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रायपुर : आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में जवानों की बंदूक से निकली गोली, 40 लाख के नक्सली गजरला रवि की छाती के आर पार हो गई। रवि की मौत के साथ ही गजरला परिवार खत्म हो गया। रवि के साथ उसकी बहन और 1 करोड़ के इनामी नक्सली चलपति की पत्नी अरुणा भी मारी गई। अरुणा पर 20 लाख का इनाम था। हम इस परिवार की कहानी इसलिए बता रहे हैं क्योंकि ये वो परिवार था जिसमें पांच में से चार भाई और एक बहन नक्सली थे। गजरला रवि इस परिवार का आखिरी सदस्य था। जिसकी मौत के बाद गजरला परिवार का अंत हो गया। माओवाद का रास्ता इस पूरे परिवार को काल के गाल तक ले गया।
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गजरला रवि यानी एक परिवार के अंत की कहानी
हाल ही में 18 जून को देवीपटनम के जंगल में आंध्र प्रदेश ग्रेहाउंड्स के साथ मुठभेड़ में गजरला रवि उर्फ उदय इनकाउंटर में मारा गया। गजरला रवि पांच भाइयों में से घोषित माउवादी 4 भाइयों में से एक था। रवि गजरला परिवार का अंतिम माओवादी था जो जीवित था। रवि की मौत के साथ गजरला परिवार का अंत हो गया। रवि माओवादियों की केंद्रीय समिति का सदस्य था और उस पर 40 लाख का इनाम था। 17 साल पहले उसके भाई गजरला सरैया उर्फ आजाद की भी अप्रैल 2008 में इसी तरह जान गई थी। एक भाई ने बीमारी से तंग आकर सरेंडर कर दिया था। एक और माओवादी भाई ने भी अंडरग्राउंड रहते हुए बीमारी के कारण दम तोड़ दिया। गजरला समैया एकमात्र ऐसा भाई था जो माओवाद से दूर था और कोयला की खदान में काम करता था। समैया की भी बीमारी से मौत हो गई। इन पांच भाइयों की एक बहन अरुणा भी थी जो माओवाद में अपने पति चलपति के साथ काम करती थी। पति चलपति 1 करोड़ का इनामी नक्सली था जो भी हाल ही में मारा गया। अरुणा पर भी 20 लाख का इनाम था। अरुणा भी रवि के साथ एनकाउंटर में मारी गई।
7 साल में ही माओवादियों के पोस्टर चिपकाने लगा
गजरला मल्लैया और कनकम्मा के घर जन्मे गजरला रवि ने तेलंगाना के चित्याला ब्लॉक में अपने गांव के सरकारी स्कूल से हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की। पुलिस सूत्रों के मुताबिक पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि माओवादी विचारधारा से उसका शुरुआती जुड़ाव था। वह सात साल की उम्र से ही पोस्टर लगाता था और माओवादियों के लिए काम करता था। वारंगल शहर में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान गजरला रवि प्रतिबंधित माओवादी छात्र संगठन रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन के करीब आ गया। उसके एक भाई ने उसका आरएसयू से लगाव को देखा और उसे करीमनगर भेज दिया। यहाँ रवि ने एक सरकारी कॉलेज में दाखिला ले लिया। 1986 और 1988 के बीच, रवि ने इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई की। बड़े भाई की माओवाद से दूर रखने की कोशिशों के बाद भी रवि माओवादियों से जुड़ा रहा। यहां भी रवि एक सदस्य के रूप में आरएसयू में शामिल हो गया और एक साल तक संगठन के साथ काम किया। इसके बाद पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लूजी) के प्रति उसका लगाव बढ़ता गया। एक साल बाद वो अपने स्थानीय ब्लॉक में एक और फ्रंटल माओवादी संगठन, रेडिकल यूथ लीग (आरवाईएल) का सचिव बन गया। उस समय, रवि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (पीपुल्स वार) से पहले से जुड़े चचेरे भाइयों के साथ काम करता था। बाद में, वो दलम या सशस्त्र समूह के सदस्य के रूप में अंडरग्राउंड हो गया। 1990 के दशक में गजरला रवि को पूर्णकालिक सदस्य के रूप में भर्ती किया गया। इसके बाद वो 1993 में दलम के डिप्टी कमांडर और 1994 में क्षेत्र में डिवीजनल कमेटी के सदस्य के रूप में नक्सलियों के बीच उभरा। गजरला रवि 2001 में डिवीजनल कमेटी का सचिव बना और फिर करीमनगर (पूर्व) डिवीजन के सचिव की जिम्मेदारी ली, जहां उसने पीपुल्स वार की उत्तरी तेलंगाना स्पेशल जोन कमेटी के साथ काम किया।
