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छत्तीसगढ़ में डायल 112 सेवा के लिए खरीदी गई 400 बोलेरो गाड़ियों का कबाड़ में तब्दील होना न केवल जनता के पैसे की बर्बादी का गंभीर उदाहरण है, बल्कि यह सरकारी योजनाओं के प्रबंधन और कार्यान्वयन में लापरवाही को भी उजागर करता है। यह मुद्दा हाल के दिनों में चर्चा का केंद्र बना है, क्योंकि इन गाड़ियों को 2023 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 40 करोड़ रुपये की लागत से आपातकालीन सेवाओं के लिए खरीदा था। लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में ये गाड़ियाँ पिछले 15 महीनों से रायपुर के अमलेश्वर में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (CAF) के बटालियन मैदान में बिना उपयोग के खड़ी हैं और धूल खा रही हैं। इस लेख में इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं, इसके कारणों, प्रभावों और संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
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डायल 112 एक महत्वाकांक्षी पहल
यह आपातकालीन पुलिस रिस्पांस सिस्टम के रूप में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य नागरिकों को त्वरित और प्रभावी सहायता प्रदान करना था। यह सेवा गंभीर परिस्थितियों में लोगों की जान बचाने और अपराधों पर तुरंत कार्रवाई करने के लिए डिज़ाइन की गई थी। छत्तीसगढ़ के सभी 33 जिलों में इस सेवा को लागू करने के लिए जून 2023 में तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार ने 400 बोलेरो गाड़ियों की खरीद के लिए 33 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। इन गाड़ियों को पुलिस थानों में तैनात किया जाना था ताकि आपात स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया दी जा सके। इस योजना की सफलता पहले से ही सिद्ध हो चुकी थी, क्योंकि इस सेवा ने कई मौकों पर नागरिकों को तुरंत मदद पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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गाड़ियों की बर्बादी के ये रहे कारण
हालाँकि, इन गाड़ियों का उपयोग शुरू होने से पहले ही यह परियोजना ठप हो गई। वर्तमान में ये 400 बोलेरो गाड़ियाँ रायपुर के अमलेश्वर में CAF की तीसरी वाहिनी के ग्राउंड में खड़ी हैं। 15 महीनों से बिना उपयोग के खड़े रहने के कारण इनका रखरखाव नहीं हुआ और ये जंग खाकर कबाड़ में तब्दील हो रही हैं। यह स्थिति न केवल वित्तीय नुकसान का कारण बनी है, बल्कि जनता की सुरक्षा के लिए बनाई गई एक महत्वपूर्ण योजना को भी प्रभावित कर रही है। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर वर्तमान भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला है। पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने आरोप लगाया कि सरकार ने जनता की गाढ़ी कमाई को बर्बाद किया है और सेवा को संचालित करने के लिए एक साल में भी एजेंसी नियुक्त नहीं की। दूसरी ओर, गृह मंत्री विजय शर्मा ने इस मामले की जाँच के आदेश दिए हैं और कहा है कि गाड़ियों की खरीद प्रक्रिया, उनके उपयोग न होने के कारणों और इस बर्बादी के लिए जिम्मेदार लोगों की जानकारी जल्द सामने लाई जाएगी।
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प्रबंधन और नीतिगत विफलता
इस बर्बादी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो सरकारी प्रणाली की कमियों को दर्शाते हैं:
प्रशासनिक लापरवाही: गाड़ियों की खरीद के बाद इन्हें संचालित करने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई। डायल 112 सेवा को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए एजेंसी नियुक्त करना, चालक और कर्मचारियों की व्यवस्था करना, और रखरखाव की प्रक्रिया सुनिश्चित करना आवश्यक था, जो नहीं किया गया।
राजनीतिक विवाद : कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप इस मुद्दे को और जटिल बना रहे हैं। कांग्रेस का दावा है कि यह उनकी योजना थी, जिसे भाजपा सरकार ने जानबूझकर विफल किया, जबकि भाजपा इसे जाँच का विषय बता रही है। इस तरह की राजनीति ने समस्या के समाधान को और कठिन बना दिया है।
