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Photograph: (the sootr)
मध्यप्रदेश के डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा कहते हैं कि देश की सेना भी मोदी के सामने नतमस्तक है। हम पूछते हैं कि बीजेपी किसके सामने नतमस्तक है। हमारा ये सवाल बीजेपी के हर उस नेता से है जो कभी बीजेपी को सबसे अनुशासित पार्टी बताते थे। वाकई बीजेपी ऐसी पार्टी रही है जहां पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर कोई नेता बयान नहीं देता था। उसी पार्टी के एक मंत्री कुंवर विजय शाह के कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिए भद्दे बयान पर पार्टी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। और, अब प्रदेश के डिप्टी सीएम भी सेना की शान में गुस्ताख बयान देते नजर आ रहे हैं। यूं तो बीजेपी हर मुद्दे पर पुरजोर तरीके से अपनी राय रखती है। बयान देती है, लेकिन अपने ही दो नेताओं के बयान पर खामोश रहने की आखिर क्या मजबूरी है। यहां ये भी बता दें कि अपने बयान के चंद घंटे बाद डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा ने उसका खंडन किया है और कहा है कि उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया।
कुंवर विजय शाह कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिए बयान के चलते पूरे देश में सुर्खियां बटोर रहे हैं। उनका बयान इतना आपत्तिजनक है कि खुद हाई कोर्ट ने संज्ञान लेकर उस पर शिकायत दर्ज करने को कहा। शिकायत दर्ज भी हुई जिसके खिलाफ शाह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। और, खबर लिखे जाने तक उनके मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी थी। ये पहला मामला नहीं था जब शाह ने ऐसा कोई बयान दिया हो। उन्होंने कब कब आपत्तिजनक बयान दिए हैं।
ये जानने के लिए आप न्यूज स्ट्राइक के पिछले एपिसोड पढ़ सकते हैं जिसमें हमने शाह के नए से लेकर पुराने बयानों के बारे में बताया था। और ये भी बताया था कि उनके हर बयान को पार्टी हमेशा से ही नजरअंदाज करती रही है। सिवाय एक बयान के, जिस पर शाह पर कार्रवाई हुई थी। यहां क्लिक कर आप उस आर्टिकल को पढ़ सकते हैं।
शाह के बयान पर सियासत जारी
कर्नल सोफिया कुरैशी पर शाह के बयान के बाद से ही सियासी नौटंकी जारी है। विपक्षी दल शाह के खिलाफत में जुट गए हैं। कोई शाह से माफी मांगने की मांग कर रहा है तो किसी की डिमांड है कि ऐसा बयान देने वाले मंत्री का इस्तीफा हो जाना चाहिए। शाह ने अगर अपने बयान से कोई कसर छोड़ी थी तो उसे पूरा कर दिया प्रदेश के डिप्टी सीएम और बीजेपी वरिष्ठ नेता जगदीश देवड़ा ने। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को धूल चटाने वाली जिस सेना को खुद पीएम मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह भी सैल्यूट कर रहे हैं। उसी सेना को देवड़ा ने पीएम मोदी के सामने नतमस्तक बता दिया है। जगदीश देवड़ा के बयान में ट्विस्ट ये है कि उन्होंने अपने बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया बताया है।
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लोगों में मन में उमड़ रहे कई सवाल
पहले कुंवर विजय शाह और अब जगदीश देवड़ा। बीजेपी के नेताओं को आखिर हुआ क्या है। क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि मध्यप्रदेश के बीजेपी नेताओं में आलाकमान की चाटुकारिता करने की होड़ लगी है। बदले में ये अहसास तो है ही कि कुछ भी कह लें कार्रवाई तो होगी नहीं। कम से कम अब तक जो भी घटनाक्रम रहा है, उसे देखकर तो यही लगता है। कुंवर विजय शाह से लेकर जगदीश देवड़ा के एपिसोड तक पार्टी की खामोशी क्या इशारा करती है। ऐसे बहुत से सवाल हैं जो खुद अब वो लोग भी जानना चाहते हैं जो बीजेपी के हितैशी रहे हैं या फिर मुरीद रहे हैं।
क्या वाकई शाह इस्तीफा न देने पर अड़े हुए हैं?
मीडिया में ये खबरें जोरों पर हैं कि शाह इस्तीफा नहीं देना चाहते इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। लेकिन, पार्टी क्यों कोई भी एक्शन लेने से बच रही है। पार्टी चाहें तो खुद भी शाह को मंत्री पद से हटा सकती है, लेकिन अब तक ऐसा कोई एक्शन नहीं हुआ है।
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पीएम मोदी इन बयानों पर खामोश क्यों हैं?
शाह और देवड़ा दोनों के ही बयान इतने वायरल हो चुके हैं कि पीएम मोदी के कानों तक भी जरूर पहुंचे होंगे। आमतौर पर पीएम अपने नेताओं की गलत हरकत या गलत बयान पर नाराजगी जताने से नहीं चूकते हैं, लेकिन इस बार खामोश क्यों है। इसका जवाब भी जनता जरूर जानना चाहती है। आपको याद होगा जब भोपाल की सांसद रहते हुए प्रज्ञा ठाकुर ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को देशभक्त बताया था। इस बयान पर पीएम मोदी ने कहा था कि वो प्रज्ञा ठाकुर को कभी माफ नहीं कर सकेंगे।
इंदौर के बल्लेबाज विधायक आकाश विजयवर्गीय के कारनामे पर भी पीएम मोदी ने नाराजगी जताई थी जबकि आकाश विजयवर्गीय कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता के बेटे हैं। उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट भी नहीं दिया गया, लेकिन अब पीएम मोदी इस तरह के बयानों पर खामोश क्यों हैं।
क्या सता रहा है आदिवासी वोट बैंक का डर?
