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Photograph: (The Sootr)
सिंधिया राजघराने की तीसरी पीढ़ी अब अपनी विरासत संभालने को तैयार है। ये खबर जोरों पर है कि अब सिंधिया राजपरिवार के युवराज अपने पिता के पद पर काबिज होने के लिए तैयार हैं। इसके लिए बकायदा फीलडिंग भी शुरू हो चुकी है। राजपरिवार में सत्ता हस्तांतरण की ये तैयारी दो साल पहले से ही शुरू हो गई थी। और, अब उन्हें पद तक पहुंचाने के लिए प्रक्रिया को भी तेज करने की अटकलें तेज हैं। कैसे अब नए सिंधिया पूरी जिम्मेदारी संभालेंगे चलिए वो भी समझ लेते हैं।
नेपोटिज्म, इस शब्द ने पिछले कुछ सालों से जबरदस्त हल्ला मचाया हो। बात चाहें बॉलीवुड की हो या राजनीति की दोनों ही जगहों पर नेपोटिज्म के इल्जाम लगते रहे हैं। यानी नेता और अभिनेता दोनों ही परिवारवाद के आरोपों से घिरे हैं। फिर चाहें कोई पूरी दम के साथ अपने बेटे भाई या किसी और रिश्तेदार को अपनी फील्ड में लॉन्च कर दे या फिर धीरे धीरे या चुपके चुपके उन्हें प्रमोट करने का काम करे। लेकिन नेपोटिज्म से इंकार नहीं कर सकता।
बीजेपी में भी नेपोटिज्म!
पॉलीटिक्स में भी बीजेपी हमेशा ये कहती रही है कि वो परिवारवाद के खिलाफ है। लेकिन बीजेपी में भी नेपोटिज्म के कई एग्जाम्पल आपको मिल जाएंगे। जिस पर सवाल उठते हैं तो पार्टी के नेता अक्सर नेपोटिज्म की परिभाषा को अपने अनुसार मोल्ड भी कर लेती है। इस परिवारवाद से सिंधिया राजघराना भी नहीं बचा है। बात चाहें मौजूदा पीढ़ी की करें या उससे पहले की ही कर लें।
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सिंधिया परिवार में परिवारवाद, वंशवाद हमेशा कायम रहा है। खैर राजा महाराजाओं के लिए परिवारवाद कोई अजूबा है भी नहीं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है कि राजा का बेटा ही राजा बनता रहा है। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजसी विरासत उनके बेटे महानआर्यमन सिंधिया ही संभालेंगे। हालांकि राजनीति पर विरासत का ये हस्तातंरण लागू नहीं होता खासतौर से लोकतंत्र में। पर, राजाओं के लिए नियम बदले भी जा सकते हैं या फ्लेक्सिबल भी किए जा सकते हैं। इसलिए अब महानआर्यमन की एक बड़े पद पर ताजपोशी होते हुए बहुत जल्द देखी जा सकती है। उस पद पर बात करने से पहले सिंधिया घराने का राजनीतिक इतिहास भी थोड़ा सा समझ लेते हैं।
लाइमलाइट में रहा ज्योतिरादित्य सिंधिया का दलबदल
सिंधिया राजपरिवार ने पहली बार पॉलीटिक्स में कदम रखा राजमाता विजयाराजे सिंधिया के साथ वो कांग्रेस में शामिल हुईं। फिर अलग होकर अपनी ही अलग पार्टी बनाई और उसके बाद जनसंघ का हिस्सा बनी। जो बाद में बीजेपी बना। इस दौरान बाबरी विध्वंस और फिर राम मंदिर आंदोलन में भी उन्होंने अहम भूमिका अदा की। उनके रहते हुए उनके बेटे माधव राव सिंधिया भी राजनीति में आ गए।
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अपनी मां के पदचिन्हों पर चलते हुए उन्होंने जनसंघ से राजनीति की शुरुआत की। हालांकि मां बेटे के राजनीतिक विचार ज्यादा दिनों तक एक जैसे नहीं रहे और माधव राव सिंधिया कांग्रेस के हो गए। उनके आकस्मिक निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति में आए। उन्होंने पिता की राजनीतिक विरासत को तो आगे बढ़ाया ही दल बदलने के इतिहास को भी कंटिन्यू रखा। और, अगर ये कहें कि उनका दल बदल सिंधिया परिवार के दूसरे सदस्यों से ज्यादा लाइमलाइट में रहा तो भी कुछ गलत नहीं होगा।
महानआर्यमान पर टिकी हैं सबकी नजरें
अब उनके बेटे पर भी नजरें जमी हुई हैं। इसमें कोई शक नहीं कि उनके बेटे महानआर्यमन सिंधिया उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएंगे। कुछ पॉलिटिकल सभाओं के जरिए उनकी पॉलिटिकल इंटर्नशिप शुरू भी हो चुकी है। इसके अलावा भी एक पद है जिस पर अब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ही काबिज हैं। उस पद को अब महानआर्यमन सिंधिया को सौंपने की तैयारियां जोरों पर शुरू हो चुकी हैं। ये पद है मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष का पद। जिस पर महानआर्यमन सिंधिया काबिज हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो वो सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी होंगे, जिसके हिस्से में ये पद आएगा।
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मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन यानी कि एमपीसीए एजीएम की बैठक दो सितंबर को प्रस्तावित है। इसी बैठक में एसोसिएशन के नए अध्यक्ष का ऐलान हो सकता है। ये नाम महानआर्यमन सिंधिया का ही हो इसके लिए पूरे दम के साथ तैयारी हो रही है। खबर है कि गट्टू भैया यानी कि संजय जगदाले इस काम में जुटे हुए हैं कि महानआर्यमन सिंधिया बिना किसी विरोध या चुनौती के इस पद पर चुन लिए जाएं। खुद सिंधिया के क्लोज डोर मीटिंग करने की भी खबर है। जो बेटे को इस पद पर लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। सब कुछ अगर प्लानिंग के तहत हुआ तो बहुत जल्द जूनियर सिंधिया अपने पापा की एक विरासत को संभालते हुए नजर आएंगे।
इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं
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