News Strike : मध्यप्रदेश के निगम मंडलों में जल्द नियुक्तियों का रास्ता साफ होता दिख रहा है, लेकिन इस बार प्रदेश के दिग्गज नेताओं या उनके समर्थक नेताओं को मायूसी हाथ लग सकती है। खबर है कि आलाकमान ने निगम मंडल में नियुक्तियों को तो हरी झंडी दे दी है, लेकिन एक पेंच भी फंसा दिया है। उसके बाद प्रदेश से जुड़े आलानेताओं की दाल गलना जरा मुश्किल हो गया है। पेंच उपचुनाव में भी उलझा हुआ है। मोहन सरकार फिलहाल उपचुनाव पर फोकस करेगी फिर निगम मंडलों में नियुक्तियां करेगी या इंतजार लंबा भी खिंच सकता है। क्या है माजरा चलिए समझाता हूं।
निगम मंडलों में नियुक्ति में कैसे मिली छूट
न्यूज स्ट्राइक के पिछले एपिसोड में आपको बताया था कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों में दिल्ली का दखल बरकरार है जो भी अहम फैसले हैं वो दिल्ली से ही हो रहे हैं। इसकी क्या वजह है और कौन-कौन से फैसले दिल्ली से हुए, ये जानने के लिए आप न्यूज स्ट्राइक का पुराना एपिसोड देख सकते हैं। लिंक डिस्क्रिप्शन बॉक्स में मिल जाएगी। फिलहाल हम बात करते हैं निगम मंडलों में नियुक्ति को लेकर मिली छूट की। सीएम मोहन यादव हाल ही में दिल्ली दौरे से लौटे हैं। अपने इस दौरे के दौरान सीएम ने गृहमंत्री अमित साह से मुलाकात की। इसके बाद उनकी मीटिंग पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, अश्विनी वैष्णव और मनोहर लाल खट्टर से भी हुई। सूत्रों के मुताबिक इस मौके पर सीएम ने बहुत से केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात भी की और कई बड़े प्रोजेक्ट्स पर उनकी चर्चा भी हुई। ये भी माना जा रहा है कि इस यात्रा के साथ सीएम मोहन यादव निगम मंडलों में नियुक्त के लिए भी हरी झंडी लेकर आए हैं।
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निगम और मंडलों में नियुक्ति के लिए रहती है होड़
आपको याद दिला दें कि शिवराज सिंह चौहान ने सरकार में रहते हुए विधानसभा चुनाव के पहले निगम, मंडल, प्राधिकरण और बोर्डों में राजनीतिक नियुक्तियां की थीं। सारी नियुक्तियां चुनावों के मद्देनजर की गई थीं, जिसमें सियासी और क्षेत्रीय समीकरणों पर जोर दिया गया था। शिवराज सिंह चौहान की सीएम पद से विदाई के बाद मोहन यादव ने नेतृत्व संभालते ही 46 निगम, मंडल, प्राधिकरण और बोर्डों के अध्यक्ष, उपाध्यक्षों की नियुक्तियां निरस्त कर दी थीं। कोई भी सरकार निगम मंडलों में ऐसे नेताओं को जगह देती है जो क्षेत्र में दबदबा रखते हैं, लेकिन चुनाव नहीं जीत सकते। ऐसे नेताओं को पार्टी टिकट नहीं देती, लेकिन क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बनाए रखने के लिए उन्हें निगम मंडल में नियुक्ति का आश्वासन दिया जाता है। निगम मंडलों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को मंत्री और राज्य मंत्री का दर्जा हासिल होता है। यानी उन्हें वही वेतनमान और सुविधाएं मिलती हैं जो उस राज्य के लिए मंत्री और राज्य मंत्री पद के लिए तय होती हैं। यही कारण भी होता है कि निगम और मंडलों में नियुक्ति के लिए नेताओं में होड़ लगी रहती है।
इस बार निगम मंडलों में नहीं चलेगा सिफारिश का दांव
