबूरन इन पदों पर एडजस्ट किया जाता है।

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