News Strike: मध्य प्रदेश में BSP फिर तलाश करेगी सियासी जमीन, विंध्य से रीएंट्री के पीछे क्यों खास है रणनीति ?

मोदी सरकार के जातिगत जनगणना ऐलान ने यूपी-बिहार समेत एमपी की राजनीति हिला दी है। बसपा को इसमें मौका दिख रहा है - हाथी ने एमपी में नई हुंकार भरकर सियासी कमर कस ली है। जबकि कुछ तबके खुश हैं, तो कई इस फैसले से नाराज हैं।

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Harish Divekar
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news strike 2 may

Photograph: (the sootr)

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मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान क्या किया। कई प्रदेशों के सियासी समीकरण बदलने लगे हैं। इस ऐलान का असर यूपी और बिहार की राजनीति पर सबसे ज्यादा पड़ेगा, लेकिन मध्यप्रदेश भी अछूता नहीं है। इस ऐलान से कोई तबका खुश है तो कोई तबका नाराज है। इस बीच बहुजन समाज पार्टी को इस ऐलान में अपने लिए बड़ा अवसर नजर आ रहा है, जो मध्य प्रदेश में खोई अपनी सियासी जमीन को तलाशने की तैयारी में जुट गई हैं। बहनजी के हाथी ने एमपी का रुख कर लिया है और ताबड़तोड़ नई हुंकार भर दी। बहुत सारे नए इरादे के साथ हाथी एमपी की सियासत को हिलाने आ रहा है।

मध्यप्रदेश की सियासत में कभी बहुजन समाज पार्टी अच्छा खासा दखल रखा करती थी। अगर ये कहा जाए कि बसपा की सियासी जमीन को मजबूती मिलना भी मध्य प्रदेश से ही शुरू हुई है तो कुछ गलत नहीं होगा। प्रदेश का विंध्यांचल बसपा की मजबूत सियासी शुरुआत का आधार रहा है। अब इसी विंध्यांचल से बसपा यानी कि बहुजन समाज पार्टी फिर से प्रदेश की सत्ता में एंट्री लेने की तैयारी कर रही है। बसपा सुप्रीमो अचानक एक्टिव मोड में आ गई हैं। कुछ ही दिन पहले मायावती ने पार्टी की बड़ी बैठक ली। हालांकि बसपा अब तक के अपने सबसे निचले लेवल पर पहुंच गई है। इसलिए बैठक में क्या हुआ क्या नहीं ये ज्यादा चर्चा में नहीं रहा, लेकिन इस बैठक के बाद कुछ सुगबुगाहटें एमपी में जरूर बढ़ गई हैं।

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विंध्य से खोई जमीन मजबूत करेगी बसपा

विंध्य से बीएसपी ने अपनी खोई जमीन को मजबूत करने का फैसला लिया है और संगठन में कसावट लाने की कवायद शुरू कर दी है। मायावती ने प्रदेश को छह अलग अलग जोन में बांट दिया है। एक नए केंद्रीय कॉर्डिनेटर को भी नियुक्ति किया है। दिलीप बौध को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब बात करते हैं हर जोन का स्ट्रक्चर कैसा होगा। मायावती की पार्टी के बनाए हर जोन में तीन प्रभारी होंगे। इसके अलावा हर विधानसभा सीट के स्तर पर भी प्रभारी नियुक्त किए जाएंगे। इस तरह बसपा अपना नेटवर्क मजबूत करने की कोशिश में जुट गई है। बसपा की कोशिश है ये कि ये रोड मैप बसपा को विधानसभा तक ले जा सके।

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क्यों आई अचानक एमपी की याद

अब बात करते हैं कि मायावती को अचानक एमपी की याद क्यों आई। जाहिर तौर पर चुनाव में वक्त है। इसी टाइम का फायदा उठा कर मायावती पहले अपने नेटवर्क को मजबूत करने की कोशिश में हैं। दूसरा कारण है मध्य प्रदेश में, खासतौर से विंध्य में ब्राह्मणों की नाराजगी। मऊगंज के गडरा गांव की घटना तो आपको याद ही होगी जिसमें एक आदिवासी पिता-पुत्र और बेटी की संदिग्ध तरीके से मौत हुई थी। उसके बाद पीट-पीट कर एएसआई रामचरण गौतम की जान भी ले गई थी। उसके बाद से ही बसपा मऊगंज में एक्टिव हो गई थी। मऊगंज में ही सनी द्विवेदी नाम के युवक की भी हत्या हुई जिसके बाद से ब्राह्मण समाज भी नाराज है। अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज ने ऐसी घटनाओं पर नाराजगी भी जताई थी। सोशल इंजीनियरिंग में एक्सपर्ट बसपा सुप्रीमो, इन सारी आपदाओं में सियासी अवसर तलाश रही हैं।

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एमपी से ही चुना गया था बसपा का पहला सांसद

वैसे मायावती की पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी ताकत लगाई थी। बसपा ने सात लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उन सात सीटों पर बीएसपी को जीत तो नहीं मिली पर इतना तो समझा ही जा सकता है कि बीएसपी ने कुछ सीटों पर वोट जरूर काटे होंगे। मायावती की इस रणनीति से ये तो समझ में आता है कि एमपी से मायावती को खास लगाव है। लगाव होने भी चाहिए क्योंकि पार्टी का जो पहला सांसद था वो एमपी से ही था। साल 1991 में बसपा को अपना पहला सांसद मिला था। ये सासंद थे भीम सिंह पटेल जो रीवा सीट से जीतकर देश के सदन में पहुंचे थे। हालांकि मध्य प्रदेश में बसपा का सियासी सफर काफी उतार चढ़ाव वाला रहा है। इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में पार्टी वोट परसेंटेज भी 8.18 तक पहुंच गया था, लेकिन इसके दो ही साल बाद जब दोबारा चुनाव हुए तो बीएसपी को अपनी सीट गंवानी पड़ी थी।

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2.38 परसेंट पर आ चुका है वोटिंग परसेंटेज

साल 2009 के चुनाव में बीएसपी आखिरी बार यहां से लोकसभा चुनाव जीती थी। तब रीवा से देवराज सिंह पटेल ने बीएसपी को जीत दिलाई थी। इन चुनावों में पार्टी का वोटिंग परसेंटेज 5.85 परसेंट रहा था। इसके बाद बसपा का वोटिंग परसेंटेज लगातार गिरता रहा है। साल 2014 के चुनाव में बीएसपी को 3.80 परसेंट वोट मिले और 2019 में ये आंकड़ा गिरकर 2.38 परसेंट पर आ गया।

अब शायद मायावती इस आंकड़े को दोबारा ऊपर ले जाने की कोशिश में जुट गई हैं। वैसे तो मायावती सोशल इंजिनियरिंग कर वोट बदलने में माहिर है हीं। जातिगत जनगणना के बाद उनका ये काम और भी आसान हो जाएगा। हो सकता है इसके बाद बसपा सिर्फ वोट काटने की भूमिका में ही न दिखाई दे। बल्कि प्रदेश में दमदार वापसी भी कर डाले।

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