रखरखाव की कमी : गाड़ियों को लंबे समय तक बिना उपयोग के खुले में छोड़ देना तकनीकी रूप से गलत था। इससे वाहनों के इंजन, टायर और अन्य हिस्सों को नुकसान पहुँचा, जिसके कारण वे अब उपयोग के लायक नहीं रहे।
निधियों का दुरुपयोग : 40 करोड़ रुपये की लागत से खरीदी गई गाड़ियाँ जनता की सुरक्षा के लिए थीं, लेकिन इन्हें बेकार खड़े रहने देना न केवल वित्तीय नुकसान है, बल्कि जनता के विश्वास को भी ठेस पहुँचाता है।
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जनता और प्रशासन पर असर
इस बर्बादी के कई गंभीर परिणाम सामने आए हैं:
आपातकालीन सेवाओं पर प्रभाव : डायल 112 जैसी सेवा, जो त्वरित पुलिस सहायता के लिए महत्वपूर्ण है, प्रभावित हुई है। इससे अपराधों पर तुरंत कार्रवाई करने की क्षमता कम हुई है।
आर्थिक नुकसान : 40 करोड़ रुपये की जनता की मेहनत की कमाई बेकार चली गई। यह राशि अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा या बुनियादी ढाँचे में निवेश की जा सकती थी।
जनता का विश्वास खोया : जब जनता को पता चलता है कि उनके कर के पैसे इस तरह बर्बाद हो रहे हैं, तो सरकार और प्रशासन के प्रति उनका भरोसा कम होता है।
राजनीतिक विवाद : यह मुद्दा कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक टकराव का कारण बना है, जिससे विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप का माहौल बन रहा है।
संभावित समाधान
इस समस्या का समाधान तत्काल और प्रभावी ढंग से करना आवश्यक है। कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:
गाड़ियों का वैकल्पिक उपयोग: जैसा कि सुझाव दिया गया है, यदि डायल 112 सेवा को तुरंत लागू करना संभव नहीं है, तो इन गाड़ियों को अन्य सेवाओं जैसे महतारी एक्सप्रेस (मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं के लिए), एम्बुलेंस, या पुलिस पेट्रोलिंग के लिए उपयोग किया जा सकता है। कई थानों में वाहनों की कमी है, और इन बोलेरो को वहाँ तैनात किया जा सकता है।
जाँच और जवाबदेही : गृह मंत्री विजय शर्मा द्वारा शुरू की गई जाँच को जल्द पूरा करना चाहिए। दोषी अधिकारियों या ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो।
रखरखाव और मरम्मत : गाड़ियों की स्थिति का आकलन कर उन्हें मरम्मत के बाद उपयोग में लाया जा सकता है। विशेषज्ञ मैकेनिक्स की मदद से यह सुनिश्चित करना होगा कि गाड़ियाँ फिर से चालू हालत में आ सकें।
एजेंसी नियुक्ति और संचालन : डायल 112 सेवा को पुनर्जनन के लिए तत्काल एजेंसी नियुक्त की जानी चाहिए। इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी, चालक और तकनीकी सहायता की व्यवस्था करनी होगी।
पारदर्शिता और जन जागरूकता : सरकार को इस मुद्दे पर जनता के सामने स्पष्ट स्थिति रखनी चाहिए। यह बताना होगा कि गाड़ियों की बर्बादी के लिए कौन जिम्मेदार है और इसे ठीक करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग और प्रशासनिक विफलता
छत्तीसगढ़ में डायल 112 की 400 बोलेरो गाड़ियों का कबाड़ में बदलना एक दुखद और गंभीर मामला है, जो सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग और प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है। यह न केवल 40 करोड़ रुपये की बर्बादी है, बल्कि जनता की सुरक्षा और विश्वास को भी प्रभावित करता है। वर्तमान सरकार को इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए, चाहे वह गाड़ियों का वैकल्पिक उपयोग हो या डायल 112 सेवा को पुनर्जनन करना। साथ ही, भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस नीतियाँ और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। यह समय है कि जनता के पैसे का सम्मान किया जाए और उनकी सुरक्षा के लिए बनाई गई योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
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