अक्सर बड़े नेता अपने समर्थक नेताओं को ओब्लाइज करने के लिए निगम मंडलों में नियुक्ति की सिफारिश भी करते हैं, लेकिन इस बार ऐसा होना थोड़ा मुश्किल है। जैसे ही खबर आई कि निगम मंडलों में नियुक्ति का रास्ता खुल चुका है। उसके बाद से कुर्सी की चाह रखने वालों ने अपने आकाओं के दरबार में चक्कर लगाना भी शुरू कर दिया है। दिग्गज नेताओं की सिफारिश मनचाहे निगम मंडल में नियुक्ति का श्योरशॉट तरीका भी मानी जाती है, लेकिन इस बार निगम मंडलों में सिफारिश का रास्ता या बड़े नेताओं का कोटा जैसा कोई दांव नहीं चलने वाला है।
इस बार सिंधिया समर्थकों को नहीं मिलेगा कोटा
साल 2020 के बाद से प्रदेश के निगम मंडलों में नियुक्ति के मामले पर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक बाजी मारते रहे हैं। उनके साथ दल बदल कर आए बहुत से समर्थकों को चुनाव हारने पर पार्टी ने निगम मंडलों की नियुक्ति से नवाजा था। ऐसे नेताओं में सिंधिया के खास इमरती देवी, रघुराज कंसाना, गिर्राज डंडोतिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मुन्नालाल गोयल के नाम प्रमुखता से शामिल थे। इसके अलावा भी कांग्रेस से आने वाले दूसरे नेता जैसे प्रदीप जायसवाल, प्रद्युम्न सिंह लोधी और राहुल लोधी को भी बीजेपी ने निगम मंडल में जगह दी थी, लेकिन इस बार सिंधिया और सिंधिया जैसे दिग्गज नेताओं को बहुत ज्यादा कोटा नहीं मिलेगा। इस बार पार्टी की प्लानिंग कुछ और है।
नियुक्तियां जल्द शुरू होंगी इस पर भी संशय बरकरार
असल में बीजेपी को बीते विधानसभा चुनाव में एक परेशानी का सामना करना पड़ा था। बीजेपी का मूल कार्यकर्ता पार्टी से खासा नाराज था या नीरस था। आने वाले चुनाव से पहले बीजेपी इन हालातों पर काबू करना चाहती है। इसलिए बीजेपी की कोशिश है कि इस बार बड़े नेताओं की सिफारिश मानने की जगह अपने उन नेताओं को पार्टी में जगह दी जाए जो पुराने नेता हैं या निष्ठावान कार्यकर्ता है। ताकि हर कार्यकर्ता तक ये मैसेज जाए कि पार्टी पुराने नेताओं को भूली नहीं है। आने वाले चुनावों में हर कार्यकर्ता बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले। हालांकि, हरी झंडी मिलने के बाद नियुक्तियां जल्द शुरू हो ही जाएंगी इस पर भी संशय बरकरार है। अब संशय क्यों है ये भी जान लीजिए। बेशक दिल्ली से हरी झंडी मिल गई हो, लेकिन नियुक्तियों की प्रक्रिया कब से शुरू करनी है ये फैसला सीएम मोहन यादव के ही हाथ में है। ये माना जा रहा है कि फिलहाल बीजेपी सत्ता और संगठन दोनों निगम मंडल में नियुक्ति में उलझने के मूड में नहीं है। असल में मोहन सरकार और संगठन पर अभी उपचुनाव की जिम्मेदारी है। प्रदेश की तीन अहम सीटों पर उपचुनाव होने हैं। जिसमें बुधनी, विजयपुर और बीना की सीट शामिल है। बुधनी के अलावा बाकी दो सीटों पर जीत हासिल करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है। इसलिए सत्ता और संगठन दोनों का फोकस इसी चुनाव पर है।
दिल्ली से तो मिल चुकी है हरी झंडी
सत्ता के गलियारों में ये अटकलें तेज हैं कि निगम मंडलों के मामले पर उपचुनाव के बाद ही गौर किया जाएगा। दिल्ली से हरी झंडी तो मिल ही चुकी है। लिहाजा प्रक्रिया कभी भी शुरू की जा सकती है। हो सकता है कि उपचुनाव के बाद ये प्रक्रिया शुरू हो, लेकिन और देर हुई तो हो सकता है नियुक्ति का मामला लंबा भी खिंच जाए और फिर तीन साल बाद होने वाले चुनावों से पहले इन नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू हो।