News Strike: प्रमोशन में आरक्षण की Puzzle, कार्य-दक्षता की आड़ में SC-ST पर चलेगी तलवार

मोहन सरकार 9 साल से रुकी पदोन्नति की प्रक्रिया को फिर से शुरू करने जा रही है। 10 सीनियर अफसरों की कमेटी ने नए पदोन्नति नियमों का खाका तैयार कर लिया है, जिसे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भेजा जाएगा। इस पॉलिसी का असर प्रदेश के 4 लाख कर्मचारियों पर होगा।

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Harish Divekar
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Photograph: (the sootr)

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मोहन सरकार 9 साल से बंद पदोन्नति के पिटारे को खोलने जा रही है, ये खबर प्रदेश के 4 लाख अधिकारी-कर्मचारियों से सीधे जुड़ी हुई है। हम आज आपको प्रदेश की नई प्रमोशन पॉलिसी से जुड़ी अहम जानकारी देने जा रहे हैं। हम खुलासा करने जा रहा हैं उन नियमों का जो पॉलिसी में जोड़ने की पूरी तैयारी हो चुकी है। इसलिए आज न्यूज स्ट्राइक का एक एक शब्द गौर से पढ़िए। गौर से इसलिए भी पढ़िए क्योंकि हर तबके के कर्मचारी और कर्मचारी संगठनों की राय इस पर अलग अलग हो सकती है। कहीं खुशी कहीं गम का आलम भी हो सकता है।

10 अफसरों की कमेटी ने तैयार किया खाका 

दस सीनियर अफसरों की कमेटी ने पदोन्नति का खाका तैयार कर लिया है, इसे जल्द ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भेजा जाएगा। मुख्यमंत्री इस खाके पर राजनीतिक सलाह लेंगे और इसका नफा नुकसान जानने के लिए पॉलिटिकल टेम्पेरेचर भी नापा जाएगा। उसके बाद ही इसे लागू किया जाएगा। तो चलिए जानते हैं नए पदोन्नति नियमों का खाका क्या है। इससे किस वर्ग को कितना फायदा या नुकसान होने वाला है।

मध्य प्रदेश में करीब नौ साल के इंतजार के बाद अब पदोन्नति का प्रोसेस दोबारा शुरू होने जा रहा है। इसके नियम तकरीबन फाइनल हो चुके हैं। न्यूज स्ट्राइक पर सबसे पहले खुलासा होने जा रहा है वो नियम क्या होंगे। उन नियमों को बताने से पहले कमेटी के बारे में बता दें जिसने इन नियमों को फाइनल किया है। ये कमेटी मुख्य सचिव अनुराज जैन की अध्यक्षता में बनी है। इस सीनियर सेक्रेटरी कमेटी में मुख्यमंत्री कार्यालय के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा, वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल, जीएडी के अपर मुख्य सचिव संजय दुबे, ऊर्जा विभाग के अपर मुख्य सचिव नीरज मंडलोई, फायनेंस के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी, स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव और लॉ के प्रमुख सचिव एमपी सिंह शामिल हैं। बाद में इस कमेटी में पीएचई विभाग के प्रमुख सचिव पी नरहरि, स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव संजय गोयल को भी शामिल किया गया।

4 लाख अधिकारी-कर्मचारियों को होगा फायदा

इस कमेटी ने पदोन्नति पॉलिसी का जो खाका फाइनल किया है। उसके लागू होने के बाद प्रदेशभर के करीब चार लाख अधिकारी कर्मचारियों को उसका फायदा मिलेगा। प्रदेश के सरकारी कर्मचारी लंबे अरसे से प्रमोशन मिलने का इंतजार कर रहे हैं। वो एक नहीं दो प्रमोशन के हकदार हो चुके हैं। तो क्या उन्हें डबल प्रमोशन मिलेगा। ये सवाल आपके मन में भी जरूर उठेगा। तो आपको बता दें कि ऐसा नहीं होगा।

एक पेंच जिससे भूलना होगा 9 साल में मिलने वाला प्रमोशन

कारण कि कमेटी के एक अफसर ने नए नियम में ऐसा पेंच फंसाया है जिससे कर्मचारियों को पिछले 9 साल में मिलने वाला प्रमोशन भूलना होगा। ये पेंच क्या है ये हम आपको आगे बताएंगे। अब हम जो बताने जा रहा हैं, उसे बहुत ध्यान से पढ़िए क्योंकि नई पदोन्नति नीति में दो ऐसे शब्द जोड़े गए हैं जो फिर से पेंच फंसा सकते हैं। और, कर्मचारियों के एक बड़े तबके को नाराज भी कर सकते हैं। ये दो शब्द हैं पर्याप्त प्रतिनिधित्व और कार्यदक्षता। इन दो शब्दों के आधार पर ही कर्मचारियों को प्रमोशन दिया जाएगा।

