News Strike : एमपी में विधायकों की मनमानी, एक ने वोटर को धमकाया तो एक ने अफसरों को हड़काया

क्या मध्यप्रदेश में किसी विधायक से सवाल पूछना गुनाह है। मध्यप्रदेश में हाल ही में हुई दो घटनाओं को देखते हुए हमारा सवाल पूरे देश से नहीं सिर्फ मध्यप्रदेश की जनता से और मध्यप्रदेश बीजेपी से है।

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Harish Divekar
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News Strike Photograph: (THE SOOTR)

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NEWS STRIKE : तानाशाह सरकार, संविधान बचाओ जैसे नारे आपने लोकसभा चुनाव के दौरान जरूर सुने होंगे। क्या लगातार सरकार में रहते हुए सत्ता से जुड़े लोग या जनप्रतिनिधि वाकई मतदाताओं की ताकत को भूल जाते हैं। मध्यप्रदेश में हाल ही में हुई दो घटनाओं को देखते हुए हमारे सवाल पूरे देश से नहीं सिर्फ मध्यप्रदेश की जनता से और मध्यप्रदेश बीजेपी से है- 

  • सवाल नंबर एक- क्या मध्यप्रदेश में किसी विधायक से सवाल पूछना गुनाह है।
  • सवाल नंबर दो- क्या मध्यप्रदेश में किसी विधायक के खिलाफ आम आदमी का आवाज उठाना गुनाह है।
  • सवाल नंबर तीन- क्या मध्यप्रदेश में किसी विधायक से सवाल पूछने पर जेल जाना पड़ सकता है।
  • सवाल नंबर चार- मनमानी पर उतर आए अपनी पार्टी के विधायक के खिलाफ बीजेपी क्या कोई कड़ा कदम उठाएगी।
  • सवाल नंबर पांच- जनता अपने काम के लिए जनप्रतिनिधि से सवाल न करे, तो किससे करे। 
  • सवाल नंबर छह- सत्ताधारी पार्टी के विधायक हैं तो क्या कुछ भी धमकी दे सकते हैं।

ये छह सवाल सीधे, बीजेपी के उन शीर्ष नेताओं से हैं जो पार्टी में डिसिप्लीन का दावा करते हैं। जन प्रतिनिधियों को ये सीख देते हैं कि जनता से सीधा संवाद बनाए रखें। मतदाता ही भगवान हैं। ऐसी पार्टी उस विधायक पर क्या कार्रवाई करेगी जो मतदाताओं को धमकाते हैं या फिर भद्दी भाषा में अपनी अकड़ दिखाते हैं। मामला जुड़ा है कालापीपल के बीजेपी विधायक घनश्याम चंद्रवंशी से और पिछोर के विधायक प्रीतम लोधी से। 

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विधायक के काम पर असंतोष जताकर कर दी गलती 

पहले बात करते हैं कालापीपल विधायक घनश्याम चंद्रवंशी की। जिस पर सवाल उठे तो पहले तो उसने मतदाता को धमकाया और उसके बाद उसे जेल में भी डलवा दिया। उस मतदाता की गलती केवल इतनी थी कि उसने फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर विधायक के काम पर सवाल उठाए थे। क्या उसने सवाल उठा कर या विधायक के काम पर असंतोष जताकर गलती की थी। ये सवाल सिर्फ सत्ता के मद में चूर हो चुके नेताओं से नहीं है ये सवाल उस जनता जनार्दन से भी जो वोट देकर जनप्रतिनिधि चुनते हैं। लोकतंत्र में उनसे सवाल पूछना अपना हक भी समझते हैं। हक है भी, इसमें कोई दो राय नहीं। ये सवाल उन पाठकों से भी है जो इस वक्त ये खबर पढ़ रहे हैं। क्या मनमानी करने वाले विधायक के खिलाफ पार्टी को एक्शन लेना चाहिए। 

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विधायक के खिलाफ कमेंट्स ने पहुंचाया पुलिस कस्टडी में

हम आपको वो पूरा वाकया बताते हैं। कालापीपल विधानसभा सीट प्रदेश के शाजापुर जिले में आती है। इस विधानसभा सीट से विधायक हैं घनश्याम चंद्रवंशी। जिन्होंने कांग्रेस के कुणाल चौधरी को हराकर ये सीट हासिल की है। विधायक घनश्याम चंद्रवंशी पर आरोप है कि उन्होंने फेसबुक पर उनसे सवाल करने वाले एक आम मतदाता, एक आम ग्रामीण को पुलिस कस्टडी में रहने पर मजबूर कर दिया। इस ग्रामीण का नाम है हरिओम पटेल। जिसने फेसबुक पर विधायक के काम पर सवाल उठा दिए थे। हरिओम पटेल कालापीपल विधानसभा सीट में आने वाले तिलावद गांव में रहते हैं। उनकी पोस्ट पर कमेंट आने लगे। इसके बाद खुद विधायक ने उन्हें कॉल किया और कथित तौर पर धमकाया भी। 

आरोप ये भी है कि विधायक घनश्याम चंद्रवंशी ने उन्हें पोस्ट हटाने पर मजबूर किया, लेकिन जब एक आम ग्रामीण मतदाता ने पोस्ट हटाने से इंकार किया तो विधायक घनश्याम चंद्रवंशी उसे धमकी देने से भी नहीं चूके। हरिओम पटेल ने ये सारी बातचीत रिकॉर्ड की और उसे खुद ही वायरल भी किया।

वायरल ऑडियो में बातचीत के अंश...

