NEWS STRIKE: कुंवर विजय शाह के अभद्र बयान के बाद टला बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के नाम का ऐलान ? क्या है बीजेपी की नई प्लानिंग

मध्यप्रदेश बीजेपी में कई सवाल उलझे हुए हैं, जो आसानी से सुलझाए नहीं जा सकते। पार्टी के बड़े फैसलों और बदलावों की घोषणा में अभी समय लगेगा। इसलिए, बीजेपी नेताओं के लिए अब मुश्किल दौर है।

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Harish Divekar
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news strike 23 may

Photograph: (the sootr)

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मध्य प्रदेश बीजेपी से जुड़े कुछ सवाल बुरी तरह उलझ चुके हैं। अब हालात ये है कि बीजेपी खुद चाहें तो आसानी से इन सवालों के उलझे ताने बाने को आसानी से सुलझा नहीं सकती। आप भी बीजेपी की कुछ ऐलान या पार्टी में किसी बदलाव का शिद्दत से इंतजार कर रहे थे तो जरा उस इंतजार को सिरहाने रखिए और चैन की नींद सो जाइए क्योंकि नींद उड़ने की बारी अब बीजेपी के बड़े नेताओं की है। बीजेपी अब बड़े फैसलों को लेने में कुछ वक्त जरूर लेगी। ऐसा हम क्यों कह रहे हैं और क्या हैं बीजेपी के वो फैसले हम आपको एक-एक कर बताते हैं।

बीजेपी में पिछले कुछ दिनों से चल क्या रहा है। क्या आपने नोटिस किया। पहलगाम हमले के बाद देश की सेना ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया और पाकिस्तान से जम कर बदला लिया। सेना ने देश का मान तो बढ़ाया ही बीजेपी की लाज भी बचा ली क्योंकि हमले के बाद से ही बीजेपी पर उंगलियां उठना शुरू हो गई थीं। पूरे देश ने सेना को सैल्यूट किया, लेकिन बीजेपी के दो नेताओं ने ऐसा बयान दिया कि बीजेपी सफाई देने के मोड में आ गई। इत्तेफाक से दोनों ही नेताओं का ताल्लुक मध्य प्रदेश से है। एक नेता हैं डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद बयान दिया कि सेना भी पीएम मोदी के सामने नतमस्तक है। लेकिन, कुछ ही घंटों बाद उस बयान का खंडन किया और कहा कि ये बयान तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है।

मामला अदालत में और जांच एसआईटी के पास

उनसे पहले कुंवर विजय शाह ने भी एक बयान दिया था। शाह भी मोहन कैबिनेट में मंत्री हैं। उन्होंने अपने बयान में कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकियों की बहन बताया था। इसके बाद से शाह विपक्षी दलों और आम लोगों के निशाने पर पहुंचे। मामला अदालत तक पहुंचा और अब एसआईटी इस बयान की जांच कर रही है। ये सारा एपिसोड आप सब लोग अच्छे से जानते हैं। अब हम आपको ये बताते हैं कि ये घटनाक्रम किस तरह बीजेपी की नाक में दम कर रहा है और पार्टी को बड़े फैसले टालने पर मजबूर कर चुका है। 

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बीजेपी के कई अहम फैसले पेंडिंग 

बीजेपी के सामने कुछ अहम फैसले पेंडिंग हैं जिसमें एक की चर्चा इस साल की शुरुआत से ही चल रही है। ये फैसला है बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के फैसले से जुड़ा। साल की शुरुआत से ही ये खबर थी कि इस बार वीडी शर्मा बदल दिए जाएंगे और नए चेहरे को ये जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। उसके बाद खबर आई कि दिल्ली चुनाव के बाद ये अहम फैसला होगा। इस तरह अलग-अलग वजहों से ये मुद्दा लगाता टलता चला गया। आप ये जरूर जानना चाहेंगे कि कुंवर विजय शाह की अभद्र टिप्पणी और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के ऐलान का क्या कनेक्शन है। सब्र रखिए वो भी पूरी डिटेल में समझाएंगे। आप बस एक-एक समीकरण को गौर से समझते जाइए।

बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा पर फिर ग्रहण

जब प्रदेशाध्यक्ष बनाने की बात चल रही थी तब रेस में कई नाम शामिल बताए जा रहे थे। फिर खबर आई कि इस पद के लिए हेमंत खंडेलवाल का नाम फाइनल कर लिया गया है जिसका ऐलान अब कभी भी हो सकता है। देखते-देखते दो-तीन महीने और गुजर गए पर ऐलान नहीं हो सका। अब इस बात की प्रबल संभावनाए हैं कि हेमंत खंडेलवाल के नाम का ऐलान ही न हो। इसका ये कतई मतलब नहीं कि बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष पद पर नया चेहरा नहीं उतारेगी। अब जो हालात हैं उसमें हेमंत खंडेलवाल को ये पद मिलना मुश्किल दिखाई दे रहा है क्योंकि अब बीजेपी को कुछ नए समीकरणों पर गौर करना होगा।

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निमाड़ की 10 सीटें और शाह की आदिवासी समाज पर पकड़

असल में कुंवर विजय शाह के बयान के बाद मामला काफी गर्मा गया है। शाह ने वैसे भी पहली बार इस तरह का घटिया बयान नहीं दिया है। अपने भद्दे बयान के चलते वो नेशनल लेवल पर एक्सपोज पहली बार हुए हैं। उसके बाद भी बीजेपी उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता अगर नहीं दिखा पा रही है तो इसकी वजह है उनका आदिवासी समाज से दमदार फेस होना। शाह की इस वोटबैंक पर जबरदस्त पकड़ है और बीजेपी का ये डर लाजमी है कि शाह को मंत्रिमंडल से बाहर किया तो आदिवासी समाज नाराज हो सकता है। शाह की नाराजगी का असर निमाड़ की दस सीटों पर पड़ सकता है जिसका खामियाजा बीजेपी को अगले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। साल 2018 के चुनाव में ये वोटबैंक कांग्रेस की तरफ हुआ था तो वो सत्ता में आने में कामयाब हो गई थी इसलिए बीजेपी ये रिस्क लेने के मूड में बिलकुल नहीं है।

बीजेपी बना सकती है आदिवासी चेहरे को अध्यक्ष

सो अब पार्टी में ये कवायद हो सकती है कि प्रदेशाध्यक्ष पद पर कोई आदिवासी चेहरा उतारा जाए। ताकि आदिवासी नाराज हों, उससे पहले ही उन्हें मनाने की प्रक्रिया पूरी हो जाए। अगर ऐसा होता है तो गजेंद्र सिंह पटेल इस रेस में आगे निकल सकते हैं। पटेल भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले पटेल की बड़वानी और आस-पास के जिलों के आदिवासी समाज में जबरदस्त पकड़ है इसलिए उन्हें कुंवर विजय शाह का तोड़ माना जा सकता है।

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लटक सकता है मंत्रिमंडल विस्तार भी

प्रदेशाध्यक्ष के साथ-साथ मंत्रिमंडल विस्तार भी फिलहाल टलता दिख रहा है क्योंकि शाह को मंत्रिमंडल में रखना बीजेपी के लिए मुश्किल बन सकता है। क्या पीएम मोदी खुद इस बात की इजाजत देंगे कि इस तरह की टिप्पणी करने वाले नेता मंत्रिमंडल में बने रहें, ये भी बड़ा सवाल है। तो ये कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि ये दोनों ही बड़े फैसले तब होंगे जब बीजेपी एक अदद आदिवासी नेता की तलाश पूरी कर लेगी। जो शाह की कमी को पूरा कर सके। उसके बाद ही पार्टी शाह पर कोई एक्शन लेने की दिशा में आगे बढ़ सकती है।

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