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सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक इस मामले से जुड़े अपने फैसलों में ये कह चुके हैं कि पदोन्नति के नियमों और आधार को फिक्स नहीं किया जा सकता। इसलिए सीनियर अफसरों की कमेटी ने नए नियम में कार्य दक्षता को सबसे प्रमुख आधार बनाया है। कार्यदक्षता का मतलब है जो काम करने में एफिशियंट होंगे और परफेक्ट होंगे उनके प्रमोशन की राह ज्यादा आसान होगी। लेकिन, इस नियम का सबसे ज्यादा असर पड़ेगा एससी एसटी वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों पर क्योंकि कार्यदक्षता के आधार पर सरकार उनके आरक्षण को कम कर सकती है। इसे आसान तरीके से समझाते हैं। मान लीजिए, डॉक्टर्स को पदोन्नति देनी है तो सरकार पहले उन डॉक्टर्स को चुनेगी जो अपने काम में माहिर हैं। इस पदोन्नति का आधार सिर्फ कार्यदक्षता होगी न कि कोई कास्ट या आरक्षण। ये भी बता दें कि वर्तमान में पदोन्नति में भी एससी वर्ग के कर्मयारियों को 16 प्रतिशत और एसटी वर्ग के कर्मचारियों को 20 प्रतिशत आरक्षण हासिल है, लेकिन 2016 से उनकी पदोन्नति पर भी रोक लगी हुई है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला बना पदोन्नति का नया नियम

पदोन्नति का ये नया नियम एम नागराज बनाम भारत संघ 2006 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बना कर तय किए गए हैं। इस फैसले में तीन शर्ते हैं जिसके बेसिस पर पूरा प्रोसेस रेगुलेट होगा। जिसकी पहली शर्त किसी भी राज्य को ये बताना होगा कि आरक्षित वर्ग कितना पिछड़ा हुआ है। दूसरी शर्त ये कि जिस पोस्ट पर या विभाग में आरक्षित वर्ग को प्रमोशन दिया जाएगा। उस पद या सर्विस में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व कम है। तीसरी और आखिरी शर्त ये है कि आरक्षण प्रशासनिक दक्षता के हित में ही दिया जाएगा।

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प्रमोशन के नियम फाइनल कर रही सीनियर अफसरों की कमेटी कई दिन और कई घंटों चली बैठक के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि साल 2002 में बने प्रमोशन में आरक्षण के नियम काफी हद तक सही थे। लेकिन नियम बनने के एक माह बाद ही उसका पहला स्पष्टीकरण देना पड़ा जो करीब 8 पेज का था। इसके बाद लगातार स्पष्टीकरण जारी होते रहे। इससे नियम की मूल भावना एक तरफ रह गई और कई स्पष्टीकरण जारी होने से पदोन्नति में आरक्षण का मामला उलट पुलट हो गया। सीनियर सेक्रेटरी कमेटी के एक सीनियर अफसर ने न्यूज स्ट्राइक को बताया कि इन सब के चलते कुछ काडर में 70—70 प्रतिशत तक प्रमोशन में आरक्षण हो गया। और सामान्य वर्ग के अधिकारी कर्मचारी वंचित रह गए। उन नियमों का विरोध करने के लिए सामान्य वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों ने सपाक्स नाम का संगठन बनाया। सपाक्स यानी कि सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था। सपाक्स ने ही हाईकोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने 2002 के नियमों को तो सही माना। लेकिन आरक्षण प्रावधान, बैकलॉग प्रावधान और रोस्टर के प्रावधानों पर सवाल उठाए। हाईकोर्ट ने ये भी माना कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज केस के फैसले का पालन नहीं हुआ है। आरक्षण का मामला उलझा तो निश्चित तौर पर कर्मचारी संगठन विरोध में उतरेंगे।