कुंवर विजय शाह प्रदेश के बड़े आदिवासी नेता हैं। क्या उनकी यही सियासी खासियत बीजेपी को सख्त फैसला लेने से रोक रही है। आपको ये याद ही होगा कि आदिवासी समाज में पैठ बनाने के लिए बीजेपी ने कितने पापड़ बेले हैं। आदिवासी समाज में भगवान की तरह पूजे जाने वाले बिरसा मुंडा के सम्मान में बीजेपी ने जनजातीय गौरव दिवस तक मनाया। सागर में संत रविदास का भव्य मंदिर बनाने की पहल की। अब क्या बीजेपी को ये डर है कि शाह पर खुद एक्शन लिया तो आदिवासी समाज नाराज हो सकता है इसलिए क्या बीजेपी ये वोट बैंक का रिस्क नहीं लेना चाहती। भले ही सेना का सम्मान दांव पर लगा हो।
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संघ ने चुप्पी क्यों साध रखी है?
जब-जब बीजेपी के कदम डगमगाएं हैं। संघ यानी कि आरएसएस के चाबुक ने काम किया है। जो पार्टी को दोबारा सही रास्ते पर लेकर आया है, लेकिन इस मसले पर संघ की चुप्पी भी हैरान करने वाली है। क्या संघ भी धर्म देखकर इंसाफ करेगा और एक्शन लेगा।
जगदीश देवड़ा पर एक्शन होगा या नहीं?
शाह के बयान से अब तक पार्टी उभरी भी नहीं थी कि देवड़ा का बयान आ गया। क्या पार्टी देवड़ा पर कोई एक्शन लेगी। इस पर भी संशय है क्योंकि जब शाह का कुछ नहीं हुआ तो देवड़ा का क्या होगा। वो भी एक खास तबके से ताल्लुक रखते हैं और वोटबैंक का दम भर सकते हैं। दुश्मन के सामने सीना तान कर खड़ी रहने वाली भारतीय सेना को नतमस्तक बताने वाले देवड़ा भी क्या बख्श दिए जाएंगे या अपनी सफाई पहले ही पेश कर देने के बाद वो किसी भी कार्रवाई से बच जाएंगे।
उमा भारती ने पेश की थी नजीर
आपको याद दिला दें कि ये वही पार्टी है जिसकी एक नेता उमा भारती ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ने में भी देर नहीं की। उमा भारती के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुआ तब उन्होंने अपने सियासी भविष्य को ताक पर रख कर ये बड़ा फैसला लिया था। तब मामला तिरंगा का था और अब मामला सेना का है। यानी देश भक्ति का जज्बा दोनों ही मामलों में बराबर है। फिर भी कुंवर विजय शाह की अंतरात्मा गलती पर खुद सजा भुगतने की गवाही नहीं दे रही और बीजेपी के डिसिप्लीन पर भी धूल जमती जा रही है। खुद उमा भारती भी विजय शाह पर सख्त कार्रवाई करने और उन्हें बर्खास्त करने की मांग कर चुकी हैं।
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खेमों में बंटी नजर आ रही बीजेपी
सिर्फ उमा भारती ही क्यों, विजय शाह के मामले पर पूरी बीजेपी ही दो खेमों में बंटी हुई नजर आ रही है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने इस शर्मनाक बयान पर भी कोई फैसला न होने पर हैरानी जताई है। पार्टी के एक और वरिष्ठ नेता, पूर्व सांसद और संगठन महामंत्री कृष्ण मुरारी मोघे ने भी कहा कि ये बयान ही नहीं पूरी घटना ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इस पर फैसला जल्दी होना चाहिए। पार्टी की उपाध्यक्ष सीमा सिंह ने भी इस बयान को अनुचित करार दिया है, लेकिन पार्टी की ही नेता और आदिवासी जिले डिंडौरी की प्रभारी मंत्री प्रतिमा बागरी ने इस बयान पर बहुत सामान्य प्रतिक्रिया दी है। बागरी ने कहा कि शाह की मंशा कर्नल सोफिया कुरैशी का अपमान करने की नहीं थी। उन्होंने बयान पर माफी भी तो मांग ली है। मंशा अपमान करने की नहीं थी, लेकिन ये स्लिप ऑफ टंग भी तो नहीं था। अगर जुबान फिसली ही होती तो मंत्रीजी जरा हिचकते। रुकते बयान पर फिर से विचार करते। उसे ठीक करते और दोबारा अपनी बात कहते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
खैर हम बयान का ज्यादा विश्लेषण नहीं करेंगे क्योंकि मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत के सामने पहुंच चुका है। जब सरकारें खामोश होती हैं तो आखिरी उम्मीद अदालतों से ही होती है। इस बार भी उम्मीद है कि ये उम्मीद कायम रहेगी और सही फैसला होगा।
News Strike Harish Divekar | न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर