छत्तीसगढ़ पुलिस का कारनामा, सात साल के मासूम को बनाया आरोपी, कोर्ट ने लगाई फटकार

छत्तीसगढ की दुर्ग पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे है। यहां की पुलिस ने एक सात साल के मासूम को आरोपी बनाकर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे आरोपी बना दिया।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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छत्तीसगढ की दुर्ग पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे है। यहां की पुलिस ने एक सात साल के मासूम को आरोपी बनाकर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे आरोपी बना दिया। यह मामला छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के सुपेला थाना क्षेत्र का है। पुलिस ने 6 साल की बच्ची के साथ छेड़छाड़ के आरोप में 13 साल के नाबालिग को आरोपी बनाया।

हालांकि, पूछताछ में 13 साल के नाबालिग ने 7 साल के बच्चे का नाम लिया, जिससे पुलिस ने उसे भी आरोपी बना दिया। यह मामला बाल न्यायालय में पहुंचा, जहां कोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और पुलिस को गलती सुधारने की सलाह दी। 

घटना का विवरण

यह पूरा मामला 6 साल की बच्ची के साथ हुई छेड़छाड़ के एक आरोप से जुड़ा है। सुपेला पुलिस ने इस आरोप पर 13 साल के नाबालिग को आरोपी बनाया। पूछताछ के दौरान, इस नाबालिग ने यह खुलासा किया कि 7 साल का बच्चा भी इस घटना में शामिल था। इसके बाद पुलिस ने 7 साल के बच्चे के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया।

हालांकि, जब मामला बाल न्यायालय में पहुंचा तो न्यायालय ने पुलिस को इस मामले पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने सवाल किया कि 7 साल के बच्चे के खिलाफ FIR क्यों दर्ज की गई। न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया कि बच्चे को गवाह बनाया जा सकता है, लेकिन आरोपी नहीं। इस पर पुलिस को अपनी गलती का एहसास हुआ और मामले को सुधारने की कोशिश की।

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पुलिस की गलती और न्यायालय की फटकार

जब इस घटना की जानकारी बाल न्यायालय को मिली, तो न्यायालय ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। यह पाया गया कि 12 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ अपराध दर्ज करना कानून के खिलाफ है। सुपेला पुलिस की यह गलती तब उजागर हुई जब उन्होंने 7 साल के बच्चे को आरोपी बना दिया, जो कि एक कानूनी त्रुटि थी। बाल न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बच्चों के खिलाफ अपराध दर्ज करना असंवैधानिक है और पुलिस को इस पर सुधार करने की सलाह दी।

क्या कहता है कानून?

भारत में, 12 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता। भारतीय दंड संहिता (IPC) और बालकों के अधिकारों से जुड़े विभिन्न कानूनों के अनुसार, बच्चों को अपराधी के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, यदि उनका मानसिक और शारीरिक विकास पूरी तरह से हुआ न हो। इसलिए इस मामले में सुपेला पुलिस की कार्रवाई पूरी तरह से गलत थी।

पुलिस की प्रतिक्रिया

पुलिस द्वारा इस मामले में रिपोर्ट दर्ज करने के बाद, टीआई विजय यादव ने कहा कि यह एक खेल-खेल में हुआ मामला था और इसमें कुछ भी गंभीर नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों बच्चों की काउंसलिंग करवा दी गई है और मामला अब सुलझ गया है।

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FAQ

क्या 7 साल के बच्चे के खिलाफ FIR दर्ज करना कानूनी है?
भारत में, 12 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता। सुपेला पुलिस ने जो FIR दर्ज की थी, वह कानूनी रूप से गलत थी। बाल न्यायालय ने पुलिस को इस पर सुधार करने की सलाह दी।
सुपेला पुलिस ने 7 साल के बच्चे के खिलाफ FIR क्यों दर्ज की?
सुपेला पुलिस ने 13 साल के नाबालिग के बयान के आधार पर 7 साल के बच्चे को भी आरोपी बना दिया था। हालांकि, बाल न्यायालय ने इसे कानूनी त्रुटि मानते हुए पुलिस को निर्देश दिया कि 7 साल के बच्चे को गवाह बनाया जा सकता है, आरोपी नहीं।
बच्चों के खिलाफ अपराध कब दर्ज किया जा सकता है?
भारतीय कानून के तहत, 12 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ कोई अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता। अगर कोई अपराध 12 साल से कम उम्र के बच्चों से जुड़ा हो, तो इसे गवाह के रूप में लिया जा सकता है, लेकिन आरोपी नहीं।

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