कई बिंदुओं पर हुए सीनियर अफसरों में मतभेद

यही एक मामला नहीं है जो नई पॉलिसी के आड़े आ सकता है। इस खाके में ऐसे कई बिंदू और भी है, जिसमें सीनियर अफसरों के बीच ही मतभेद भी हुए। सबसे ज्यादा मतभेद इस बात पर रहा कि प्रमोशन साल 2016 से दिया जाएगा या 2025 से ही दिया जाएगा। सूत्रों ने इससे जुड़ी अंदर की खबर भी हमें बताई। इस मुद्दे पर सीनियर अफसर मनीष रस्तोगी अड़ गए। मनीष रस्तोगी का कहना था कि पदोन्नति 2025 से ही दी जानी चाहिए जबकि कमेटी के कई मेंबर्स 2016 से प्रमोशन देने के पक्ष में थे। मनीष रस्तोगी ने 2016 से पदोन्नति देने पर कई टेक्नीकल रीजन बताए तो मुख्य सचिव अनुराग जैन ने पदोन्नति 2025 से देने पर सहमति जताई, इसके बाद कमेटी को कोई सीनियर सदस्य कुछ नहीं बोला। पदोन्नति साल 2025 से ही मिली तो उन कर्मचारियों को नुकसान होगा जो साल 2016 से प्रमोशन मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
इस खाके में ये सुझाव भी है कि इन नियमों को हर पांच साल में रिव्यू किया जाएगा। और उसी आधार पर प्रमोशन दिया जाएगा जिसके आधार पर एससी एसटी का आरक्षण हर बार कार्यदक्षता के आधार पर कम किया जा सकता है।

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सीएम करेंगे एक्सपर्ट से चर्चा 

ये उम्मीद जताई जा रही है कि सीनियर अफसरों की कमेटी बहुत जल्द सीएम मोहन यादव के सामने ये खाका रखने जा रही है। इस पर फाइनल फैसला लेने से पहले सीएम खुद अलग अलग और एक्सपर्ट लोगों से  चर्चा करेंगे। और, ये समझने की कोशिश भी करेंगे कि इसका पॉलिटिकल टेंप्रेचर कितना हाई होगा। इतना तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है कि प्रमोशन के नियम बनाना ही काफी नहीं होगा। आरक्षण से जुड़े ठोस नियम भी बनाने ही होंगे। ऐसा नहीं होने पर किसी न किसी तबके की नाराजगी भी झेलना पड़ सकती है। और हो सकता है कि कोर्ट कचहरी के चक्कर भी लगाने की नौबत आ जाए। पर ये जरूर कह सकते हैं कि मोहन सरकार में कम से कम प्रमोशन की बात तो शुरू हुई। इससे पहले शिवराज सरकार में इस मुद्दे पर ठोस पहल ही नहीं हो सकी थी। जबकि कहीं किसी आदेश में ये लिखित में नहीं कहा गया कि प्रमोशन पर रोक लगी है, लेकिन प्रमोशन दिए भी नहीं गए। अब अगर नए खाका सबकी पसंद पर खरा उतरता है तो ये उम्मीद जताई जा सकती है कि प्रमोशन की आस में बैठे कई कर्मचारियों का इंतजार इस साल पूरा होगा।

इन मामलों पर हो सकती है कोर्ट कचहरी 

सपाक्स संगठन के प्रदेश अध्यक्ष केएस तोमर का कहना है कि साल 2002 में एससी एसटी वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों को प्रमोशन देने का नियम बना था। तब प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी। इन नियमों के गलत स्पष्टीकरण जारी होने से 2016 तक प्रदेश में आरक्षित वर्ग के कई हजार अधिकारियों-कर्मचारियों का गलत प्रमोशन हो गया। सपाक्स ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सही मानते हुए स्टेटस को बरकरार रखा है। तोमर के मुताबिक नए नियम लागू कर प्रमोशन देने से पहले ऐसे सभी आरक्षित कर्मचारियों को डिमोट किया जाना चाहिए, जिन्होंने 2016 से पहले गलत पदोन्नति ली थी। यदि ऐसा नहीं किया और उन्हें दोबारा पदोन्नति दी जाती है तो इससे सीधे तौर पर ओबीसी समेत सामान्य वर्ग का नुकसान होगा। ऐसे में सपाक्स इस मुददे पर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।

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ओबीसी वर्ग ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका में मांग की गई है कि 50 प्रतिशत आरक्षण में एससी, एसटी और ओबीसी को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए। हालांकि इस याचिका में अब तक सुनवाई नहीं हुई है, लेकिन हाईकोर्ट इस मामले में सुनवाई करता है और फैसला आता है तो सरकार को इस पर भी विचार करना होगा। क्योंकि सरकार ने भी अपने नए नियम में पर्याप्त प्रतिनिधित्व पर आरक्षण देने की बात कही है।

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