News Strike: शिवराज सिंह चौहान ने क्यों दी एमपी में गांव गांव आंदोलन करने की चेतावनी ?

शिवराज सिंह चौहान की राजनीति में हालिया बदलाव देखा जा रहा है। 2018 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं स्वीकार किया और आम विधायक की तरह कार्य किया। हालांकि, उन्होंने प्रदेशवासियों के मुद्दे उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

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Harish Divekar
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news strike 3 november

Photograph: (The Sootr)

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मध्यप्रदेश के मुखिया पद से विदाई के बाद से शिवराज सिंह चौहान के मिजाज कुछ बदले-बदले से हैं। शिवराज सिंह चौहान का नाम बीजेपी के उन नेताओं की लिस्ट में शामिल रहा है, जिन्होंने किसी भी हालात में पार्टी के उसूलों से समझौता नहीं किया। न ही पार्टी लाइन के अगेंस्ट जाकर कोई काम किया है। समय कितना भी खराब रहा हो या किसी भी कड़ी राजनीतिक परीक्षा की घड़ी ही क्यों न हो। शिवराज सिंह चौहान बीजेपी की लाइन पर ही चलते रहे हैं। लेकिन, इस बार शिवराज सिंह चौहान अपनी लोकसभा सीट में कुछ ऐसा कर गुजरे जो हर तरफ चर्चा का विषय बन गया। 

शिवराज सिंह चौहान को 2018 के चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन, शिवराज सिंह चौहान ने नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार नहीं किया। वो एक आम विधायक की तरह पार्टी में रहे। लेकिन, जनता से जुड़े मुद्दे उठाने में पीछे नहीं थे। तब उन्होंने एक हुंकार भी भरी थी। और लगभग गरजते हुए कहा था कि प्रदेश की जनता चिंता न करे टाइगर अभी जिंदा है। गोया कि खुद टाइगर थे जो प्रदेशवासियों की आवाज बुलंद करने में पीछे नहीं था।

दहाड़ को दबाने की कोशिश

2023 के चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद खुद पार्टी ने ही इस टाइगर की दहाड़ को दबाने की पूरी कोशिश की। प्रदेश में सीएम का चेहरा बदल दिया गया। खबरें आईं कि शिवराज सिंह चौहान को दक्षिण की राजनीति में बीजेपी को मजबूत बनाने का काम सौंपा गया है। हालांकि कुछ ही दिन में ये भी साफ हो गया कि शिवराज लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। वो लड़े, जीते और कैबिनेट मंत्री भी बने। ये तो साफ है कि इस टाइगर की दहाड़ पार्टी में तो सुनी ही जा रही है। पर ये भी नहीं भूला जा सकता कि इस टाइगर का मध्यप्रदेश से भी गहरा नाता है। शिवराज सिंह चौहान भी शायद इस नाते को भूल नहीं पाए। वो इस बार अपनी लोकसभा सीट पर आए तो कुछ ऐसा कर गए जो चौंकाने वाला था। 

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गांव गांव आंदोलन की चेतावनी

चंद रोज पहले बुधनी के भैरुंदा में आदिवासी महापंचायत का आयोजन हुआ। शिवराज सिंह चौहान यहां पहुंचे। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। कार्यक्रम उनकी अपनी लोकसभा सीट में था। बतौर सांसद वो ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं। चौंकाने वाला था उनका बयान। जो उन्होंने भरे मंच से कहा। इस आदिवासी महापंचायत में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वो आदिवासी और ओबीसी समाज के साथ कोई अन्याय नहीं होने देंगे। ये बयान शिवराज ने तब दिया जब आदिवासियों ने ये शिकायत की कि वन विभाग उन्हें उनकी ही जमीन से हटने का नोटिस जारी कर चुका है। इसपर शिवराज ने कहा कि ये वन विभाग की हठधर्मिता है जो वो आदिवासियों को बोअनी करने से रोक रहा है। इतना ही नहीं शिवराज सिंह चौहान ने गांव गांव आंदोलन की भी चेतावनी दी। 

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बयान के सियासी मायने क्या हैं?

सियासी गलियारों में ये बयान चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बयान का शुरुआती हिस्सा कुछ ऐसा जताता है कि शिवराज अब भी प्रदेश के सीएम की तरह ही बयान दे जाते हैं। हालांकि दूसरा हिस्सा उनकी पॉलिटिकल पर्सनालिटी से इतर नजर आता है। शिवराज सिंह चौहान ने अपनी ही सरकार के तहत ये चेतावनी दी है कि आदिवासियों के खिलाफ कार्रवाई हुई तो वो गांव गांव आंदोलन भी करेंगे। अगर शिवराज अपने इस कथन को लेकर गंभीर हैं तो क्या वाकई बीजेपी की ही सरकार के खिलाफ वो मोर्चा खोल सकते हैं या फिर मोर्चा खोलने वालों का साथ दे सकते हैं। बीजेपी के सबसे अनुशासित नेता होने के नाते शिवराज ने अपनी सरकार को ललकारने का कदम कैसे उठाया। उनके इस बयान के सियासी मायने क्या हैं।

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क्या आदिवासी वोटबैंक पर है नजर?

पॉलिटिक्स की खबरों का एनालिसिस करने वालों का एक तबका इस मौजूदा सरकार के लिए भी एक चैलेंज के रूप में देखता है। मुखिया की कुर्सी भले ही छिन गई हो लेकिन क्या शिवराज ये जताना चाहते हैं कि 18 साल तक प्रदेश का सीएम रहने के नाते वो अब भी प्रदेश में दमदार हैं। क्या ये मौजूदा सरकार के सामने एक पैरलल सरकार की लाइन खींचने की कोशिश है। जबकि राजनीतिक जानकारों का एक तबका इसे आदिवासी वोटबैंक से जोड़ कर देख रहा है। ऐसे तबके का मानना ये है कि आदिवासी वोटबैंक अब भी बीजेपी के लिए एक सेंसिटिव मुद्दा है। ये वोटबैंक बड़ी मुश्किल से बीजेपी की झोली में आया है। जबकि कांग्रेस अब भी ये आरोप लगाती है कि बीजेपी आदिवासियों को आज भी वनवासी ही मानती है। वो उन्हें सही पहचान नहीं देना चाहती।

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दूसरी वजह है साल 2018 में आदिवासी वोटबैंक के जरा सा सरकने से बीजेपी सत्ता से दूर हो गई थी। तब से पार्टी को ये क्लियर है कि आदिवासी वोटबैंक प्रदेश का असली किंगमेकर है। इसलिए शिवराज का उनकी सभा में जाना और आश्वासन देना आदिवासी समाज की नाराजगी को रोकने की एक कोशिश मात्र था। इसलिए उनके इरादों पर शक नहीं किया जा सकता।

क्या था शिवराज का मकसद?

अब शिवराज वाकई में क्या करना चाहते हैं। क्या वो इस बहाने आलाकमान तक कोई मैसेज पहुंचाना चाहते हैं। या मोहन सरकार के सामने ये उनका शक्ति प्रदर्शन था या वो वाकई आदिवासी वोटबैंक को डैमेज होने से बचाना चाहते हैं। आपका इस बारे में क्या सोचना है।

इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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