  • विधायकः तुम्हें क्या तकलीफ है, बताओ।
    हरिओमः तकलीफ के अलावा आपने क्या दिया।
  • विधायकः पहले पता करो।
    हरिओमः गांव में कोई काम नहीं हुआ।
  • विधायकः पोस्ट हटाओ।
    हरिओमः पोस्ट नहीं हटाऊंगा।
  • विधायकः नेतागिरी मत करना मेरे से। 25 लाख और 10 लाख का टीन शेड दिया, क्या तुम्हारे यहां पूरा खजाना दे दूं।
    हरिओमः अभी काम चालू नहीं हुआ।
  • विधायकः छड़ी घुमाकर कर दूं। अक्ल वक्ल है कि नहीं, पता नहीं सरकार का काम कैसे होता है।
    हरिओमः तुम बोल कैसे रहे हो।
  • विधायकः तुमने कैसे लिख दिया।
    हरिओमः स्वतंत्र भारत है।
  • विधायकः काहे का स्वतंत्र है, तुम्हें बताता हूं क्या स्वतंत्र है।

ये वो बातचीत है जो खुद हरिओम पटेल ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की है। आपको ये भी बता दें कि द सूत्र ऐसे किसी ऑडियो की पुष्टि नहीं करता है, लेकिन मामला इस नोंकझोक पर ही नहीं रुका। इसके बाद पुलिस हरिओम के घर पहुंची और उन्हें कस्टडी में भी रखा गया। इस मामले में मीडिया ने अवंतिपुर बड़ोदिया थाने के प्रभारी घनश्याम बैरागी से भी बात की। बैरागी की दी जानकारी के मुताबिक हरिओम के घर तीन बीजेपी कार्यकर्ता पोस्ट के सिलसिले में बात करने गए थे। इस बातचीत के दौरान गाली गलौज शुरू हो गई। हरिओम पर धारा 170 के तहत मामला दर्ज करवाया गया। इसके बाद उन्हें कार्यपालिका मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और फिर जेल भेज दिया गया। 

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क्या माननीयों से मतदाता को सवाल पूछने का हक नहीं

बताया जा रहा है कि हरिओम पर तीन और भी मामले दर्ज हैं। हमारा सवाल ये है कि मामला दर्ज है भी तो क्या हरिओम जनप्रतिनिधि के काम पर सवाल नहीं उठा सकते। जब क्रिमिनल बैकग्राउंड का शख्स चुनाव लड़ सकता है। जीत कर माननीयों के बीच सदन में बैठ सकता है तो क्या ऐसे मतदाता को सवाल पूछने का हक नहीं है। खैर इसके आगे क्षेत्र में राजनीति शुरू हो चुकी है। क्षेत्र के पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता कुणाल चौधरी ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया और नाराजगी भी जाहिर की है।

पुलिस प्रशासन की कार्रवाई भी दबाव में हुई?

इस मामले में विधायक का गुस्सा तो अपनी जगह है। पुलिस अफसरों ने कैसे इतनी जल्दी शिकायत लिख ली और उस पर तेजी में कार्रवाई भी कर दी। कालापीपल के ये विधायक संघ के करीबी भी बताए जाते हैं। क्षेत्र में उनका काफी दबदबा भी है। खबर तो यहां तक है कि उन्होंने कालापीपल के थाने में अपने रिश्तेदार को ही टीआई भी नियुक्ति करवा दिया है। क्या इसलिए पुलिस ने इतना तेजी में काम किया। क्या कालापीपल का पुलिस प्रशासन संघ या बीजेपी के दबाव में है। 

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प्रीतम लोधी ने अपने ही मंत्री पर साधा निशाना

प्रीतम लोधी का मामला भी कुछ ऐसा ही है। जो रानी अवंतिबाई लोधी के बलिदान दिवस पर शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे। इस मौके पर प्रीतम लोधी ने अपनी ही पार्टी की सरकार के एक मंत्री का नाम लिए बगैर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हमारे काम नहीं हुए तो बिजली पानी के कनेक्शन काट दूंगा। अधिकारियों का पानी पेशाब भी बंद कर दूंगा। 

ऐसे जनप्रतिनिधि बीजेपी के लिए खड़ी कर सकते हैं मुश्किलें

सवाल ये है कि इतने साल से सत्ता में रहते रहते क्या बीजेपी के विधायक अब सत्ता के मद में सारी सीमाएं भूल चुके हैं। अभी ये मामला सुनने में सिर्फ एक या दो विधानसभा सीट का लगता है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि बेलगाम हो रहे जनप्रतिनिधियों को बीजेपी ने नहीं रोका या सार्वजनिक रूप से फटकार नहीं लगाई तो मतदाताओं के बीच मैसेज अच्छा नहीं जाएगा। क्या आपको नहीं लगता कि छोटे-छोटे लेवल से पनपने वाली ये एंटीइनकंबेंसी आगे चलकर बड़ा रूप ले सकती है और पार्टी के लिए मुश्किल बन सकती है।

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