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रायपुर. छत्तीसगढ़ में सरकार पर कॉलोनाइजर और ठेकेदार भारी पड़ रहे हैं। नियमों को उलट पलट कर अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकी जा रही है। या फिर यूं कहें कि अधिकारियों से मिली भगत कर फायदे का सौदा किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में 5 ठेकेदारों ने सरकार को 10 करोड़ का चूना लगा दिया। कॉलोनाइजर ने गरीबों के मकान बनाने की शर्त पूरी करने ऐसा नुस्खा निकाला कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। वहीं ठेकेदार ने दोगुनी कीमत के पाइप लगा दिए जो किसी को नजर ही नहीं आए। ठेकेदार को भुगतान भी पूरे से ज्यादा कर दिया गया। इस मिलीभगत की पोल पट्टी सीएजी ने खोली है।
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चार कोलोनाइजर और एक ठेकेदार की कारस्तानी
सीएजी की विधानसभा में पेश हुई स्थानीय निकायों की पूरी किताब में एक अलग चैप्टर है। इस चैप्टर में चार कोलोनाइजर और एक ठेकेदार की करतूत लिखी हुई है। लोगों के हित के लिए सरकार नियम बनाती है और इन नियमों को तोड़ मरोड़ कर निजी लोग अपनी चांदी काट लेते हैं। इन पांच लोगों में कोई कांकेर का है तो कोई कोरबा का। इन्होंने इस तरह की चालबाजी कर दी कि उनको आम के आम और गुठलियों के दाम भी मिल गए। एक कॉलोनाइजर कांकेर का है जिसको डेढ़ करोड़ का फायदा पहुंचाया गया। तीन कॉलोनाइजर कोरबा के हैं जिन्होंने गरीबों के मकान के एवज में 8 लाख रुपए दिए जबकि देने थे 80 लाख। एक ठेकेदार ने अमृत योजना के तहत जो पाइप डाले उसकी दोगुनी कीमत वसूल ली। ठेकेदार को काम के पहले ही 8 करोड़ का भुगतान कर दिया। यह सब कारगुजारी सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बताई है। द सूत्र ने इन कॉलोनाइजर और ठेकेदार की पूरी पड़ताल की। आइए आपको बताते हैं कि कैसे इन लोगों ने अधिकारियों से मिलीभगत कर गरीबों के हक पर डाका डाला।
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केस नंबर 1 : सतगुरु इन्फ्रा प्रोजेक्ट प्रालि,कांकेर
हम आपको बता रहे हैं किस तरह कोलोनाइजर सतगुरु इन्फ्रा प्रोजेक्ट प्रालि को 1 करोड़ 54 लाख का फायदा पहुंचाया गया। जब कॉलोनी बनाई जाती है तो अनुमति इस शर्त पर दी जाती है कि कॉलोनाइजर को जमीन की 15 फीसदी जगह पर कमजोर वर्ग के लोगों के लिए ईडब्ल्यूएस मकान बनाने होंगे। सतगुरु के रेसीडेंशियल प्रोजेक्ट की जमीन की कीमत 24 करोड़ थी। गरीबों के लिए उसे 15 फीसदी के हिसाब से 3 करोड़ 63 लाख की जमीन छोड़नी थी। कॉलोनाइजर ने चालबाजी दिखाते हुए 15 फीसदी जमीन खेत में दिखा दी। इसकी कीमत सिर्फ 2 करोड़ थी। इस तरह सतगुरु को सीधे 1 करोड़ 54 लाख का अनुचित फायदा पहुंचाया गया। जाहिर है अधिकारियों को ये चालबाजी नजर नहीं आई यानी उनकी आंखों पर आर्थिक लाभ की पट्टी बांध दी गई थी।
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केस नंबर 2 : तीन कॉलोनाइजर्स ने की कारगुजारी
यहां हम तीन कॉलोनाइजर की कारगुजारी बता रहे हैं। इन तीनों कॉलोनाइजर की कारस्तानी एक जैसी है और एक जगह कोरबा की है इसलिए इनको साथ में दिखा रहे हैं। यहां भी खेल मिलीभगत का ही है। गरीबों के मकान न देने पड़े इसलिए अधिकारियों को पैसे दे दिए गए। और सब काम बन गया। नियम भी तोड़ मरोड़ दिए गए और इनका उल्लू सीधा भी हो गया। लेकिन ये लोग सीएजी की पैनी नजर से नहीं बच पाए। इन लोगों ने गरीबों के मकान देने का दूसरा विकल्प चुना। इन्होंने 15 फीसदी राशि गरीब कल्याण कोष में जमा कर दी। बस यहीं पर खेल हो गया।
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सर्वमंगला बिल्डकॉन : कोलोनाइजर ने अपने प्रोजेक्ट की 15 फीसदी राशि के नाम पर 2 लाख 72 हजार रुपए सरकार के कोष में जमा किए। जबकि इनको 24 लाख 23 हजार रुपए जमा करने थे।
आरकेसी इन्फ्राटेक : इन्होंने 1 लाख 8 हजार रुपए रुपए जमा किए जबकि प्रोजेक्ट के 15 फीसदी के हिसाब से इनको 30 लाख 54 हजार रुपए जमा करने थे।
एचएम इन्फ्राटेक : इनको अपने प्रोजेक्ट में गरीबों के मकान के लिए 29 लाख 19 हजार रुपए सरकारी कोष में जमा करने थे लेकिन इन्होंने सिर्फ 4 लाख 37 हजार रुपए ही जमा किए।
इस तरह इन तीन कॉलोनाइजर को देना था 84 लाख रुपए लेकिन दिए 8 लाख 17 हजार रुपए यानी इस तरह 76 लाख रुपए अपनी जेब में डाल लिए। हैरानी की बात ये भी है कि यह किसी को नजर ही नहीं आया।
केस नंबर 3 : द इंडियन ह्यूम पाइप कंपनी लिमिटेड,मुंबई
यह केस भी कोरबा का है। यहां पर अमृत योजना के तहत पानी की सप्लाई के लिए पाइप लाइन बिछाई जानी थी। 115 करोड़ का ये टेंडर द इंडियन ह्यूम पाइप कंपनी लिमिटेड,मुंबई को मिला। यहां पर ठेकेदार को उपयोग किए गए पाइप के लिए उंची दरों पर अनियमित भुगतान किया गया। पाइप की 3371 रुपए से 6233 प्रति रनिंग मीटर कॉस्ट थी जबकि भुगतान हुआ 6372 रुपए से 9688 रुपए प्रति रनिंग मीटर के हिसाब से यानी लागत से दोगुना भुगतान कर दिया गया। ठेकेदार को समय से पहले 8 करोड़ रुपए का ज्यादा भुगतान किया गया।
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