/sootr/media/media_files/2025/02/28/ZXqskOu9NAsys8MH0jMZ.jpg)
रायपुर से विशाखापट्टनम के बीच बन रहे एक्सप्रेस वे को कुछ अधिकारियों ने मोटी कमाई का एक्सप्रेस वे बना दिया। यह एक्सप्रेस वे भारत सरकार की भारतमाला परियोजना के तहत बनाया जा रहा है। इस एक्सप्रेस वे के लिए जमीनों का अधिग्रहण करने में कुछ सरकारी अधिकारियों ने 250 करोड़ का खेला कर दिया।
इस खेला के मुख्य किरदार दो एसडीएम और एक तहसीलदार की भूमिका सवालों के घेरे में है। हुआ ये है कि एक्सप्रेस वे के लिए 32 प्लॉट को 142 प्लॉट में बांट दिया गया। 32 प्लॉट का मुआवजा 35 करोड़ हो रहा था लेकिन इन अधिकारियों ने इसके 142 टुकड़े कर मुआवजा बना दिया 326 करोड़।
ये खबर भी पढ़िए...दो हार्डकोर ईनामी नक्सलियों ने किया सरेंडर... 2 लाख का था ईनाम
इस मुआवजे में से 248 करोड़ बांट भी दिए गए। द सूत्र की पड़ताल में ये सामने आ गया कि आखिर कौन है उस वक्त के अधिकारी जो इस खेल के मास्टर माइंड रहे हैं। आइए आपको बताते हैं कि क्या है ये पूरी फिल्म और कौन है इसके असली किरदार।
रायपुर टू विशाखापट्टनम एक्सप्रेस वे बना भ्रष्टाचार का रास्ता
भारत सरकार की भारतमाला परियोजना के तहत रायपुर से विशाखापट्टनम के बीच एक्सप्रेस वे बनाया जाना है। छत्तीसगढ़ से विशाखापट्टनम की दूरी करीब 546 किलोमीटर है। कॉरिडोर बन जाने से यह दूरी घटकर 463 किमी हो जाएगी। यानी रायपुर से विशाखापट्टनम की दूरी 83 किमी कम हो जाएगी। कॉरिडोर में प्रवेश करने के बाद यात्री कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंच जाएंगे।
ये खबर भी पढ़िए...जिस केमिकल से स्कूल में बच्चों ने ब्लास्ट किया,आसानी से मिल रहा ऑनलाइन
विशाखापट्टनम जाने वाले यात्री अभी जगदलपुर होकर जाते हैं। लेकिन इसे कुछ अधिकारियों ने मोटी कमाई का जरिया बना लिया। इन अधिकारियों ने प्रतिबंध के बाद भी सरकारी नियमों को ठेंगा दिखाकर कॅरप्शन का ऐसा खेल खेला कि खुलासा होने के बाद लोग हैरान हो गए।
क्या है पूरा खेला
जमीन अधिग्रहण के नियमों के अनुसार ग्रामीण अंचल में 500 वर्गमीटर से कम जमीन है तो उसका मुआवजा अधिक मिलता है। यदि 500 वर्गमीटर से जमीन ज्यादा है तो उसका पैसा कम मिलता है। उदाहरण के तौर पर एक एकड़ जमीन है तो उसका मुआवजा 20 लाख होगा। यदि इसी जमीन को टुकडों में बांटकर 500 वर्गमीटर से कम कर दिया जाए तो मुआवजा बढ़कर करीब एक करोड़ का हो जाएगा।
रायपुर- विशाखापट्टनम कॉरिडोर के पास होते ही बड़े-बड़े रसूखदारों ने अफसरों से मिलकर ज्यादातर जमीन को 500 वर्गमीटर के नीचे कर दिया। इस वजह से मुआवजे की रकम बहुत ज्यादा बढ़ गई। जिससे अफसरों को भी शक हुआ और जांच कराई गई। जांच में सामने आया कि रायपुर के पास अभनपुर ब्लॉक के 32 प्लॉट को काटकर 500 वर्गमीटर के 142 प्लॉट बना दिए गए। 32 प्लॉट का मआवजा 35 करोड़ बन रहा था लेकिन छोटे टुकड़े काटने के बाद ये मुआवजा बना 326 करोड़।
ये खबर भी पढ़िए...किसानों को फ्री में बिजली देगी साय सरकार... 19762 करोड़ का बजट पेश
इस मुआवजे में से 248 करोड़ रुपए बांट भी दिए गए। हैरानी की बात ये भी है कि सूचना के प्रकाशन के बाद जमीन का डायवर्सन या बंटान का काम प्रतिबंधित हो जाता है। लेकिन इन अधिकारियों ने नियमों को ठेंगा दिखाकर मलाई चाट ली। अब आपको बताते हैं कि इसमें आखिर किसकी भूमिका दी। इसमें दो एसडीएम और एक तहसीलदार पर सवाल भी उठे हैं और आरोप भी लगे है। आरोप ये है कि तत्कालीन एसडीएम सूरज साहू और निर्भय साहू के साथ तत्कालीन तहसीलदार शशिकांत कुर्रे ने मिलकर ये पूरा खेला किया है।
78 करोड़ का क्लेम मांगा तो फूटा भांडा
जब मुआवजे के बचे हुए 78 करोड़ का क्लेम मांगा गया तो एनएचआई के अधिकारियों की शक की सुई घूम गई। इसकी जानकारी उपर के अफसरों को भेजी गई। विजिलेंस ऑफिसर ने रायपुर कलेक्टर से इसकी जांच कराने को कहा। सालों तक यह जांच पेडिंग पड़ी रही। जब इस जांच पर केंद्र सरकार ने दबाव बनाया तो राजस्व सचिव को यह जांच रिपोर्ट भेज दी गई।
इसमें कलेक्टर ने माना कि 35 करोड़ का मुआवजा बनता है और इससे 213 करोड़ रुपए ज्यादा मुआवजा बांट दिया गया। दरअसल भारतमाला प्रोजेक्ट का ऐलान होने के बाद रायपुर और धमतरी के बड़े व्यवसायियों ने यहां की जमीन खरीद ली। और अधिकारियों ने इन रईसों के साथ मिलकर ये बड़ा घोटाला कर दिया।
ये खबर भी पढ़िए...CG Board Exam 2025 : 10वीं-12वीं बोर्ड के इन स्टूडेंट्स को मिलेंगे बोनस अंक
इसमें मेरा कोई रोल नहीं : एसडीएम
जब द सूत्र ने इस बारे में तत्कालीन एसडीएम निर्भय साहू से पूछा तो उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में उनका कोई रोल नहीं है। साहू ने कहा कि वे अक्टूबर 2020 में वहां पदस्थ हुए थे जबकि यह काम प्रकाशन के बाद और उनके पदस्थ होने से पहले ही हो गया था। उन्होंने कहा कि शशिकांत कुर्रे उस समय तहसीलदार थे। एसडीएम तो तहसीलदार की रिपोर्ट के अनुसार काम करता है। तहसीलदार और पटवारी जमीन पर काम करते हैं एसडीएम को इस बारे में रिपोर्ट देते है।
विधानसभा में उठा मामला
यह मामला नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने विधानसभा में उठाया। उन्होंने पूछा कि 32 प्लॉट के 142 प्लॉट किसने किए। इस पर राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा जवाब नहीं दे पाए। महंत ने कहा कि जब कलेक्टर ने सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है तो फिर ये मामला क्यों दबाया जा रहा है। स्पीकर ने मंत्री को निर्देश दिए कि वे महंत को सारी जानकारी मुहैया कराएं।