बस्तर संभाग के अलग-अलग जिलों में आदि मानवों के कई शैल चित्र हैं। जिनका संरक्षण करने के लिए लगातार सालों से कोशिश की जा रही है। कुछ जगहों पर इस काम को लेकर सफलता भी मिली है। सालों बाद अब बस्तर के शैलचित्रों को पहली बार कोलकाता के साल्ट लेक में होने वाले तीन दिवसीय सेमिनार में देश विदेश के 150 से अधिक मानव वैज्ञानिक देख सकेंगे और इस काम को आगे बढ़ाने को लेकर अपनी राय देंगे।
शैल चित्रों में हाथ और पैरों के निशान
जानकारी के मुताबिक बस्तर संभाग के कोंडागांव से लेकर कांकर जिले के कई इलाकों में पिछले कई सालों से कई तरह के शैल चित्र मिले हैं जिसमें लोगों की आजीविका से लेकर शिकार और नृत्य शैली को दर्शाया गया है। मानव विज्ञान संग्रहालय के अधिकारी पीयूश रंजन ने बताया कि इन शैल चित्रों में हाथ और पैरों के निशान भी हैं।
इन चित्रों में शिकार के लिए धनुष लिए मानव भी दिखाई देते हैं। इन चित्रों में घर (झोपड़ी) भी दिखाई देते हैं। इन चित्रों में विचित्र अक्षर भी हैं। इन चित्रों से आदि मानवों के जीवन और समय के बारे में जानकारी मिलती है। इन शैल चित्रों के संरक्षण की योजना पर काम किया जा रहा है।
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उम्मीद है कि इस काम में हमें बड़े पैमाने पर सफलता मिलेगी। इस सेमिनार में बस्तर के शैल चित्रों को विश्व में पहचान मिलेगी। इनका संवर्धन और कैसे किया जा सकता है, इनकी और क्या खासियतें हैं जो हम अब तक नहीं जा पाए हैं, इस पर बात होगी।
बस्तर संभाग के शैल चित्रों में कौन-कौन से प्रमुख चित्रण देखे गए हैं?
बस्तर संभाग के शैल चित्रों में आदि मानवों की आजीविका, शिकार और नृत्य शैली को दर्शाया गया है। इनमें हाथ और पैरों के निशान, धनुष लिए शिकार करते मानव, झोपड़ियां और कुछ विचित्र अक्षर भी देखे गए हैं, जो उस समय के जीवन और संस्कृति की जानकारी देते हैं।
बस्तर के शैल चित्रों को पहली बार किस सेमिनार में प्रदर्शित किया जाएगा?
बस्तर के शैल चित्रों को पहली बार कोलकाता के साल्ट लेक में होने वाले तीन दिवसीय सेमिनार में प्रदर्शित किया जाएगा, जहां देश-विदेश के 150 से अधिक मानव वैज्ञानिक इनका अध्ययन करेंगे और इनके संरक्षण को लेकर सुझाव देंगे।
बस्तर के शैल चित्रों के संरक्षण को लेकर क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
बस्तर के शैल चित्रों के संरक्षण के लिए लंबे समय से प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर इसमें सफलता भी मिली है। इस सेमिनार के जरिए इन शैल चित्रों को वैश्विक पहचान दिलाने और इनके संवर्धन के नए तरीकों पर चर्चा की जाएगी, जिससे इनकी और अधिक विशेषताओं का पता लगाया जा सके।