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तत्कालीन सीएम को मारने की साजिश
आंध्र प्रदेश-ओडिशा सीमावर्ती क्षेत्रों में सबसे वरिष्ठ माओवादी नेता माने जाने वाला गजरला रवि पर सुरक्षा बलों ने 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था। माओवादियों की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था सीपीआई (माओवादी) केंद्रीय समिति के सदस्य के रूप में काम करने के अलावा, गजरला रवि आंध्र-ओडिशा सीमा विशेष क्षेत्रीय समिति (एओबीएसजेडसी) के सचिव के रूप में भी काम कर रहे था। रवि के साथ, ग्रेहाउंड्स ने बुधवार 18 जून को वरिष्ठ एओबीएसजेडसी सदस्य रावी वेंकट चैतन्य उर्फ अरुणा और एओबीएसजेडसी की एक क्षेत्रीय समिति सदस्य अंजू का एनकाउंटर कर दिया।
गजरला रवि को किस्मत ने दिया धोखा
माओवादी अभियानों के प्रमुख के रूप में प्रमोशन मिलने के एक साल बाद, गजरला रवि ने नवंबर 2022 में वारंगल के चिंतागुडेम में आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बस पर हमला करने का आदेश दिया। इस हमले में 20 यात्री मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) ने इसके लिए माफी मांगी। इस घटना के बाद रवि का डिवीजनल कमेटी सचिव-रैंक से PWG के डिवीजनल कमेटी सदस्य के पद पर डिमोशन कर दिया गया। हालांकि, माओवादियों ने एक साल बाद गजरला रवि को फिर से बहाल कर दिया और बाद में पदोन्नति के दौर में, वो 2004 में राज्य समिति का सदस्य बन गया। उसे तुपाकुलगुडेम मुठभेड़ में सुरक्षा बलों द्वारा छह शीर्ष माओवादियों को मार गिराने के बाद संगठन की विचारधारा को मज़बूत करने के लिए संगठन के मोबाइल राजनीतिक स्कूल (MPoS) को संभालने का काम सौंपा गया था। गजरला रवि, तत्कालीन सीपीआई (एमएल)पीडब्लू के राज्य सचिव अक्कीराजू हरगोपाल, जिन्हें रामकृष्ण (आरके) के नाम से भी जाना जाता है, और सुधाकर के अलावा तीन माओवादी नेताओं में से एक था। जिन्होंने 2004 में आंध्र प्रदेश सरकार के साथ शांति वार्ता की थी। सुरक्षा बलों ने इस महीने की शुरुआत में बीजापुर में सुधाकर को मार डाला। बुधवार को हुई मुठभेड़ ही उसके लिए काल बन गई। एक पुलिस अधिकारी ने बताया, कि कम से कम 12 बार रवि सुरक्षा बलों को चकमा देकर भागने में सफल हुआ था। लेकिन इस बार किस्मत उसके साथ नहीं थी और सुरक्षा बलों की गोली पर उसका नाम लिखा जो उसके सीने को चीर गई।
सरेंडर या इनकाउंटर
प्रदेश सरकार और सुरक्षा बलों की मुहिम नक्सलवाद को खत्म करने की तरफ बढ़ रही है। सरकार ने ऑफर भी दिया कि वे वार्ता को तैयार हैं। लेकिन माओवादियों ने इस तरफ कोई कदम नहीं बढ़ाया। माओवादियों के कारण ही हाल ही में एक पुलिस अधिकारी शहीद हो गए। सरकार ने साफ कर दिया है कि या तो सरेंडर या इनकाउंटर जो भी मंजूर हो नक्सली वो रास्ता अपनाएं। बंदूक का जवाब बंदूक से दिया जाएगा। नक्सलियों के सरेंडर के लिए सरकार ने उनके पुनर्वास की पॉलिसी भी बनाई है। हाल ही में करोड़ों के इनाम वाले माओवादियों के केंद्रीय कमेटी के सदस्य भी जवानों की गोली का निशाना बने हैं। गजरला रवि भी उनमें से एक था।
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