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Raipur.छत्तीसगढ़ भले ही छोटा राज्य माना जाता हो लेकिन यहां के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में मामले बड़े-बड़े उठते रहे हैं। इन दिनों महिला पुलिस अफसर और कारोबारी के बीच का विवाद खूब सुर्खियां बटोर रहा है।
विवाद प्यार से लेकर ब्लैकमेलिंग तक पहुंच गया है लेकिन न कोई एफआईआर है और न ही कोई जांच या कार्यवाही। एफआईआर भी दोनों के परिजनों ने एक दूसरे के खिलाफ लगाई है। मुख्य दो लोग तो उसमें शामिल ही नहीं हैं।
अब ऐसा क्यों हो रहा है, कौन किसे बचा रहा है यह सवाल जरूर चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं अफसर एक तरफ तो लाइन में लगे हैं तो दूसरी तरफ मंत्रियों को ठेंगा दिखा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
प्यार, गिफ्ट और ब्लैकमेलिंग
इन दिनों पुलिस अफसरों का प्यार खूब परवान चढ़ रहा है। यह अकेले छत्तीसगढ़ की कहानी नहीं है बल्कि एमपी में कुछ इसी तरह का वाकया हुआ है। प्यार के चर्चे हुए, प्रेमी के खर्चे हुए और फिर गिफ्ट के लेन-देन का मामला ब्लैकमेलिंग तक पहुंच गया।
मामला जांच-पड़ताल तक पहुंचा यानी प्यार का पंचनामा बन गया। एमपी में पुलिस अफसर और फैशन डिजाइनर के बीच लेन-देन के विवाद का मसला है तो छत्तीसगढ़ में महिला पुलिस अफसर और कारोबारी के बीच का मसला है। हम आपको डीटेल में छत्तीसगढ़ मसले के कुछ राज बताते हैं जो इस विवाद के बढ़ने के साथ ही खुलने लगे हैं। यह राजफाश एक दूसरे के लोग ही कर रहे हैं, कुछ खुलकर तो कुछ छुपकर।
कारोबारी ने दावा किया कि महिला अफसर ने उसे 'लव ट्रैप' में फंसाया और शादी का झांसा देकर उससे करोड़ों रुपये, एक महंगी गाड़ी और बेशकीमती गहने ठग लिए। राजदार बताते हैं कि इन महिला अफसर का पिछली सरकार में खूब जलवा चलता रहा है। कहा यह भी जा रहा है कि अपनी इसी धमक के कारण इन्होंने बेशकीमती जमीनें अपने परिजनों के नाम कर दी हैं।
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पिछली सरकार में एक वक्त ऐसा भी था जब इनके सामने गौ तस्करी का मामला लेकर वर्तमान के दो डिप्टी सीएम और एक मंत्री बैठे रहे थे और मेडम फोन पर गेम खेलती रहीं, यह हम नहीं कुछ तस्वीरें कह रही हैं। मेडम की धमक आज भी जारी है। इस पूरे मामले में न रिपोर्ट है, न जांच है और न ही कोई पूछताछ।
कहा जाता है कि इनके सिर पर आईपीएस अफसरों के एक खास गठजोड़ का हाथ है। अब दूसरे राजदार बताते हैं कि गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद यह बात सामने आई है कि कारोबारी का विवादित रिकॉर्ड रहा है। वह लोगों को बहला-फुसलाकर और बड़ा फायदा दिलाने का झांसा देकर ठगी करता रहा है।
28 लाख की ठगी के मामले में वारंट जारी हुआ है। वहीं एक व्यक्ति की नौकरी लगवाने के नाम भी मोटी रकम मांगी गई थी। सवाल यह भी है कि एक फोटो फ्रेम बनाने वाला कुछ साल में करोड़पति कैसे बन गया। बहरहाल सच-झूठ जो भी हो लेकिन प्यार का पंचनामा तो बन ही गया है, जांच और कार्यवाही के नाम पर नतीजा ठन ठन गोपाल है।
मंत्री के आदेश को ठेंगा
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छत्तीसगढ़ सरकार के अफसर, मंत्री को ठेंगा दिखाने में जरा भी नहीं हिचकते। मंत्री भी अफसरों के सामने लाचार नजर आ रहे हैं। मामला जेम से हुई खरीदी से जुड़ा हुआ है। बाजार में लगभग 20 हजार की कीमत में मिलने वाली मशीन को ट्राइबल विभाग ने जेम पोर्टल से लगभग 8 लाख रुपये में खरीदा।
इस खरीदी की प्रदेश में जमकर चर्चा हुई और विभाग पर सवाल भी खड़े किए गए। जब इस मामले की जानकारी संबंधित मंत्री को लगी तो उन्होंने आनन-फानन में फरमान जारी कर दिया कि इसकी जांच की जाए और सप्ताह भर के भीतर रिपोर्ट पेश करें।
तारीख पर तारीख बीतती गईं लेकिन रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं हुई। सात दिन की जगह सात सप्ताह बीत गए रिपोर्ट को तैयार करने में। अब इस बारे में अफसर हैं कि कुछ बोल नहीं रहे और मंत्रीजी की बेचारगी भी साफ नजर आ रही है।
लाइन में लगे अफसर
नए प्रशासनिक मुखिया ने छत्तीसगढ़ के अफसरों की यह हालत कर दी है कि उनको लाइन लगानी पड़ रही है। जाहिर है साहबों के अहम को ठेस तो पहुंच रही है लेकिन वे कर कुछ नहीं पा रहे क्योंकि यह सब कुछ सीएस खुद देख रहे हैं।
मामला बायोमैट्रिक अटेंडेंस को लेकर है जो 1 दिसंबर से शुरू हो गई है। महानदी भवन में एक दिसंबर को सुबह पौने दस बजे से दस बजे के बीच 15 मिनट ऐसा नजारा रहा, वैसा 25 साल में कभी नहीं हुआ। पोर्च से गेट तक करीब 300 मीटर का फासला है।
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आलम यह था कि अफसरों की गाड़ियों की कतार गेट से बाहर सड़क तक पहुंच गई। उससे पहले पोर्च में गाड़ियों की कभी लाइन नहीं लगी। हालांकि, मोबाइल में भी उसका एक्सेस दिया गया है। मगर पहले दिन कई सारे अधिकारियों ने ऐप डाउनलोड किया नहीं था। और, 10 बजे के पहले मंत्रालय पहुंचना भी था।
इसलिए, एक साथ गाड़ियों का रेला मंत्रालय पहुंच गया। रायपुर मंत्रालय में सीएस खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं। उनके कंप्यूटर में 11 बजे पूरा अटेंडेंस डाउनलोड हो जाता है। अब अफसर लाचार हैं कि करें तो क्या करें।
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