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Photograph: (the sootr)
ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने ही क्षेत्र में खुला चैलेंज मिला है। हम आपको जो खबर बताने जा रहे हैं, उसे सुनकर आप भी यही पूछेंगे कि क्या अपने क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ कम हो गई है या फिर दल बदलने के बाद उनका दबदबा घट गया है। दल बदल के बाद सिंधिया ने पूरी कोशिश की थी कि चंबल के ज्यादा से ज्यादा विधायक अपने साथ ले जाएं। लेकिन, एक नेता ऐसा था जो उनके साथ दल बदल के लिए तैयार नहीं हुआ और तब से अब तक सिंधिया के खिलाफ जम कर राजनीति कर रहा है। इस बार इस विधायक ने सिंधिया को खुलेआम चैलेंज दे डाला है।
गुना, शिवपुरी और अशोकनगर वो क्षेत्र हैं जहां सिंधिया राजघराने की ताकत और सियासत लंबे अरसे से कायम है। इस क्षेत्र में दिग्विजय सिंह को छोड़ दें तो अधिकांश नेता ऐसे हैं जो सिंधिया के गुट के रहे हैं या फिर सिंधिया के साथ समीकरण साध कर राजनीति करते हैं। दिग्विजय सिंह इस मायने में अपवाद रहे हैं जिन्होंने सिंधिया के गढ़ में अपना गुट भी खड़ा किया और प्रभाव भी बनाया। सिंधिया के दलबदल के बाद दिग्विजय सिंह का कॉम्पिटीशन, कांग्रेस में पूरी तरह खत्म हो गया।
सिंधिया के खिलाफ खड़े होने से नहीं चूकता ये नेता
लेकिन हम जिस नेता की बात कर रहे हैं, जिसने सिंधिया को हाल ही में चैलेंज तो दिया ही। उससे पहले भी सिंधिया की खिलाफत करते रहे हैं। वो दिग्विजय सिंह नहीं हैं बल्कि सिंधिया के कद के मुकाबले काफी छोटे नेता हैं। लेकिन, जब भी कोई मुद्दा होता है ये नेता सिंधिया के खिलाफ खड़े होने से नहीं चूकता। कई बार सिंधिया को मजबूर कर उस पर बयान तक देने पड़े हैं। ये नेता कौन हैं और ताजा मामला क्या है। पहले वो जान लीजिए।
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कहा था- एक-एक गोली से छह यादव मरेंगे
ये पूरा मामला चंदेरी विधानसभा सीट का ही है। गोपाल सिंह चौहान यहां किसी एक कार्यक्रम में पहुंचे थे। इस कार्यक्रम में उन्हें देखकर कुछ बातें शुरू हुईं। इसके जवाब में गोपाल सिंह चौहान ने कहा यदि बली सिंह पर किसी ने हाथ भी उठाया तो उसे नहीं छोड़ा जाएगा। उन्होंने यह तक कह दिया कि एक-एक गोली से छह यादव मरेंगे। गोपाल सिंह चौहान इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने आगे ये भी कहा कि मैं सर पर कफन बांधकर चलता हूं, मैं सिंधिया से भी नहीं डरता।
बयान के बाद लिया यू-टर्न
गौर कीजिएगा। पूर्व विधायक ने इस बात पर खास जोर दिया कि वो सिंधिया से भी नहीं डरते यानी तालाब में रह कर मगरमच्छ से खुलकर बैर करने वाली कहावत यहां चरितार्थ होती दिख रही है। खैर इस बैर पर भी आते हैं। पहले गोपाल सिंह चौहान का इस बयान के बाद क्या हुआ वो भी जान लीजिए।
इस बयान के बाद चौहान को अपनी ही बात से यू टर्न लेना पड़ा और माफी भी मांगनी पड़ी। उन्होंने अपनी सफाई में वीडियो जारी किया और यादव समाज से माफी भी मांगी। लेकिन, चौहान ने सिंधिया को कहे शब्दों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। चौहान ने धमकी वाले वीडियो को बीजेपी की साजिश भी करार दिया।
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लोधी समाज पर भी की थी विवादित टिप्पणी
आपको बता दें कि चंदेरी और अशोकनगर में गोपाल सिंह प्रभावशाली नेता होने के साथ साथ विवादित नेता भी रहे हैं। यादवों पर बयान देने से कुछ दिन पहले उन्होंने लोधी समाज पर बयान दिया था। इसके बाद लोधी समाज के ही एक व्यक्ति ने उनके खिलाफ शिकायत भी दर्ज करवाई थी। इसके करीब आठ दिन बाद यानी कि 12 मई को उनके खिलाफ फिर एक शिकायत दर्ज कर दी गई है जो यादव समाज ने ही दर्ज करवाई है।
जब मौका मिला सिंधिया को ललकारा
ये मामला तो क्षेत्र तक ही सीमित है। क्या सिंधिया को चैलेंज देने का खामियाजा भी चौहान को भुगतना पड़ेगा। इसको समझने के लिए कुछ सियासी पन्ने पलटाते हैं और दलबदल के इतिहास तक चलते हैं। 2020 के दलबदल के बाद चंबल में बचे चंद कांग्रेसी नेताओं में से एक गोपाल सिंह चौहान भी रहे हैं। इनके लिए कहा जाता है कि वो लगातार अपने क्षेत्र में कांग्रेसी को मजबूती देने में जुटे रहे। चौहान चंदेरी सीट से लगातार दो बार विधायक रहे हैं। उन्हें जब मौका मिला वो सिंधिया को ललकारते रहे।
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सिंधिया ने कहा- नो कमेंट्स
उन्होंने एक चुनावी सभा में ये तक कहा कि वो कांग्रेस के चुनाव चिन्ह की वजह से विधायक हैं। किसी महाराजा या राजा की चमचागिरी से नहीं। गोपाल सिंह चौहान ने एक बयान में ये भी कहा था कि उनके पिता तब से सत्ता में हैं जब वो बड़े नेताजी पैदा भी नहीं हुए थे। इसके जवाब में सिंधिया ने कहा था कि वो ऐसे किसी व्यक्ति पर टिप्पणी नहीं करेंगे। लेकिन, सिंधिया ने ये हिंट भी दिया था कि जिसका अहंकार बढ़ जाता है उसे उसका फल भी भुगतना पड़ता है।
हार के बाद भी नहीं बंद की सिंधिया के खिलाफ राजनीति
सीधे महाराज को चैलेंज करने का नतीजा चौहान को पिछले विधानसभा में जबरदस्त हार के रूप में मिल भी गया। चौहान ने साल 2018 में बीजेपी के भूपेंद्र सिंह को 5 हजार वोटों से हराया था। लेकिन, 2023 में वो बीजेपी के हाथों 21 हजार वोटों से हारे थे। तब से कहा जाता है कि सिंधिया से पंगा लेना चौहान को भारी पड़ा। हार के बाद भी चौहान ने सिंधिया के खिलाफ राजनीति बंद नहीं की है। देखना ये है कि क्या इस बार महाराज डायरेक्टली या इनडायरेक्टली कोई एक्शन लेते हैं या चौहान को नजरअंदाज करते हैं।
न्यूज स्ट्राइक | न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर | News Strike Harish Divekar